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२३० : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय
धूनां वचन सुधारवा सधलां शास्त्र सुध । जेयन ध्रम देखाइयो बोहतां जन प्रतिबोध ।। सुध सांवद्य अखर सवे बचने कथआं वीर । पनर छत्रीसे प्रगटीस वचन सुध सरीरीज आंन तणों ।। ध्रम जगवो पांच मैं आरे प्रगट पहिलो रूपो पांमियो। चिंतामणि चारित्र रूप रसेसर पायो । उतपत इम अंकोर केवल बयणे प्रगट प्रवचन । पुन पडूर जिन शासन साचौ जती अंतर भेद अनंत ।। जीव रषेसर जे हुआ मोटा पुरुष महन्त । नाम लेअंतां नध नद्य संपत सुख संसार ।। सेवंतां सुख ऊपज उपशम गोर अणगार । मयण क्रोध माया मछर. दुरी निवारण दोष ॥ स्वल्प संतोषी संयम मलियो, मारग दाखण मोय । केवल बयणे प्रसिद्ध किय, पोहंचे पुण्य प्रमाण । जीव ऋषि जैन शासन जती, बडो गुण जांणी माया काय मोहथी। वश कीधा मुनिवरजी,जीव ऋषि जे वडा जती। कोअ नहीं एवं काज जीवऋषीश्वर जीवतां । सियल संतोषीसुख पलडी ग्रहीअ पटिन रूपक बरसंघ रखि ।।
बरसंघ रसेसर धार सवांणे जतीस रे उदयो जगे एणे जाणे । भलां गुण अन्तर जाणे भेद बचन विचार लह दाय भेद ।। धरा लग धरम न चूंकि ध्यान, मनीसर महिमा मेर समान । लको जन धरम लिहिल वेलाय, करि भवि एक लगार ।। कषाय दएि दहबीस में कदण दोष, स्वल्प आहार माने संतोष । ममता माया छंडी मोह संजमें चासण चाढि सोह ।। ईर्या सुद्ध लेई आहार आजू न कालिं वडी अणगार । हृदय मूल न आणै रीस बरसंघ ऋष वीस बावीस ।। प्रसिद्ध महाव्रत पालि पंच नवें तत्व' सवि जाण संच । भेद न बंचजौ लाख अनंत जीव अजीव सुर पण साधे ।। जोग सदीव क्रिया सुध साध निवारण क्रोध अबोधक जीव दिए प्रतिबोध । न कदे न पाप वधारण नाम धरता पाग न चूंकि ध्यान ।। जोय कर कीडी कुंजर जेम निरमल काया जात न गेम । ऋषीश्वर जीव दया प्रतिपाल, दिन प्रति वयण आपद आंण ।। अभयज दान आलोहि अख परज न हालि भारंड पंख । अढारे पाप तजें अपराध सदा सुध मारग दाखि साध ।। प्रवचन सूत्र सूद्र म प्रवेस अमीरस वांणी दिए उपदेस । मल दल कंद ए अमली मांण व्रण बस जोध मदन वषांण ।। रतिपति राव कियो मन रोस उडोड्या ढे कम असोस । दलपते आप अनंग दीवान धसरवा पाप कनि दरवांन ।। कहा जे च्यारे क्रोध कषाय रिहितुं आगलौ सुरते राय । वधारें क्रोध करि भडवाअ रहे लो आगमि अन्द्र राह । भंजो भाराये अषाढी भूत झीता जूध प्राणे वडा जम दूत ॥ गीतारथ मोटा गाजी गात्र मानव तणी त्याहां केई मात्र । मदन कहे ऋषि छोडो माण पुगी कोण मुसु जोध परांण ।। आगि वरसंघ कहि अणगार कसो तुम अणकरि अहंकार । आगा रखें संकर बोले अगने मनावो तूं नाहार मदन ।।
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