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________________ नगरों अथवा ग्रामों में श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक सभा, श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक मण्डल, श्री राजेन्द्र जैन सेवा संघ आदि विभिन्न नामों से युवा संगठन संस्थाओं के रूप में संचालित हो रहे थे । वे में आबद्ध होने लगे । जहाँ कोई युवा संगठन नहीं था, एकसूत्र वहाँ परिषद् का बीज आरोपित करने का प्रयत्न किया गया। फलतः एक साथ सत्रह शाखाओं का अस्तित्व उभर कर दैदीप्यमान हो गया । परिषद् के प्रति समाज के स्नेह की धाराएँ प्रभावित होने लगीं । पदाधिकारियों के दौरे हुए। प्रवृत्तियों का जन्म होने लगा, योजनाएँ मूर्तरूप तक पहुँचने लगीं, कदम निरंतर अग्रशील होते गये । बुजुर्गों से आशीर्वाद बौछारों की भांति उछलने लगे । समाज के हर व्यक्ति में एक अनूठा सामाजिक स्पन्दन पैदा हो गया । द्वितीय अधिवेशन का प्राचीपुरुष रतलाम के प्रांगण में झांकने लगा, दिशादर्शन के लिये पूज्य गुरुदेव श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के पास श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पर श्री सौभाग्यमलजी सेठिया तथा रतलाम के कार्यकर्ता पहुँचे । गुरुदेवश्री का आशीर्वाद प्राप्त कर अधिवेशन का कार्य प्रारंभ किया। पूज्य मुनिराज श्री कल्याणविजयजी महा., मुनि श्री हेमेन्द्र विजयजी म., मुनि श्री सौभाग्य विजयजी म., मुनि श्री रसिक विजयजी म., मुनि श्री जयन्तविजयजी म. 'मधुकर', मुनि श्री जयप्रभविजयजी म., मुनि श्री पुण्य विजयजी म., मुनि श्री लक्ष्मणविजयजी अधिवेशन में विद्यमान थे। श्री सौभाग्यमलजी सेठिया की अध्यक्षता में द्वितीय अधिवेशन १४ व १५ मई १९६० को दो दिवसीय कार्यक्रमों के साथ सम्पन्न हुआ । परिषद् के कार्यकर्ताओं ने संगठन व सेवाओं की शपथ ली। परिषद् का शव तुतलाने लगा । सेवा के संकल्प का साकार दृश्य समाज के धरातल पर उतरने लगा। परमपूज्य गुरुदेव श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के सान्निध्य में श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पर उपधानतप का आयोजन हुआ। परिषद् शाखाओं से स्वयंसेवकों के दल उपधानस्थल की ओर उमड़ने लगे । श्रम तथा पुरुषार्थ का इतिहास अपना अध्याय अंकित करने के लिये सामग्री जुटाने लगा । परिषद के कार्यकर्ता तप कर खरे उतर आये । पूज्य गुरुदेवश्री ने स्वयं परिषद् कार्यकर्ताओं की कर्मठता की प्रशंसा प्रदान की । साथ ही परिषद् ने समाज सुरक्षा की दृष्टि को आंजने का भी प्रयास किया । भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित रिलिजियस ट्रस्ट बिल का तीव्र विरोध किया । गाँवों व शहरों से सैकड़ों विरोध पत्र भेजे गये। देवनार में प्रस्तावित थाने की राक्षसी योजना का परिषद् ने प्रतिकार किया। श्री भोयणीजी तीर्थ पर लगाये गये यात्री दर्शन कर के विरुद्ध अलख जगाया। जबलपुर में गुण्डों द्वारा किये गये ध्वन्स के विरुद्ध जनमत जागरण किया। लगातार प्रगति का अभियान समाज शिखर का आरोहण करने के उद्देश्य से अग्रसर होता रहा। समाज में अनुकूल प्रतिक्रिया हुई। दो वर्ष का कार्यकाल अपने प्रति समाज में विश्वास संचालित करने के लिये पर्याप्त था । २२ Jain Education International इस मध्य त्रिस्तुतिक समाज तथा परिषद् पर तीव्र वज्रपात हुआ पूज्य गुरुदेव श्रीमद्विजय पतीन्द्र यूरीश्वरजी महाराज का दुःखद स्वर्गवास हो गया। अपने जन्मदाता को खोकर परिषद् कर्तव्य हो गई पुनः आत्मविश्वास के साथ उसने अपना कदम संभाला । , तृतीय अधिवेशन को बिगुल खाचरौद नगर में गूंजने लगी । १९ व २० मई १९६१ परिषद् जीवन के अमृत-दिवस सिद्ध हुए । मार्गदर्शन से अमृत वृष्टि करने के लिये इन्दौर बिराजित पूज्य गणाधीश मुनिराज श्री विद्याविजयजी महाराज से अध्यक्ष महोदय व प्रधानमंत्री महोदय मिले व उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर लौटे । पूज्य मुनिराज श्री सौभाग्य बिजयजी महा., मुनि श्री देवेन्द्र विजय जी म., मुनि श्री रसिक विजयजी म. मुनि श्री जयन्तविजयजी म. 'मधुकर', मुनि श्रीजयप्रभ विजयजी महा., मुनि श्री पुण्यविजयजी महा., मुनि श्री भुवन विजयजी महा. का सान्निध्य परिषद् अधिवेशन को प्राप्त था। इसी अधिवेशन में परिषद् को अखिल मालवा मेवाड़ प्रान्तीय सीमा से विस्तृत कर अखिल भारतीय रूप में अंतरित करने का ऐतिहासिक निर्णय किया गया। इसी अधिवेशन में “नवयुवक" शब्द को लेकर उग्र विचार विर्मश हुआ एवं अन्त में यही निश्चय किया गया कि परिषद् के नाम की यथास्थिति बनाई रखी जावे । तृतीय अधिवेशन के तत्काल बाद केन्द्रीय अध्यक्ष श्री सौभाग्यमलजी सेठिया तथा केन्द्रीय प्रधानमंत्री श्री भंवरलालजी छाजेड़ ने परिषद् प्रचारार्थ दौरा प्रारम्भ किया । इन्दौर में गणाधीश पूज्य मुनि श्री विद्याविजयजी महा. (बाद में आचार्य) तथा पूज्य मुनि श्री कल्याणविजयजी महाराज से आशीर्वाद प्राप्त कर उन्होंने राजगढ़ से निमाड़ क्षेत्रीय दौरा प्रारम्भ किया। वे टाँडा, बाघ, कुक्षी तथा अलीराजपुर होते हुए दोहद से गुजरात में प्रविष्ट हुए। गुजरात में पहली शाखा के रूप में आनन्द ने अखिल भारतीय स्वरूप का शुकुन किया। वहाँ से उनने अहमदाबाद तथा थराद जाकर परिषद् का ज्योतिपुञ्ज आलोकित किया । 1 इस सारी अवधि के दर्मियान परिषद् शाखाओं की संख्या में अभिवृद्धि होती गई । शाखाएँ अपने यहाँ गतिविधियों के द्वारा समाज जागरण को एक के बाद दूसरी उपलब्धियों से संयुक्त करने लगी । उत्सव आयोजनों के अन्तर्गत महावीर जयन्ती, राजेन्द्र जयन्ती यतीन्द्र जयन्ती भूपेन्द्र जयन्ती धनचन्द्र जयन्ती कार्तिक पूर्णिमा आदि पर्वो को कार्यक्रमों से सजाया जाने लगा । स्थान-स्थान पर धार्मिक पाठशालाओं की स्थापना हो गई। तीसरे वर्ष के अन्त तक इन पाठशालाओं में छात्रों की संख्या पांच सौ तक पहुँच गई । केन्द्रीय कार्यालय ने स्वयं भी सहायता देकर पांच नवीन पाठशालाओं का शुभारम्भ करवाया । पाठशालाओं के साथ ही स्वाध्याय मण्डल, वाचनालय, पुस्तकालय, भाषणमालाएँ, हस्तलिखित पत्रिकाएँ, व्यायाम केन्द्र भी परिषदों के माध्यम से जन्म तथा जीवन पा गये। इन प्रवृत्तियों की संख्या बराबर बढ़ती गई। परिषद् की केन्द्रीय कार्यसमिति की बैठकें समय-समय पर राजेन्द्र- ज्योति For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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