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________________ 000000000000 * 000000000000 4000DDDDDD फ ६० | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज - अभिनन्दन ग्रन्थ कठिन कसौटी पर चढ़ा और खरा उतरा वह विगत पचास वर्षो में अधिक निखरा ही है । गुरुदेव श्री के संयमी जीवन के पचास वसन्त बीते मौसम के वसन्त आये और चले गये किन्तु गुरुदेव का संयम वसन्त सदा बहार खिला ही रहा । सदा अभिनन्दित गुरुदेव के अभिनन्दन के इस शुभावसर पर हृदय की समस्त श्रद्धा के साथ " मत्थएण वन्दामि" करता हूँ । धर्म ज्योति परिषद ( कार्यकर्तागण ) जन-जन वरेण्य प्रातः स्मरणीय सद् गुरुवर्य पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज को उनके सम्पर्क में आने वाले भक्तों ने अनेक रूप से पहचाना और अनेकों तरह से वे उनकी स्तुतियाँ करते हैं। किसी के लिए ये अशरण शरण्य है, तो किसी के लिए पथ-प्रदर्शक । किसी के लिए माता-पिता तुल्य है तो किसी के लिए गुरु । कोई इन्हें पतित पावन कहता है तो कोई धर्मोपदेशक । जहाँ तक हमारे प्रान्त की जनता का प्रश्न है वह तो इन्हें अपने लिए एक मात्र 'प्रकाश स्तम्भ' समझती है । अन्धेरे में भटकते जहाजों को प्रकाश स्तम्भ ही किनारे तक पहुँचा सकता है । हम भी अन्धेरे में भटक रहे थे। हमें धर्मं, खासकर जैन धर्म जो हमें परम्परागत रूप से उपलब्ध है, के विषय में हमारा जीवन नितान्त अन्धेरे में था हम भटक रहे थे किधर जायें ? तभी मोलेला में पूज्य गुरुदेव श्री का चातुर्मास हुआ, हम निहाल हो गये, हमारी मटकती जीवन नौकाओं को सबोध का अब किनारा मिल पाएगा ऐसा हमें अन्तर में विश्वास हो चला । उस चातुर्मास में मगरा प्रान्त की जनता ने अपने एक मात्र इस संयम देवता के चरणों में अपने श्रद्धा सुमन सम पित करते हुए इनके इंगितों पर चलने का निश्चय किया । गुरुदेव श्री की कृपा स्वरूप तथा गुरुदेव श्री के अन्तेवासी विद्वान शिष्य रत्न श्री सौभाग्य मुनि जी 'कुमुद' की संप्रेरणा एवं कृतित्व से 'धर्मज्योतिपरिषद्' से हमारा सम्बन्ध बना कुछ ही समय में मगरा प्रान्त के ग्राम-ग्राम में जैन शालाएं मूर्त रूप लेने लगीं। फलस्वरूप हमारे सैकड़ों बच्चे धार्मिक ज्ञानार्जन में लग गये। साथ ही स्वधर्मी सहायता का कार्यक्रम भी सामने आया। पूज्य श्री मोती गुरु ग्रन्थालय की स्थापना ने जागृति के एक कदम के रूप मूर्त रूप लिया । मोलेला में शाखा कार्यालय कार्यरत है। गुरुदेव श्री की सम्प्रेरणा से मगरा प्रान्त की चोखला कमेटी (५२ गाँव) से समाजोत्थान की एक नयी रूप-रेखा बनी, कई अनावश्यक कुरूढ़ियाँ दफना दी गई। इस तरह मगरा प्रान्त में जागृति का जो भी वातावरण बना यह सब गुरुदेव श्री की ही कृपा का प्रसार है अतः गुरुदेव हमारे लिए 'प्रकाश स्तम्भ' स्वरूप ही है । अभिनन्दन के शुभावसर पर कोटिशः वन्दन । गुरुचरणानुगामी - मोतीलाल कोठारी 'अध्यक्ष' — नेमीचन्द लोढ़ा 'उपाध्यक्ष' - मगनलाल इंटोद्या 'मन्त्री' - खेमराज बोहरा 'कोषाध्यक्ष' धर्म ज्योति परिषद शाखा कार्यालय - मोलेला रणजीतसिंह सोजत्या, एम० ए०, एम० कॉम०, बी० एड० [मंत्री - मेवाड़ भूषण श्रावक समिति, उदयपुर] श्रमण संस्कृति के अजस्र अमर स्रोत की पावन परम्परा में परम श्रद्धय शान्त मूर्ति, अध्यात्मनिष्ठ, अहिंसा और सरलता के मूर्तिमान प्रतीक, पूज्य प्रवर्तक श्री श्री १००८ श्री अम्बालाल जी महाराज साहब जैसे दिव्य और महान् पुरुष हमें प्राप्त हैं हमारा आध्यात्मिक पथ-दर्शन कर रहे हैं यह वास्तव में हमारा परम सौभाग्य है । मेवाड़ की यह पावनधरा, जिसका भारत के इतिहास में अत्यन्त गौरवपूर्ण स्थान है, आपके उपदेशों की पवित्र सुरसरी से निरन्तर सिंचित होती आ रही है । यह इस भूमिका, मेवाड़ की धर्मप्राण जनता का सद्भाग्य है । मेवाड़ पूज्य के रूप में परम प्रशस्त पद पर अधिष्ठित जैन शास्त्रों के महान् वेत्ता - अध्यात्मरत साधक - इतनी सब विशेषताओं के होते हुए जो सहजता, ऋजुता आपके जीवन में दृष्टिगत होती है वह हम सभी के लिए प्रेरणास्पद है । हम सबको अत्यन्त सरल और सात्त्विक जीवन अपनाने की प्रेरणा लेनी चाहिए । For Private & Personal Lise Only 鄠
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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