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अ. भा. श्री जैन नवयुवक परिषद् के उद्देश्य
कांतिलाल जैन
"संस्था" शब्द ही से स्पष्ट होता है कि उसका एक विधान होगा, संगठन के नियम होंगे, उसके कार्य के निश्चित उद्देश्य होंगे। संस्था की अपनी एक परिधि अथवा सीमा होती है। ___ अ. भा. श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद् परम पूज्य जैनाचार्य श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज की अनुयायी संस्था है जिसके निम्न उद्देश्य हैं:
१. धार्मिक शिक्षा २. समाज संगठन ३. समाज सुधार
४. आर्थिक विकास समाज हित में बनाए गए उद्देश्य पर कार्य करना एक जीवित संस्था का लक्ष्य रहना चाहिए। उद्देश्यों के अनुसार संस्था के कई अधिवेशन सम्पन्न हुए और संपूर्ण भारत में अनेक शाखाएं स्थापित हैं। स्थान स्थान पर धार्मिक विद्यालयों की स्थापनाएं हई, जिनमें हजारों छात्र-छात्राएं जैन धर्म का ज्ञान ग्रहण कर रहे हैं। समाज में एकता बनी रहे, इस दृष्टि से सौहार्द्र, समता, एकता, स्नेह वृद्धि के लिए परिषद आयोजन करती रही है तथा समाज की एक विश्वसनीय कड़ी के रूप में वह संस्था उभर रही है। आज समाज के अनेक कार्यों की संचालक संस्था बन रही है। इसके माध्यम से ही सामाजिक
कार्य होते हैं। समाज के जीवन में इसका पूर्ण एकाकार हो गया है। परिषद समाज, व समाज परिषद, एक सिक्के के दो पहलू हैं। परिषद समाज की प्रतिनिधि संस्था है। सामाजिक सुधारों की दृष्टि से हमारे नवयुवक परिषद से नई दिशा ग्रहण कर रहे हैं। पर्दाप्रथा, दहेज, सुशिक्षा, मृत्युभोज आदि बुराइयों की समाप्ति की दिशा में कार्य हो रहा है। मैं समझता हूं परिषद यदि प्रगतिशील रही तो इस दिशा में इतना अधिक कार्य होगा जिसका लेखा रखना ही कष्ट साध्य हो जाएगा। परिषद ने आर्थिक विकास के लिए अब तक जो कार्य किया है, उनमें परिषद सहायता निधि, मध्यमवर्गीय परिवारों की सहायता बुकबक आदि प्रमुख हैं। संस्था आवश्यकतानुरूप इस दिशा में संलग्न है।
यथार्थ में परिषद समाज की अभिन्न अंग है। समाज में परिषद ही एक ऐसी संस्था है जो पूज्य राजेन्द्र सूरीश्वरजी के मिशन को पूरा कर रही है। फिर यह संस्था तो अखिल भारतीय है इसमें पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व है, जो बंधु इससे अलग-थलग हैं वे संस्था में आयें और सेवा भावना में जुट जावें । संस्था के लिए अपना सुख त्यागना होता है तब समाज के लिए कुछ बनता है। बैठकर, आलोचना कर हम समाज का हित न कर सकेंगे। समाज की प्रतिनिधि संस्था किसी एक से नहीं निखर सकती उसके लिए हजारों हाथों के स्पर्श की आवश्यकता होती है ।
राजेन्द्र-ज्योति
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