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________________ ११० मुनि श्रीहजारीमल स्मृति ग्रन्थ : परिशिष्ठ Jain Education International निवासी सागर वि. श्री हरीन्द्र भूषण जैन - सागर ( म०प्र०) के वि. से पी० एच० डी० की उपाधि प्राप्त की. इस समय विक्रम वि० वि० उज्जैन में प्राध्यापक हैं. आपने कालिदास पर अनेक शोधपत्र लिखे हैं. डी० लि० के लिए आचार्य हेमचन्द्र पर अनुसन्धान कर रहे हैं. स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय भाग लेने के पुरस्कार स्वरूप चार मास का कारागार और चार वर्ष का गुप्त जीवन व्यतीत कर चुके हैं. जैन और संस्कृतसाहित्य के तलस्पर्शी विद्वान् है . डा० इन्द्रचन्द्र शास्त्री — जन्मस्थान डबवाली मंडी. प्रारंभिक अध्ययन सेठिया विद्यालय बीकानेर में करके आप बनारस गए. वहाँ संस्कृत, अँगरेजी आदि भाषाओं का तथा दर्शन-शास्त्र का उच्चकोटि का अध्ययन किया. न केवल जैन समाज के वरन् समस्त भारत के प्रमुख विद्वानों में आपकी गणना है. वेदान्त और जैन दर्शन के पारंगत पण्डित और प्रथम श्रेणी के लेखक हैं. दुःख है कि आप महिषों से विहीन हो गए हैं, फिर भी आपकी साहित्यसाधना अविराम गति से चल रही है. अँगरेजी अनेक ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं. और हिन्दी भाषा में आपके महासती श्री उमराव कुंवरजी - जन्मस्थान दाविया ( किसनगढ़) दोराई ( अजमेर) के श्री चम्पालालजी हींगड़ के साथ पाणिग्रहण हुआ. अल्पकाल में ही पतिवियोग होने पर आपने मृत्युंजय महामार्ग का अवलम्बन लिया. कुछ समय पश्चात् आपके पिता श्रीजगन्नाथसिंहजी ने भी, जो मुनि मांगीलालजी के नाम से प्रसिद्ध हुए, आपके पथ का अनुसरण किया. महासतीजी ने जंग सिद्धांताचार्या उपाधि प्राप्त की है. अंगरेजी और संस्कृत - प्राकृत भाषा की विदुषी हैं. प्रवचन शैली मधुर और प्रभावक है. राजस्थान तो आपका विहार क्षेत्र है ही, युक्तप्रान्त, हिमाचल प्रदेश और काश्मीर तक आपने पद-भ्रमण करके अद्भुत साहस का परिचय दिया है. साध्वी श्रीकुसुमवतीजी -- आपकी जन्मभूमि मेवाड़ है. आप साध्वीसंघ में अग्रगण्य विदुषी हैं. संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी आदि भाषाओं में निपुण, जैनसिद्धांताचार्य, परीक्षा, कुन्दन जैन सिद्धांतशाला ब्यावर से उत्तीर्ण की है. | प्रवचनशैली प्रभावक है. सुलेखिका हैं. विभिन्न पत्रों में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं. आपकी मुख्य बिहारभूमि राजस्थान है. भविष्य में आपसे बहुत आशाएँ हैं. श्री जैनेन्द्रकुमार दो चार पंक्तियों में परिचय देना जैनेन्द्रजी के महत्त्व को कम करना है. आप अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के विचारक और साहित्यकार हैं. आचार्य श्रीतुलसी-आचार्य श्री तुलसी का परिचय देने की आवश्यकता नहीं. 'तुलसी- अभिनन्दन ग्रंथ, आपके महान् व्यक्तित्व का परिचायक है. आपके आचार्यत्व -काल में तेरापंथी समाज ने ज्ञान की सभी दिशाओं में स्पृहणीय एवं सराहनीय प्रगति की है. युग को परखने वाले धर्माध्यक्षों में आपका स्थान बहुत ऊँचा है. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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