________________
इसके प्रत्येक अध्याय के अन्त में लिखित "भाष्यानुसारी"" पद उचित है क्योंकि इसमें तत्वार्थभाष्य के लगभग प्रत्येक पद का विवेचन किया गया है। उदाहरणार्थ तत्वार्थसूत्र १-४ पर रचित भाष्य के प्रत्येक शब्द पर सिद्धसेनगणि ने टीका रनी है। "
सिद्धसेनगणीय तत्वार्थभाष्यवृत्ति का अवलोकन करने से प्रतीत होता है कि सिद्धसेनगणि की भाषा शास्त्रीय है" परन्तु कहीं-कहीं इनकी भाषा ललितमयी भी है । इसका उदाहरण सिद्धसेनगण द्वारा किया गया षड्ऋतु वर्णन है ।48 इस वर्णन को पढ़ने से ऐसा आभास होता है कि यह किसी दर्शनशास्त्र का अंश न हो कर किसी काव्यग्रंथ का टुकड़ा है। उदाहरणार्थ
तथा वर्षासु - सौदामनीवलयविद्योतितोदराभिनवजलधरपटलस्थगितमम्बरमारचित्तपाकशासनचापलेखमा सारथाराप्रपातशमितधूलिजा च विश्वंभरामण्डलम् अद्गमुखाः समीराः कदंबकेतकरजः परिमलसुरभयः, स्फुरदिन्द्रगोपकप्रकरशोभिता शाद्बलवती भूमि:, कूलकषजलाः सरितः, विकासिकुटजप्रसून कन्दलीशिलीन्ध्रभूषिताः पर्वतोपत्यकाः, पयोदनादाकर्णनोपजाततीव्रोकष्टाः परिमुषितमनीषा इव पवासिनः पातरुशिखण्डिमण्डलमण्डूकध्वनिविषवेगमोहिताः पथिकजायाः, क्षणं क्षणद्युति दीपिकाप्रकाशिताशामुखासु क्षणदासु परिभ्रमत्खद्योतकीटाकासु सच्चरन्ति मसृणमभिसारिकाः, पकबहुलाः पन्थानः क्वचिज्जलाकुलाः क्वचिदविरलवारिधारा- द्योतहा रिसेकताः नमोनभस्ययोम सियोः। 44
सिद्धसेनगणि की एक अन्य विशेषता है कि वह स्वकथन का स्पष्टीकरण दृष्टान्त देकर करते हैं । यथा तत्वार्थ सूत्र २- ३७ की भाग्यवृत्ति में तेजोलेश्या के विषय में कहा गया है । तेजोलेश्या का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह बताने के लिये सिद्धसेनगणि ने जैन इतिहास से गौशाला का दृष्टान्त दिया है, जिसने भगवान महावीर पर तेजोलेश्या छोड़ी थी । 45 सिद्धसेनगणि की इस प्रवृत्ति के द्योतक अनेक स्थल तत्वार्थभाष्यवृत्ति में है 146
सिद्धसेनगणि ने तत्वार्थभाष्यवृत्ति गद्य में रची है, पर इन्होंने किन्हीं श्लोकों की रचना भी की है । तत्वार्थसूत्र १०-७ की भाग्यवृत्ति में सिद्धसेन ने आय छंद में सात श्लोक रचे है। तत्त्वार्थभाष्यवृति के अन्त में पाए जाने वाले सात श्लोक शार्दूलविक्रीड़ित तथा आर्या छंद में हैं ।
४०. सिद्धसेनगणि तत्वाचं भाष्यवृत्ति, भाग प्रथम, पू. १२५, २२७ २७०, ३१४, भाग दो, पृ. ४०, १२०, १७९, २९२, ३२७, ४९. वही भाग प्रथम, पू. ४१-४३
४२. वही, पृ. ३९७, भाग दो, पृ. २२५
४३. वही भाग प्रथम, पू. ३५०-३५२
४४. वहीं, भाग प्रथम पू. ३५१-३५२
४५. सिद्धसेनमणि तत्वार्थभाष्यवृत्ति, भाग प्रथम, पू. १९५ ४६. वही, पृ. ३७९, भाग दो, पृ. ७१, २४१
२२
Jain Education International
सिद्धसेनमणि ने उपमा अलंकार का सत्यार्थभाष्यवृत्ति में उपयोग किया है। 2
प्रचुर
व्याकरण - ज्ञाता
सिद्धसेनगणि व्याकरण-ज्ञाता हैं। वह सूत्र तथा सूत्रगत शब्दों के समास, सूत्रगत शब्दों की सिद्धि 49 सूत्रगत शब्दों में प्रयुक्त विभक्ति का तात्पर्य तथा सूत्रगत शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय का विभक्त्यर्थं अ बताते हैं । सिद्धसेनवणि सूत्रगत दों की व्युत्पत्ति भी करते हैं। शब्दों उदाहरणार्थ तत्वार्थ ५-१ आगत पुद्गल" पद की विभिन्न व्युत्पत्तियां सिद्धसेनमणि ने कही है:
पूरणात् गलनात् च पुद्गलः ।
1:12
पुरुषं वा मिलन्ति पुरुषेण वा गोर्यन्ते इति पुद्गलाः । पुरुषेणादीयन्ते कषायोगभाजा कर्मयेति पुद्गला अनेकानेक शब्दों की व्युत्पति सिद्धसेनगणि ने सत्यार्थभाष्यवृत्ति में की है 154 सिद्धसेनगणि ने पाणिनि रचित अष्टाध्यायी का उपयोग तत्वार्थभाष्यवृत्ति में यत्र-तत्र किया है । विद्वत्ता
53
48
सिद्धसेनगणि प्रकांड विद्वान हैं। उनका आगम अध्ययन गहन है। संपूर्ण तत्वार्थभाग्यवृत्ति आगम-उद्धरणों से भरी पड़ी है । जिस किसी तथ्य को सिद्धसेनगणि कहना चाहते हैं, उसके समरूप आगम उद्धृत करना, सिद्धसेनगणि का स्वभाव है । आगमों के अतिरिक्त अन्य जैन ग्रन्थों का भी उपयोग तत्वार्थभाग्यवृत्ति में किया गया है। प्रशापना सूत्र, भगवतीसूत्र, शा लिक सूप, आचारांगसूत्र, नन्दीसूत्र, प्रशमरति, सम्मतितर्क आदि अनेक ग्रन्थों के अवतरण भयवृत्ति में मिलते हैं।
४७. वही भाग प्रथम, पू. ५२, ५५, ७७, ९२, ९४, ११५, १८० २०८, ३३१, ३५१, ३५२, ३६३, ३९७ भाग दो, पू. १३४
४८. वही भाग प्रथम पृ. १४१, १४५, १७५ भाग दो पृ. २, १६, २४९
४९. वही भाग प्रथम, पृ. ३०, भाग दो, पृ. ६४, १८१, १८६, २२४, २३३, २५६,
५०. वही भाग प्रथम, पू. ४२२
५० अ वही भाग दो, पृ. १७५
५१. सिद्धसेनमणि तत्वार्थभाष्यवृत्ति, भाग प्रथम, पू. ३१६ ५२. वही ५३. वही
५४. वही भाग प्रथम, पृ. १९८, ३२९, भाग दो, पू. ३९, ८३, ९१, १८१, २३३, २५६,२५९, ३१० आदि
.
For Private & Personal Use Only
५५. वहीं, भाग प्रथम, पृ. ११० १११, ११७, १३१, ३४९, ४२२, ४३२,
राजेन्द्र- ज्योति
www.jainelibrary.org