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________________ किया। अकस्मात् कोई ऐसा प्रसंग आया कि बागरा-निवासी किसी विवाद को लेकर सियाणा आये । यह एक अच्छा अवसर उपस्थित हुआ। इस समय जैन लोग तो एकत्रित हुए ही कई अन्य जातियों के बन्धु-बान्धव भी वहाँ उपस्थित हुए। 'कल्पसूत्र' की प्रस्तावना में एक स्थान पर लिखा है : "तेमां बली ते वखतमा विशेष आश्चर्य उत्पन्न करनारी आ वात बनी के ते गामना रेहवासी क्षत्री, चौधरी, घांची, कुंभारादि अनेक प्रकारना अन्य दर्शनीऊ तेमा बली यवन लोको अने ते गमना ठाकोर सहित पण साथे मली सम्यक्त्वादि व्रत धारण करवा मंडी गया।" इससे इस तथ्य का पता चलता है कि जैन साधु का जनता-जनार्दन से सीधा सम्पर्क था और उन्हें लोग श्रद्धा-भक्ति से देखते थे। अन्य जातियों के लोगों का एकत्रित होना और वधनिमित्त लाये गये पशुओं को छोड़ना तथा अहिंसा व्रत को धारण क.सू. बा. टी, चित्र ५४ पार्श्वनाथ RWAR 'भो तपसी यह काठ न चीर, यामें जुगल नाग हैं बीर ।' -पार्श्वनाथ ; भूधर; ७६१ करना कुछ ऐसी घटनाएँ हैं, जो आज से लगभग नब्वे वर्ष पूर्व संत्रस्त थे। ऐसे समय में ज्ञान का सन्देशवाहक 'कल्पसूत्र' और घटित हुई थीं। यह जमाना ऐसा था जब सामाजिक और सांस्कृ- पर्युषण में उसका वाचन बड़ा क्रान्तिकारी सिद्ध हुआ। श्रीमद् की तिक दृष्टि से काफी उथल-पुथल थी और लोग घबराये हुए थे। इस टीका में कथाएँ तो हैं ही उसके साथ ही विचार भी हैं, ऐसे सामाजिक कुरीतियों और धार्मिक ढकोसलों के शिकंजे में लोग काफी विचार जो जीवन को जड़-मूल से बदल डालने का सामर्थ्य रखते हैं। क. सू. बा. टी. चित्र ६६ 'दिव्य भव्य थी बनी बरात नेमिराज की जा रही नरेन्द्र उग्रसेन सद्म पास में। -श्री शिवानन्दन काव्य ; विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी; सर्ग. ६, वृ. २४ राजेन्द्र-ज्योति Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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