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विज्ञप्तिपत्रों की दूसरी विशेषता थी उनका सचित्र सं० १९१६ में खरतरगच्छाचार्य श्री जिनमुक्तिसूरि जी को निर्माण । इस शैली का विकास सत्रहवीं शती से हुआ । दिए गए विज्ञप्तिपत्र के पश्चात् अन्य किसी विज्ञप्तिपत्र का ऐसे पत्रों में आगरा-नगरस्थ संघ द्वारा तपागच्छाचार्य पता नहीं लगा है ! श्री विजयसेन सूरि को प्रेषित विज्ञप्तिपत्र का स्थान सर्व
प्रस्तुत उदयपुरीय विज्ञप्तिपत्र ७० फुट लंबा है और परि है। यह सचित्र विज्ञप्तिपत्र कलापूर्ण होने के साथ
१ फुट २ इंच चौड़ा। दोनों किनारों पर बेल-पत्तियाँ बनी साथ ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। इसमें शाही
हुई हैं। इसके चित्र तत्कालीन चित्रकला के महत्त्वपूर्ण चित्रकार श्री शालिवाहन ने वादशाह जहाँगीर द्वारा वारह
निदर्शन हैं और उदयपुर नगर की उस समय की स्थिति, सूबों के अमारि-उद्घोषणा का फरमान दिए जाने तथा
ऐतिहासिक स्थान, सामाजिक अवस्था, धार्मिक उत्साह राजा रामदास द्वारा उसके प्रस्तुत होने के भाव सहित
आदि चित्रित करते हैं। अन्य विज्ञप्तिपत्रों से इसमें अपनी आँखों-देखा दृश्य चित्रित किया है। चित्रों के
विशेषता यह है कि चित्र के नीचे नामोल्लेख करके प्रत्येक . नीचे लिखे परिचय से तत्कालीन भौगोलिक, राजनैतिक ,
स्थान का परिचय करा दिया गया है। इससे धर्मस्थान, एवं सामाजिक स्थिति का पता चलता है। इसमें आगरा
राजकीय भवन, व्यक्तिगत गृहों और दूकानों आदि सबकी का शाही दरबार, साधुओं का आगमन, दुर्गद्वारस्थित
जानकारी हो जाती है। चित्रों की समाप्ति के पश्चात् जयमल पत्ता का चित्र आदि पर्याप्त आकर्षक सामग्री
लिखी हुई वीनति' (विनती) भी महत्त्वपूर्ण है। इस विद्यमान है। चित्रपट के नीचे श्रावक की ओर से
विज्ञप्तिपत्र से निम्नलिखित बातें ज्ञात होती हैंवंदन , तपश्चर्या, धर्म-ध्यान आदि के संवाद तथा स०
(१) इसकी भाषा मेवाड़ी न हाकर मारवाड़ी है.. चंदू द्वारा निर्मापित नवीन जिन चैत्य की प्रतिष्ठा के हेतु
जिसका कारण यह हो सकता है कि लेखक पं० ऋषभदास. पधारने के लिये सूरि जी से नम्र प्रार्थना आदि वृत्तांत
पं० कुशलचंद मारवाड़ी प्रतीत होते हैं। इसमें मेवाड़ अंकित हैं।
के मक्की-जौ के खाद्य का निर्देश है। इसी शताब्दी में दूसरे भी इसी प्रकार के महत्त्वपूर्ण विज्ञप्तिपत्र अवश्य निर्मित हुए किंतु दुर्भाग्यवश वे सुरक्षित
(२) सेठ जोरावरमल जी बाफगा के वहाँ न होने नहीं रहे। इसके पश्चात् अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी
तथा बच्छावत मेहता शेरसिंह के काम पर न होने से विज्ञप्ति. में पचासों वहुमूल्य एवं कलापूर्ण विज्ञप्तिपत्र तैयार हुए थे,
पत्र भेजने में विलंब हुआ। वैशाख सुदी २ को राणाजी जिनमें कुछ तो नट हो गए और कुछ ज्ञानभंडारों अथवा
की कृपा से मेहता जो कार्य पर संलग्न हुए। व्यक्तिगत संग्रहालयों में अज्ञात पड़े हैं। बड़ौदा से प्रका
(३) यह चित्र-लेख लेकर श्रीहजूर ( महाराणा जी) शित 'एंशंट विज्ञप्तिपत्राज' में चौबीस विज्ञप्तिपत्रों का परि- का हरकारा वीकानेर आया था। चय छपा है जिनमें लगभग आधे सचित्र होंगे। उनके (४) इस विज्ञप्तिपत्र पर मेहता शेरसिंह, नगरसेठ अतिरिक्त एक दर्जन से ऊपर सचित्र विज्ञप्तिपत्र हमारी वेणीदास, बाफगा जोरावरमल सुलतानचन्द चनणमल जानकारी में हैं जिनमें से सं० १८८७ के उदयपुर के ( कोटा के दीवान बहादुर सेठ केसरीसिंहके पूर्वज ) इत्यादि सचित्र विज्ञप्तिपत्र का परिचय यहाँ दिया जा रहा है। इसके तत्कालीन प्रतिष्ठित एवं राजमान्य श्रावकों के हस्ताक्षर पश्चात् भी यह परंपरा कुछ वर्षों तक चलती रही. * परंतु हैं।
* सं०१८९८ का सचित्र बीकानेरीय विज्ञप्तलेख बीकानेर के बड़े उपाश्रय के ज्ञानभंडार में है, जिसका परिचय 'राजस्थान भारती'. वर्ष १ अंक ४ में प्रकाशित हो चुका है।
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