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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
दोनों काव्यों की कथानक रूढ़ियों का साम्य उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है। दोनों ने कथानक के समान ही कथानक रूढ़ियों को भी समान रूप में प्रयुक्त किया है।
४. काव्यात्मक वर्णन
कवि अपने काव्य को रोचक बनाने के लिए विभिन्न काव्यात्मक वर्णनों को अपने काव्य में वर्णित करते हैं। जिनहर्षगण एवं जायसी ने भी अनेक वर्णन अपने काव्यों में किये हैं । यथानायक एवं नायिका दोनों का सौन्दर्य-वर्णन रत्नशेखरकथा एवं पद्मावत में किया
(१) सौन्दर्य - वर्णन गया है ।
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नायिका रत्नवती का सौन्दर्य वर्णन करते हुए कवि ने उसके सम्मुख रम्भा को भी हीन माना है तथा उसने सुर-असुर की सभी सुन्दरियों के सौन्दर्य को जीत लिया है।" जायसी ने भी पद्मावती का सौन्दर्य वर्णन करते हुए उसका चित्र सा उपस्थित कर दिया है। तोता उसका मुख चन्द्रमा के समान तथा अंग मलयगिरि की गन्ध लिए हुए बताता है । जायसी के वर्णन इतने सरस हैं कि पाठक उनमें लीन हो जाता है ।
नायक रत्नशेखर का सौन्दर्य वर्णन करते हुए सखी उसे प्रत्यक्ष कामदेव के समान बताती है । पद्मावती को उसकी सखियाँ योगियों के बारे में बताती हुई कहती है कि उसमें एक गुरु है जो कि बत्तीस लक्षणों से युक्त राजकुमार लगता है।
(२) नगर वर्णन जिनगणि ने रत्नपुर की शोभा का वर्णन करते हुए वहां के मन्दिरों, नागरिकों, गृहस्थों, व्यापारियों आदि का भी सुन्दर चित्र खींचा है। जायसी ने सिंहलगढ़ का वर्णन अत्यन्त रोचक ढंग से किया है।
(२) नगर-प्रवेश-वर्णन नगर-प्रवेश का वर्णन दोनों में समान रूप से हुआ है। रत्नपुर के निवासी रत्नशेवर एवं रत्नवती को लेने सम्मुख आते हैं तथा ठाट-बाट से नगर प्रवेश कराते हैं। रत्नसेन व पद्मावती को लेने भी बन्धुबान्धव आते हैं तथा बाजों के साथ नगर प्रवेश कराते हैं ।
५. काव्यात्मक गुण-विम्ब
जो महत्त्व भारतीय काव्य-क्षेत्र में अलंकार, रस, छन्द आदि को दिया जाता है, वही महत्त्व पाश्चात्य काव्यक्षेत्र में बिम्ब को दिया जाता है । बिम्ब एक ऐसी कवि-कल्पना है जिसके माध्यम से कवि अपने अमूर्त भावों का मूर्तीकरण करता है। इसके माध्यम से कवि अपने भावों को भी मूर्त रूप में अभिव्यक्त करता है । जिनहर्षगण एवं जायसी ने भावाभिव्यक्ति के लिए विम्बों का सहारा लिया है। कुछ प्रमुख विम्ब इस प्रकार है
सागर- जिनहर्षगण ने रत्नशेखर की गम्भीरता बाते हुआ है"सायरव्व गम्भीरो..." पृ० २
किया है
+0+0+0+0+0+0+
जायसी ने प्रेम की असीमता को दर्शाया है
"परा सो पेम समुन्द अपारा। लहरहि लहर होइ विसंभारा। कमल - रत्नशेखरकथा में नायक के सौन्दर्य को अभिव्यक्त करने के लिए
"रायमुहकमलाओ परमवणेऊ'
१. रयणसेहरीकहा, पृ० २
३. रयणसेहरीकहा, १० १६
५. रयणसेहरीकहा, पृ० १-२
७. रयणसेहरीकहा, पृ० १८-१६
---|''–पृ० १७
११९१३
कवि ने कमल के बिम्ब का प्रयोग
२. पद्मावत ६३।२-४ ४.
६. पद्मावत, ४०-४४
= पद्मावत, ४२५८-६, ४२६।१
पद्मावत, १९३११-६
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