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________________ श्रद्धार्चन एवं वन्दना | ५६ 000000000000 ०००००००००००० D गया LATILI C...2 Amy । सागरमल कावडिया सामायिक के मार्ग से वीतरागता की मंजिल तक - देवेन्द्रकुमार 'हिरण' पहुंचने की अथक साधना में आप लगे हैं यही है मोक्ष [अध्यक्ष एवं मंत्री-श्री मेवाड़ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी गामी मार्ग । कान्फ्रेंस, राज समन्द, उदयपुर (राज.)] यह जानकर अतीव प्रसन्नता हुई कि स्थविर तपोधन 0 भगवतीलाल तातेड़, डूंगला पूज्य श्री अम्बालालजी महाराज साहब के दीक्षा जीवन के .. कहते हैं-पारस होता है जो लोहे को सोना बना देता पचास वर्ष की सानन्द सफलता पर मेवाड़ की धर्मप्राण है। मैंने देखा नहीं, शायद आज के युग में किसी ने भी श्रद्धालु जनता ने स्वामीजी के अभिनन्दन स्वरूप श्रद्धा पारस को नहीं देखा होगा। किन्तु यह मैं सत्य कहता हूँ सुमन के रूप में "अभिनन्दन-ग्रन्थ" भेंट करने का निश्चय कि मेवाड़ संघ शिरोमणि पूज्य प्रवर्तक गुरुदेव श्री १००८ किया है। इसके लिए मेवाड़ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी श्री अम्बालालजी महाराज सचमुच पारस हैं जो मुझे मिले । कान्फ्रेंस हार्दिक शुभ कामना प्रकट करती है। मैं सोना बना या नहीं बना यह अलग बात है । यदि सोना स्वामीजी सन्त कल्प-तरु के रूप में साधनारत रहे हैं। मैं बन नहीं पाया तो यह मेरी अपनी ही कमी है । पारस मेवाड़-समाज के निर्माण एवं आध्यात्मिकता के विकास में की नहीं। मैं सोना नहीं हुआ न सही, धन्य अवश्य होगया। आपका बड़ा योग रहा है। पूज्य गुरुदेव श्री का डूंगला चातुर्मास मेरे जीवन के लिए ऐसे पुनीत अवसर पर मेवाड़ कान्फ्रेंस परिवार आपका स्वर्ण सबेरा लेकर आया। उस चातुर्मास में मैं एक ऐसे हार्दिक अभिनन्दन करता है। व्यक्तित्व से सम्बन्धित हो गया हूँ जो मुझे बराबर भटकाव से बचाए हुए हैं। भंवरलाल पगारिया पूज्य गुरुदेव श्री सरल शान्त तथा संयम के सजग साधक हैं। इनके पवित्र दर्शन प्राप्त होने पर अन्तर में [सहमन्त्री-श्री व० स्था० जैन श्रावका संघ, एक विलक्षण भाव-धारा का उदय होता है, उसे मैं शब्दों कांकरोली] द्वारा व्यक्त नहीं कर सकता, क्योंकि तुलसीदासजी ने कहा आप जैसे व्यक्ति दर्पण की तरह जीते हैं, समाधिस्थ ही है-"गिरा अनयन, नयन बिनु वाणी" । व्यक्ति दर्पण की तरह ही जीता है । कोई गाली देता है तो गुरुदेव चिरायु होकर हमें धार्मिक नेतृत्व प्रदान करते वह सुनता है-कोई सम्मान करता है तो वह सुनता है- रहें. इसी शुभकामना के साथ । लेकिन जैसे सम्मान विदा हो जाता है ऐसे गाली भी विदा हो जाती है भीतर कुछ पकड़ा नहीं जाता-इसलिए आपके चित्त की अलग-अलग स्थितियाँ नहीं हैं। इतना कहना ही 0 रोशनलाल सिंघवी, दरोली काफी है कि दर्पण के सामने जो भी आता है वह झलकता मेवाड़ केवल कर्मवीरों का ही नहीं धर्मवीरों का भी है, जो चला जाता है-झलक बन्द हो जाती है । ऐसी ही समतामय स्थिति गुरुदेव श्री के चित्त की है। वन्दना प्रमुख जन्मस्थल रहा है। करने वाले भी आते हैं और निंदा करने वाले भी। पर मेवाड़ के रण-वीरों का एक इतिहास है तो धर्मवीरों आपश्री दोनों के प्रति समचित्त रहते हैं। की भी यहाँ विशाल गौरव गाथाएँ हैं । मेवाड़ को अपने एक समता आगई है चित्त की। आपकी पूरी साधना दोनों वीरों पर गर्व है। संकल्प की, श्रम की साधना है कि जिसे सत्य पाना है उसे मेवाड़ संघ शिरोमणि पूज्य प्रवर्तक गुरुदेव श्री १००८ यात्रा पर निकलना होगा, उसे खोज में जाना होगा, उसे श्री अम्बालालजी महाराज धर्मवीरों के पंक्ति का एक जूझना पड़ेगा, उसे चुनौती, साहस, संघर्ष में उतरना जीवन्त आदर्श है। पड़ेगा। ऐसे बैठकर सत्य नहीं मिल जायगा । संयम पथ पर आने से पूर्व ही जो जीवन परीक्षा की का AMAIEVAR nahaiMathemamline -MS.SXst.
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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