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५२ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ
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उपलब्ध किया उसका अत्यधिक प्रकाश आप सर्वत्र स्वणिम अवसर पर मैं अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि समर्पित फैलाते रहें। विश्व के अज्ञानी जीवों को आप दिन दूनी करता हूँ। एवं रात चौगुनी गति से लाभान्वित करते रहे तथा आपके ज्ञान-दर्शन चारित्र्य से जिनशासन उद्योतित होता रहे।
- मुनि श्री उदयचन्द जी 'जैन सिद्धान्ताचार्य' ___आपकी दीक्षा को ५० वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। इस इस परम पावन भारत भूतल पर अनेक महापुरुष मंगलमय अवसर पर मैं अपनी ओर से श्रद्धा कुसुम अपित हुए हैं जिनमें से अद्भुत प्रतिभा सम्पन्न क्रान्तिकारी करता हुआ हार्दिक अभिलाषा करता हूँ कि आप अहिंसा, धर्म पथ प्रदर्शक प्रवर्तक पण्डित श्री अम्बालाल जी सत्य, अपरिग्रह के सिद्धान्तों का अविरल गति से प्रचार महाराज साहब है। जिन्होंने अपना अधिक अमूल्य समय करें तथा जिनशासन की नींव मजबूत बनाते हए दीर्घ गुरु-सेवा, सुश्रूषा एवं ज्ञान साधना तथा धर्मोद्योत में ही जीवन प्राप्त करें।
व्यतीत करके आत्म कल्याण कर रहे हैं ।
सर्वदा से ही विश्व में सन्तों का स्थान सर्वोपरि
रहा है, क्योंकि सन्तों ने सेवा एवं तपस्या से विश्व को - मुनि श्री सुमेरचन्दजी
आलोकित किया है। संसार में मातृत्व-भाव का बहुत बड़ा महत्त्व है। महापुरुषों के अभिनन्दन ग्रन्थ को मानव पढ़कर माता मातृत्व भाव के कारण ही ढेरों सारे कष्टों को एवं मनन-चिन्तन करके स्वकीय जीवन को सफल बना सहन करती है एक नन्हें अबोध बच्चे के लिए। अबोध सकते हैं। बच्चा माता की गोद में निभय बनक रहता है, क्योकि प्रवर्तक जी महाराज साहब जब गृहस्थावस्था में थे वह उसकी सुरक्षा करती है। इसीलिए उसके उपकारों तभी से आपको धार्मिक ज्ञान प्राप्ति की बड़ी जिज्ञासा रहती से उऋण होना अत्यन्त कठिन है।
थी क्योंकि आप गृहस्थी में रहते हुए भी परम उदासीन "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" एक रहकर कवि की कविताअबोध बच्चे को सुरक्षा के कारण उसका इतना बड़ा “गेही पे गृह में न रचें ज्यों जलतें भिन्न कमल है।" उपकार माना गया।
सार्थक करते थे। निमित्त मिलते ही मेवाड़-भूषण पूज्य जिसने संसार के समस्त प्राणियों को आत्मीय बुद्धि श्री मोतीलाल जी महाराज साहब से भागवती दीक्षा से देखा, समस्त प्राणियों को निर्भय बनाया अर्थात् ग्रहण की। दीक्षा लेकर आपने पूज्य महाराज साहब की जिनकी तरफ से समस्त प्राणी निर्भय बन गये उनकी तथा अपने गुरुदेव व्याख्यानदाता श्री भारमल जी महाराज महिमा-गरिमा कैसी व कितनी है इसका माप लेना, साहब की बहुत सेवा-सुथ षा की। इसकी थाह लेना नामुमकिन है।
दीक्षा लेने के समय से अद्यावधि आपने चारों सरलात्मा श्रद्धय प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज अनुयोगों-शास्त्रों का गहन ज्ञान प्राप्त किया। आपकी एक ऐसे ही महान भव्य मना हैं । “अम्बा" शब्द माता
शास्त्रों, जैनागमों द्वारा होने वाली तत्त्व विवेचना, का सूचक है। आप एक दिन, दो दिन नहीं, किन्तु व्याख्यान-शैली बहुत ही आकर्षक एवं रुचिवर्धक है। पच्चास-पच्चास वर्ष से इस पद का निर्वाह कर रहे हैं। आप विद्वानों की संगति में रहकर तत्त्व निर्णय करते
आपका स्वभाव बड़ा ही सरल और मिलनसार रहने के हमेशा इच्छुक रहे हैं। है। आपने संयम-साधना में जो कुछ प्राप्त किया उसे आपने केवल मेवाड़ देश में ही विहार नहीं किया 'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय' समर्पित कर दिया । अपितु बम्बई, महाराष्ट्र, खानदेश, राजस्थान आदि मेवाड़, मारवाड़, गुजरात, महाराष्ट्र व मालवा आदि प्रदेशों में पाद विहार करके धर्मोद्योत किया। अनेक प्रान्तों में विहरण कर जनसमाज को भगवान यद्यपि श्रद्धेय प्रवर्तक श्री की सेवा का लाम मुझे महावीर के वीतराग-धर्म का प्रतिबोध दिया। अतः इस अधिक प्राप्त नहीं हो सका, फिर भी अजमेर सम्मेलन
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