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रीता दिन
और आज का दिन भी यूं ही बैठे बैठे अर्थहीन बातों में बीत गया । अपने हित कुछ किया नहीं औरों को भी कुछ दिया नहीं। न सीखा : न पढ़ा एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा : माथे पर पसीना आया नहीं दिल खोल कर गाया नहीं। जीवन घट का एक और बिन्दु यूं ही रीत गया
-और आज का दिन भीप्रभु मुझको क्षमा करो बस इतनी करुणा करो कि ऐसे खाली सुबह शाम जिनमें सधे न सार्थक काम और न गुजरे दो दिन का जीवन है-- कुछ तो कर गुजरें।
- दिनकर सोनवलकर
राजेन्द्र-ज्योति
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