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अब वह पाठकों के समक्ष आ रहा है। इसी बीच कई अन्य बातों के उल्लेख भी नजरों से गुजरे पर नोट न करने से वे विस्मृति में विलीन हो गये।
हमारा अध्ययन जैनसाहित्य का अधिक होने से संभवतः सर्व जन प्रसिद्ध ८४ संख्यात्मक बहुत-सी वातों
का हम इस लेख में उल्लेख न कर सके हों। खोज करने पर ग्रंथान्तरों में अन्य ऐसे अनेक उल्लेख प्राप्त होने की सम्भावना है. अतः पाठकों को जो कोई भी संख्यात्मक वात जानने में आवे उन्हें प्रकाशित करें।
परिशिष्ट
(१) चौरासी देश ( विनयचंद्र कृत 'कविशिक्षा से)
१ गौड़ २ कान्यकुब्ज ३ कौल्लाक ४ कलिंग ५ अंग
दबंग
७ कुरंग ८ आचाल्य ९ कामाक्ष १० ओड्र ११ पुंड्र १२ उड़ीसा १३ मालव १४ लोहित १५ पश्चिम १६ काछ १७ वालम १८ सौराष्ट्र
१९ कुंकण २० लाट २१ श्रीमाल २२ अर्बुद २३ मेदपाट २४ मरुवरेंद्र २५ यमुना २६ गङ्गातीर २७ अंतर्वेदि २८ मागध २९ मध्यकुख ३० डाहता ३१ कामरूप ३२ कांची ३३ अवंती ३४ पापांतक ३५ किरात ३६ सौवीर
३७ औसीर ३८ वाकाण ३९ उत्तरापथ ४० गूर्जर ४१ सिंधु ४२ केकाण ४३ नेपाल ४४ टक्क ४५ तुरुष्क ४६ ताइकार ४७ बर्बर ४८ जर्जर ४९ कौर ५० काश्मीर ५१ हिमालय ५२ लोहपुरुष ५३ श्रीराष्ट्र ५४ दक्षिणापथ
५५ सिंघल ५६ चौड ५७ कौशल ५८ पांडु ५९ अंध्र ६० विंध्य ६१ कर्णाट ६२ द्रविड़ ६३ श्रीपर्वत ६४ विदर्भ ६५ धाराउर ६६ लाजी ६७ तापी ६८ महाराष्ट्र ६९ आभीर ७० नर्मदातट ७१ द्वीप देशश्च
* विनयचंद्र का समय सं०१२८५ के लगभग है ( पत्तन जैन भाण्डागारीण ग्रन्थ सूची. पृ०४८)।
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