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श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर
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-श्रीलाल नथमल जोशी
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पुस्तकालयों व ग्रंथागारों की उपादेयता आज इतनी सुविदित है कि इस विषय में कुछ भी कहने की आवश्यवता नहीं। इन संस्थाओं की स्थापना तो सरल है किन्तु संचालन कठिन। देश में जितने ग्रन्थागार हैं उनमें से अधिकांश राजकीय संरक्षण प्राप्त हैं. कुछ का संचालन विविध संस्थाओं द्वारा होता है और इने-गिने भण्डार ऐसे हैं जो व्यक्तिगत प्रयासों के परिणाम हैं। श्रीअभय जैन ग्रंथालय व्यक्तिगत प्रयास का सुन्दर प्रतिफल है जिसने देश-विदेश के दिग्गजों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है।
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अनुकूल धरती मिलने पर बीज के प्रस्फुटित एवं फलित होने में देर नहीं लगती। बात वि० सं० १९८४ की है जब श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजी जैसलमेर के प्राचीन ज्ञान भंडार का जीर्णोद्धार करके चातुर्मास के लिए बीकानेर पधारे और अपने प्रवचन में उन्होंने प्राचीन ग्रन्थों एवं पाण्डुलिपियों के संरक्षण पर बल दिया ताकि मनीषियों द्वारा समाज को समर्पित ज्ञान-राशि का लोप न हो जाय। आचार्यश्री के श्रोता तो सहस्रों थे. पर उनके वचनों को सहेज कर हृदयंगम करने वाले केवल दो ही व्यक्ति थे-एक चाचा, दूसरा भतीजा । ये चाचा-भतीजा कांधलजी-वीकोजी के समान किसी भू-खण्ड पर आधिपत्य जमाकर वहां अपना राज्य स्थापित करने के अभिलाषी नहीं. प्रत्युत तीव्र गति से निरन्तर काल-कवलित हो रही ग्रंथ-राशि को संरक्षण देकर उसके दिवंगत स्रष्टाओं को अमरत्व प्रदान करने को आतुर थे: चाचा-अगरचन्द नाहटा. भत.जा-भंवरलाल नाहटा।
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उस समय इस नाहटा युगल की आयु साढ़े सोलहसत्रह वर्ष थी-एक ऐसी आयु जिसमें समस्त उमंगों के साथ गाईस्थ्य जीवन में प्रवेश की तैयारी करते हुए स्वर्गिन स्वप्नों का संसार बसाया जाना था. पर इसके सर्वथा
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