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होती रहीं जो अपने निर्णयों से शाखाओं को मार्ग दर्शन परिपत प्रचारित करती रहीं । पदाधिकारियों के दौरे से समग्र परिषद् शाखाएँ तेजी से अपने लक्ष्य प्राप्त करने हेतु प्रेरित हो उठीं । समाज का सम्पूर्ण सहयोग व विश्वास परिषद् के साथ जुड़ता गया। कोई नहीं जानता था कि एक भावुक विचार व्यावहारिक धरातल पर युवकों के जीवन का सम्बल बन जावेगा ? परिषद् की सदस्य संख्या का आँकड़ा निरन्तर बढ़ता जा रहा था । शाखाओं के विधिवत् चुनाव केन्द्रीय प्रतिनिधियों की उपस्थिति में किये जाते रहे । विधान और उसकी परम्पराओं का निर्वाह परिषद् कार्य समिति की बैठकों व अधिवेशनों के निर्णयों के प्रकाश में होने लगा। परिषद् का सन्देश सर्व तक पहुँचाने के आन्दोलन ने गति पकड़ ली । वह सामाजिक समस्याओं की गहराई तक पकड़ करना चाहती थी उदाहरणार्थ परिषद् केवल पाठशालाएँ ही नहीं बनाना चाहती थी, उन्हें एक सुव्यवस्थित मनोवैज्ञानिक गुणात्मक पाठ्यक्रम भी देना चाहती थी। आर्थिक विकास की दृष्टि से उद्योग केन्द्र अप योजना, सिलाई प्रशिक्षण मालाएँ आदि बनाने के लिये परिषद् की प्रेरणा प्रवाहमान थी।
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नवयुवक परिषदों के साथ ही बाल व कन्या परिषदों का निर्माण भी हुआ। कई स्थानों पर बालकों व कन्याओं ने इन शाखाओं का फैलाव किया । इनके द्वारा भी विभिन्न प्रवृत्तियों का कार्य हाथों में सूत्रित किया गया ।
मरुधर की ओर परिषद् क्रान्ति की लहरें बढ़ने लगीं। चौथा अधिवेशन परिषद् ने मरुधर में करने हेतु जालोर जिले की वागरा तहसील के एक ग्राम आकोली का चयन किया । वहाँ श्री राजेन्द्र प्रतिष्ठोत्सव का कार्यक्रम पूज्य मुनिराज गणाधीश श्री विद्याविजयजी महाराज के सान्निध्य में सम्पन्न हो रहा था जिसमें हजारों धर्मभक्तों के भाग लेने की संभावना थी। परिषद् को मरुधर प्रदेश में प्रचार हेतु एक उत्तम प्रसंग की प्राप्ति हुई और उसने उसका उपयोग धर्म प्रभावना के साथ संगठन शक्ति सबल करने के लिये भी कर लिया। अखिल भारतीय स्वरूप देने के एक वर्ष में ही जहाँ उसका गगनघोष गुजरात में गूंजा, वहीं उसका अधिवेशन दिनांक ७ व ८ मई ६२ को मरुधर में सफलता प्राप्त करने लगा। अधिवेशन को मार्ग-दर्शन प्रदान करने हेतु पूज्य मुनिराज श्री विद्याविजयजी महा ने उपस्थिति प्रदान की। प्रतिष्ठोत्सव के अवसर पर परिषद् के स्वयंसेवक दल ने भी तनतोड़ काम किया जिससे सर्वत्र प्रशंसा प्राप्त हुई । मरुधर में परिषद् के उद्देश्यों के सम्बन्ध में रुचि बढ़ने लगी । अधिवेशन की अध्यक्षता श्री सौभाग्यमल जी सेठिया ने की।
पांचवां अधिवेशन पुनः परिषद् की जन्मभूमि श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पर हुआ । श्री मोहनखेड़ा पर स्वर्गस्थ आचार्य देव श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के वस्त्र का प्रतिष्ठोत्सव २० फरवरी १९६४ को सम्पन्न हुआ। उसी प्रसंग पर आचार्य पाटोत्सव का समारोह भी हुआ एवं पुष्य गणाधीश श्री विद्या विजयजी महाराज को पूज्य आचार्य श्रीमद् विजय विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के रूप में पदासीन किया गया। इस
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अवसर पर परिषद् के सैकड़ों कार्यकर्त्ताओं ने तनझोंक कर उत्सवों की शानदार व्यवस्था में अपनी सेवा समर्पित की। इनके उपरांत नूतनाचार्य श्रीमद् विजय विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज की पवित्र निश्रा में मोहनखेड़ा तीर्थ पर १६ व १७ मार्च १९६४ को परिषद् का पाँचवां अधिवेशन श्री सौभाग्यमलजी सेठिया की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। पूज्य नूतनाचार्य श्री ने परिषद् को आशीर्वाद प्रदान करते हुए इसकी सफलता के लिये अपनी शुभकामनाएँ व्यक्त की । उनके आशीर्वाद से परिषद् में नवीन उत्साह दौड़ने लगा ।
परिषद् की एँ चलती रहीं। प्रवृत्तियां समाज की उन्नत करने के लिये क्रियाशील रहीं लेकिन पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी महाराज, 'मधुकर' के गुजरात प्रदेश में विचरण से परिषद् की गति मन्द हो गई । शिथिलता ने परिषद् के किनारों को प्रभावित कर लिया। फलतः पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी महाराज 'मधुकर' ने इसे जागृत करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने १९६५ में अहमदाबाद में परिषद् के समस्त कार्यकर्त्ताओं की एक विशाल बैठक आमंत्रित की। परिषद् के कार्यकर्त्ता नयी दिशा प्राप्त करने अहमदाबाद की ओर अग्रसर हो गये । उनका अभियान शिथिल अवश्य हुआ था किन्तु अपने संकल्पों के प्रति समर्पण की भावना उनमें जीवित थी । अहमदाबाद की बैठक में परिषद् की पिछली समस्त गतिविधियों का अवलोकन किया गया एवं नये सिरे से कार्य में जुट जाने का आव्हान किया गया ।
गतिविधियों में उठाव आया । परिषद् की शाखाओं में जीवन फूंका जाने लगा । उन्हें कन्द्रीय कार्यालय से परिपत्र जारी किये गये । बैठकें नियमित होने लगीं। पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी 'मधुकर का चातुर्मास रानापुर में हुआ । २१ अगस्त १९६६ को पूज्य मुनिराज की मित्रा में परिषद् कार्यकर्ताओं की एक विशाल बैठक आयोजित की गई। इसी ने छठे अधिवेशन का भी रूप ले लिया । अध्यक्ष श्री सौभाग्यमलजी सेठिया ने अपने समस्त पदाधिकारियों सहित त्यागपत्र प्रस्तुत कर दिया। श्री सेठियाजी परिषद् की स्थापना से अध्यक्ष पद पर थे। उनने पूरी निष्ठा व कर्त्तव्य परायणता के साथ अपने पद का निर्वाह किया । व्यस्तता के कारण उनने अपने पद से निवृत्त होने की इच्छा प्रकट की । भारी हृदय के साथ सभी ने श्री सेठियाजी व उनके सहयोगियों का त्यागपत्र स्वीकार कर लिया । 'केन्द्रीय कार्य समिति के स्थान पर एक तदर्थ समिति नियुक्त कर दी गई । परिषद् के केन्द्रीय संयोजक पद पर थी शांतिलालजी भंडारी (झाबुआ ) नियोजित हुए। श्री भंडारीजी ने परिषद् को पुनर्गठित करने का प्रयत्न किया । १९६७ में श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पर पुनः परिषद् की बैठक हुई जिसमें श्री हुकुमीचन्दजी पारिख ( इन्दौर ) संयोजक मनोनीत किये गये । रानापुर चातुर्मास के पश्चात् पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी महाराज 'मधुकर' ने चातुर्मासों के लिये राजस्थान तथा गुजरात की ओर प्रयाण कर दिया। अपने प्रेरणा केन्द्र से सम्पर्क टूट जाने के कारण परिषद् गतिहीन होने लगी । प्रवृत्तियाँ लगभग शून्यता की ओर बढ़ने लगी। परिषद् भी जहां की तहां रुक गई ।
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