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संस्था और व्यक्ति के बीच गहन सम्बन्ध है। संस्था व्यक्ति के साथ ही चला करती है। उसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि व्यक्ति जब संस्था बन जाता है तो संस्था पल्लवित और पुष्पित होती रहती है। यह मान्यता हमारे चरित्रनायक के लिये शत प्रतिशत सही उतरती है। कांठा प्रदेश के अविकसित क्षेत्र में जिस बोज का पाँच संस्थापक सदस्यों ने वपन किया, जिसमें स्व० श्री बस्तीमलजी छाजेड़ प्रमुख थे, वह आज वटवृक्ष के रूप में अवतरित है। श्री सुराणाजी ने सर्वस्व समपर्ण कर अपने आपको समर्पित किया और जूझ पड़े। देश की तेरापन्थ समाज की भूमिका पर संस्था-निर्माण के विकास को अविरल रखा। प्राथमिकशाला, माध्यमिकविद्यालय को पूर्णतया स्थायित्व प्रदान किया। साथ में आदर्श निकेतन छात्रावास की सुन्दरतम व्यवस्था स्थापित की। क्रमशः परिसर (Campus) भवनों से आलोकित होने लगा। संस्था के संचालन का मूल हार्द चरित्रनिमार्ण रहा ताकि बालकों का जीवन निमार्ण सही दिशा में होकर संस्कारी बन सके। इस सन्दर्भ में आध्यत्मिक पुट सदा बना रहा । गुड़ा रामसिंह माध्यमिक शाला व वहाँ का औषधालय मानव हितकारी संघ द्वारा ही संचालित हैं जो ग्रामीण जीवन में शिक्षा सेवा उपलब्ध करते हैं।
कुछ वर्षों पूर्व धर्म संघ के आचार्य श्री की मनोभावना को हृदयंगम करते हुए आपने अपने मन में महाविद्यालय निर्माण का निश्चय किया। इस स्वप्न को साकार करना एक भगीरथ प्रयत्न था। दस वर्षों की अल्प अवधि में पच्चास लाख रुपयों का अनुदान प्राप्त किया। उदारमना श्री भन्साली परिवार एवं श्री सेठिया परिवार ने आपके मनोरथ की पूर्ति हेतु महाविद्यालयी भवनों के निर्माण में बड़ी भूमिका निभाई। फिर तो भव्य छात्रावास भवन के ११० कमरों के निर्माण में देशव्यापी सहयोग उपलब्ध हुआ। पता नहीं, आपकी जिह्वा सदा फलित होती है। सामने वाला आपकी सतत् कर्मठ सेवा के आगे झुक जाता है, यही महापुरुषों के गुण है, श्रद्धय सुराणाजी भी इसी श्रेणी में आते हैं। विशाल प्रांगण भव्य अट्टालिकाओं सहित प्रतिदिन समीप ही रेलयात्रियों को तो आकर्षित करता ही है वरन् चयन के लिये विद्वान जब आते हैं तो वे इसको मिनि-विश्वविद्यालय का रूप देते हैं। इन मब के फलस्वरूप राणावास स्टेशन कोलोनी नवीनतम भवनों के निर्माण से मुह बोलने लग गयी है।
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संस्था को खड़ी करना एक बात है और उसका सफल संचालन करना तथा उत्तरोत्तर विकास के मार्ग पर प्रशस्त करना दूसरी बात है। दूसरी बात अधिक दुष्कर है। प्रारम्भ में तो अधिकतर व्यक्ति जुट जाते हैं, किन्तु वे अधिक समय तक साथ नहीं दे पाते, बहुधा यही देखा जाता है। हमारे चरित्रनायक जिस कार्य को उठा लेते हैं उसको परिसम्पन्न करने में ही विश्वास करते हैं। एकनिष्ठ रूप से संलग्न हो जाना आपकी अद्भुत प्रतिभा है। उसके लिये जो भी विसर्जन करना पड़े, उससे पीछे नहीं हठते हैं। Charity begins at Home को चरितार्थ करने के लिये आपने सपत्नीक इस संस्था की सेवा में वर्ष के ३६५ दिन ही समर्पित कर दिये हैं। साधु वेशभूषा धारण की एवं न्यूनतम आवश्यकताओं को अंगीकार किया। प्रतिदिन संस्था की व्यवस्था जैसे-शिक्षण-प्रशिक्षण, छात्रावास तथा भोजनालय की देखरेख, सम्पूर्ण प्रबन्ध का निर्देशन आपके जीवन के मुख्य अंग बन गये। वित्तीय अनुशासन पर आपका मद व पूरा अधिकार रहा अर्थात् चन्दा राशि का सर्वोत्तम उपयोग कभी आपके मस्तिष्क से ओझल नहीं रहा। यही कारण है कि आज तक सम्पूर्ण समाज का अटूट विश्वास बना रहा। यह मूल भित्ति है, जिसके कारण चन्दा राशि का प्रवाह अविरल गति से होता रहा। चन्दा प्राप्ति के लिये वर्ष में अधिकतम समय तक आपका बाहर आवागमन होता रहता था। कितने ही उपालम्भ व अपमान सहे। परिषहों को पीते रहे और अदम्य उत्साह से आगे की ओर बढ़ते रहे । यह आत्मिक साहस का एक ज्वलन्त उदाहरण प्रस्तुत होता है।
देश के नौनिहालों को माता-पिता आपके भरोसे छोड़ देते हैं और आप उनकी शिक्षा-दीक्षा, आवास, भोजन सुविधा, संस्कार-निर्माण आदि पर व्यक्तिशः देखभाल करते हैं। इसलिये प्रत्येक छात्र-वर्तमान व भूतपूर्व-आपके चरणों में नतमस्तक होते हैं। वात्सल्य और अनुशासन दोनों के आप समान हामी है। आदर्श निकेतन एवं महाविद्यालय छात्रावास के पाँच सौ छात्रों में पूर्ण अनुशासन है। यह एक असाधारण कीर्तिमान स्थापित करता है। महान् शिक्षाविद् डॉ० डी० एस० कोठारी के शब्दों में "संकड़ों छात्रों को एक साथ प्रतिदिन प्रातः सामूहिक प्रार्थना,
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