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________________ शुभ-सन्देश श्रद्धालु महानुभाव ! यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि जिस भूमि से परिषद् का प्रादुर्भाव हुआ था उसी पुण्य स्थली पर पुनः परिषद् का अधिवेशन होने जा रहा है । । वर्तमान की स्थिति पर दृष्टिपात करते हैं तो हम सभी को भलीभांति प्रतीत हो रहा है कि समाज धार्मिक प्रवृत्तियों में किस प्रकार शिथिल होता जा रहा है ? सर्वत्र धार्मिक शिक्षा का अभाव दिख रहा है जिससे अपन सभी का सर्वागीण विकास अवरुद्ध हो रहा है। स्व० परम कृपालु पूज्य गुरुदेव श्री ने इस क्षति को दूर करने के लिये ही इस परिषद् की स्थापना की थी। मुझे प्रसन्नता है कि आप सभी उस बात को पूरा करने के लिये कृतसंकल्प हैं। ___ गुरुदेव श्री के उन आदेश एवं उपदेशों का आचरण एवं प्रचार करना हर एक श्रद्धालु का परम कर्तव्य है। इसीलिये मैं चाहता हूं कि परिषद् की प्रगति में हर व्यक्ति तन, मन और धन से सहयोग देकर इसको उन्नत करे। अन्त में कार्यकर्ताओं को धन्यवाद देता हुआ परिषद् के प्रति मेरी हार्दिक शुभ कामना प्रकट करता हूं और समाज की ओर से परिषद् को सम्पूर्ण सहयोग मिलेगा ऐसा विश्वास करता हूं। शुभम् । श्री मोहनखेड़ा तीर्थ राजगढ़ (धार) दिनांक १६-१७ मार्च --विजय विद्याचन्द्र सूरि राजेन्द्र-ज्योति Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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