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मुनि कान्तिसागर : लोकाशाह की परंपरा और उसका अज्ञात साहित्य : २३१
वरसंघ रषे तणीं सुणों वांण, मदन महा चढ्यो भड प्रांण । उलसे आयौ आप अणंग जतीस रे साथ जबरो जंग || जप ऋषि वरसंघ जीत जू यार अरिहंत देव तणों आधार । अपूरव भाव अंतर न आंगें पंच व्रत... पवंग पलार्णं ॥ बाजि षट त्रीस वार्जित्र घन सजि अगं सियल तणो ते संत । सजोडा भारथे पंच सुभत पूइसन मावि त्रिण गुपति ॥ मुनिसर भोटि जुध मंडाण अनंग सरे संकरे अंवासण...। प्रवचन सूत्र सुखिम प्रहार धर्मचक्र नवाडो व्रत धार ॥ सुद्ध सिमात पेटो साहि मदन हि कप हुआ मन मोहि दीठो जीव रिषि तणों प्रसाह मडी दोहो वर कियो मदराअ । नपेसर तुझ खमि कोण ताप पर परजं व्यासी पाप । छके मयण गीओ बल छंड मोटां सु कोअ न सके मांड || जीतो वरध हुआ जिकार स सब जंपि सयल संसार । करि जन शासन कोडि कल्याण वदे पठत्रीसे वृत्त वषांण ॥
कलश
पूज्य प्रतपो संसार सयल जीव सुखकारी । उत्तम रिषि अणगार ध्यान शुद्धे व्रतधारी ॥ शासन नध्य सांनध वस्यो सघलें ख्यिाती । उत्कृष्टो आचार गच्छ वधज्यों गुजराती ॥ ताहरें तापि समया तणां दोषी दह वाटे गया । वरसंघ रिषि कव्य नेंम कहे सदा प्रतिपालो दया ॥
इति श्री वरसंघजी रो छंद ।
संवत १७७१ वर्षे चैत्र मासे कृष्ण पक्षे चतुर्थी तिथौ दाफा मध्ये लि० पू० ऋ० श्री वेलजी तत्शिष्य पू० ऋ० श्री कान्ह जी तत्शिष्य लि० मुनि भोजा । भोजा नंदा पठनार्थं ॥
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श्राचार्य जसवंत -छंद
श्री जिनशासन सलहि ए साधां तणां संबंध, जैन तणां जाणि जकै नर ता न्यांन बंध ॥ जेहा जसवंत जंपीए आचारज अणगार, वाणि अमिरस जे वयण सहु वदे संसार ॥ जेहा जसवंत जंपीए आचारज अणवीह, धन्य महुरति ति धन घडी धन्य वेला धन्य दीह || नयरी धन्य नवि साहसी निज निरखंत निधांन, सलहा आवै सारसा उत्तम पुरुष समान || जहां एवि पधारिया परबत नें प्रथेराज, परबत घरे सहोदरा अलि पडि अम आवाज ॥ उदर तिहारे ऊपनी मही पडि महिमावंत, जोति महा धण जागीयो जिन शासन जसवंत || रषभ तणा वसीआ रदे सुधा शास्त्र सार, मांगे मां वित्रांकनें अनुमति जस उदार ॥
छंद
माता दीओ अनुमती तुझ गुण नवजसो दाखि ।
मुझ नत्थ संसार रा सुख त्याग चित्तमां धारीयो वैराग ॥
سال
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