SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 387
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान महावीर ने कहा-सभी जीव समान लेश्या और हैं। कषाय होने पर लेश्या में चारों प्रकार के बन्ध समान वर्ण वाले नहीं होते । जो जीव पहले नरक में उत्पन्न होते हैं। प्रकृति बन्ध और प्रदेश बन्ध का सम्बन्ध योग हुए हैं वे पश्चात उत्पन्न होने वाले जीवों की अपेक्षा से है और स्थिति बन्ध और अनुभाग बन्ध का सम्बन्ध विशुद्ध वर्ण वाले और लेश्या वाले होते हैं। इसका कारण कषाय से है। जब कषाय जन्य बन्ध होता है तब लेण्याएं नारकीय जीवों के अप्रशस्त वर्ण नाम कर्म की प्रकृति तीव्र कम स्थिति वाली होती है। केवल योग में स्थिति और अनुभाग वाली होती है जिसका विपाक भव सापेक्ष्य है। अनुभाग नहीं होता, जेसे तेरहवें गुणस्थानवी अरिहन्तों जो जीव पहले उत्पन्न हुए हैं इन्होंने बहुत सारे विपाक के ईर्यापथिक क्रिया होती है, किन्तु स्थिति, काल और को पा लिया है, स्वल्प अवरोष है। जो बाद में उत्पन्न अनुभाग नहीं होता। जो दो समय का काल बताया गया हुए हैं उन्हें अधिक भोगना है। एतदर्थ पूर्वोत्पन्न विशुद्ध है वह काल वस्तुतः ग्रहण करने का और उत्सर्ग का काल हैं और पश्चादुत्पन्न अविशुद्ध हैं। इसी तरह जिन्होंने है। वह स्थिति और अनुभाग का काल नहीं है। अप्रशस्त लेश्या-द्रव्यों को अधिक मात्रा में भोगा है वे तृतीय अभिमतानुसार लेश्या द्रव्य योगवर्गणा के विशुद्ध हैं और जिनके अधिक शेष हैं वे अविशुद्ध लेश्या अन्तर्गत स्वतन्त्र द्रव्य है। बिना योग के लेश्या नहीं वाले हैं। होती। लेश्या और योग में परस्पर अन्वय और व्यतिरेक हम पूर्व लिख चुके हैं कि लेश्या के दो भेद हैं- सम्बन्ध है। लेश्या के योग निमित्त में दो विकल्प द्रव्य और भाव । द्रव्यलेश्या पुद्गल विशेषात्मक है । इसके समुत्पन्न होते हैं। क्या लेश्या को योगान्तर्गत द्रव्य रूप स्वरूप के सम्बन्धमें मुख्य रूप से तीन मान्यताएं प्राप्त हैं- मानना चाहिए ? अथवा योग निमित्त कर्म द्रव्य रूप ? कर्मवर्गणा निष्पन्न, कर्म निस्यन्द और योगपरिणाम ।१४ यदि वह लेश्या द्रव्य-कर्म रूप है तो घातीकर्म द्रव्य रूप है उत्तराध्ययन सूत्र के टीकाकार शांतिसरि का अभि ____ या अघाती कर्म द्रव्य रूप है ? लेश्या घातीकर्म द्रव्य रूप नहीं है। क्योंकि घाती कर्म नष्ट हो जाने पर भी लेश्या मत है कि द्रव्य लेश्या का निर्माण कर्मवर्गणा से होता है। होती है। यदि लेश्या को अघाती कर्म द्रव्य स्वरूप माने यह द्रव्य लेश्या कर्मरूप है तथापि वह आठ कर्मों से पृथक् है, जैसे कि कार्मण शरीर। यदि लेया को कर्मवर्गणा तो अघाती कर्मों वालों में भी सर्वत्र लेश्या नहीं है । चौदहवें गुणस्थान में अघाती कर्म है, किन्तु वहां लेश्या निष्पन्न न माना जाय तो वह कर्म स्थिति विधायक नहीं का अभाव है। इसलिए योग-द्रव्य के अन्तर्गत ही द्रव्य बन सकती। कर्म लेश्या का सम्बन्ध नामकर्म के साथ स्वरूप लेश्या मानना चाहिए। है। उसका सम्बन्ध शरीर रचना सम्बन्धी पुद्गलों से है। उसकी एक प्रकृति शरीर नामकर्म है। शरीर नाम लेश्या से कषायों की वृद्धि होती है ; क्योंकि योग कर्म के पुद्गलों का एक समूह कर्म लेण्या है ।१५ द्रव्यों में कषाय बढ़ाने का सामर्थ्य है। प्रज्ञापना की टीका में आचार्य ने लिखा है-कर्मों के द्रव्य विपाक होने वाले दूसरी मान्यता की दृष्टि से लेश्या द्रव्य कर्म निस्यन्द और उदय में आने वाले दोनों प्रयत्नों से प्रभावित होते रूप है । यहां पर निस्यन्द रूप का तात्पर्य बहते हुए कर्म- हैं। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव अपना कर्तृत्व दिखाते प्रवाह से है। चोदहवें गुण स्थान में कम की सत्ता है, हैं। जिसे पित्त-विकार हो उसका क्रोध बढ़ जाता है। प्रवाह है। किन्तु वहाँ पर लेश्या नहीं है। वहाँ पर नये ब्राह्मी का सेवन ज्ञानावरण को कम करने में सहायक है। कर्मों का आगमन नहीं होता। मदिरापान से ज्ञानावरण का उदय होता है। दही के ___ कषाय और योग ये कर्म बन्धन के दो मुख्य कारण सेवन से निद्रा की अभिवृद्धि होती है। निद्रा जो दर्शना१४ प्रज्ञा० पद १७ टीका, पृ० ३३३ । १५ कर्म द्रव्यलेश्या इति सामान्याऽभिधानेऽपि शरीर नामकर्म द्रव्यष्येव कर्म द्रव्य लेश्या। कार्मण शरीरवत् पृथगेव काष्टकात कर्म वर्गणा निष्पन्नानि कम लेश्या द्रव्यानीति तत्त्वं पुनः। उत्तरा०, अ० ३४ टी०, पृ. ६५० । ३८ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012041
Book TitleBhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani
PublisherBhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti
Publication Year1986
Total Pages450
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy