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कुक्षी और गुरुदेव
मनोहरलाल जैन
"तालनपुर ने कुगसी, सुरपुर जिसी रे,
रसाल मोहनखेड़ा नमों भवि तीर्थ ने" सवत् १९५३ की आषाढ़ शुक्ल सप्तमी को तीरथमाल में जिन गुरुदेव ने कुगसी (कुक्षी) व तालनपुर तीर्थ के संबंध में उपरोक्त निनाद गंजाया है, उन्हें उनके १५० वें जन्म दिवस के अवसर पर शब्दाञ्जलि अर्पित न करना और उनके कुक्षी श्रीसंघ पर हुए उपकारों को याद न करना उनके प्रति कृतघ्नता के अतिरिक्त कुछ नहीं हो सकता है।
पूज्य गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज साहब का कुक्षी में प्रथम पदार्पण विक्रम संवत् १९२६ में हुआ था । कुक्षी में आम तौर पर यह जनधति है कि जब गरुदेव प्रथम बार कक्षी पधारे तब यहां तीन चार दिनों तक कुक्षी के विद्वान श्रावक श्री आसाजी, रायचन्दजी, देवचन्दजी, रिषभदासजी पुराणिक आदि के साथ उच्च कोटि का वाद-विवाद हुआ । गुरुदेव ने जब इन संघ प्रमखों की शंकाओं का समाधान कर दिया तब ही गुरुदेव को आडम्बर सहित नगर प्रवेश करवाया गया। यहां यह स्मरण रखने योग्य है कि गुरुदेव के आगमन के पूर्व कुक्षी में चतुस्तुतिक सम्प्रदाय के कमलकलशगच्छीय श्रावक थे, कुक्षी में प्रथम पदार्पण के साथ ही संघ को प्रतिबोध करके गुरुवर ने उसी वर्ष वैशाख (प्रथम) सुदी १५ पूर्णिमा के दिन तालनपुर तीर्थस्थित आदिनाथ जिन चैत्यालय के दर्शन करके स्वयं को धन्यभाग्य किया था। इस संबंध में स्पष्ट उल्लेख गुरुदेव के प्रमुख शिष्य मधुर स्तवन रचयिता श्रीमद् प्रमोद रुचिजी महाराज साहब ने अपने स्तवनों में किया है। स्तवनों के तत्संबंधित उद्धरण निम्न अनुसार है१. तालनपुर तीर्थ मण्डन श्री आदिनाथ स्तवन में
"गुरु गणधर गिरुआ सूरीश, विजय राजेन्द्र प्रभावी मुनीश । संघ प्रतिबोधी कुगसी नो दरिशण कीनो श्री जिनजी नो ॥५॥
संवत् ओगणीशसौ वरश छब्बीश प्रथम वैशाखी पूनम दीश ।
यात्रा धन्न ताहरी जगभाण वन्दे रुचि प्रमोद सुजाण ।।६।। २. सकल तीर्थ लावणी में मुनि लिखते हैं
नगर धुलेवा का धणी, बागड़ देश मझार
और केई गिरी शब्द में आदेश्वर आधार कुक्षी नगर दरश प्यारो जिनालय दीपे विस्तारो।। शान्तिनाथ प्रासाद जिनमें बिम्ब केई निरख्या
चौवीशी जिनजीकुं परख्या । कर्म अनन्ता बन्ध भवों का भेंटता सरख्या
चेतना निर्मल काये हरख्या ।। नगर कुगसी होई जातरा तालनपुर कीनी
संघ सकल भक्ति बहु कीनी। श्री जिनमार्ग दरश सरस समकित केई लीना
श्रावक ब्रतधारी कीना ।। श्रावक ब्रतधारी किया छब्बीसा की साल पूनम प्रथम वैशाख की भेट्या श्रीजगपाल
जगत में महिमा विस्तारो।। कुक्षी में गुरुवर का आगमन उनके क्रिया-उद्धार करने के एक वर्ष की अवधि में ही संवत् १९२६ में हुआ। उसी वर्ष गुरुदेवश्री से कुक्षी श्रीसंघ ने चातुर्मास करने की विनती की किन्तु पौषधशाला के अभाव में गुरुदेव ने चातुर्मास नहीं करके पौषधशाला के निर्माण हेतु संघ को प्रेरित किया। गुरुवर की प्रेरणा से उसी वर्ष पौषधशाला का निर्माण हुआ और अगले वर्ष संवत् १९२७ में कुक्षी में अपना प्रथम चातुर्मास गुरुदेव ने निर्विघ्न रूप से पूर्ण किया। इसी प्रथम चातुर्मास में गरुदेव ने “षडद्रव्यविचार" ग्रंथ की रचना की। गुरुदेव के कुक्षी में कुल तीन चातुर्मास हुए। प्रथम संवत् १९२७ में, द्वितीय संवत्
राजेन्द्र-ज्योति
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