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________________ श्रद्धार्चन एवं वन्दना | ५१ ००००-0-00 आपका जीवन सहज एवं आडम्बर रहित है। जैन शास्त्रों को जन्म देने में तू असमर्थ है तो इससे तेरा बांझ रहना के आप प्रकाण्ड विद्वान हैं। आचारनिष्ठा के साथ ही अच्छा है किन्तु तू अपनी आन बान को मत गंवाना । अपना यशस्वी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। गृहस्थाश्रम का त्याग करना कोई आसान नहीं है ____ आप मेवाड़ प्रान्त के दुर्गम पर्वतों एवं कंकरीले किन्तु जो प्राणी गृहस्थाश्रम से विमुक्त होकर विश्व कल्याण हेतु अपना सर्वस्व अपित करता हुआ विधियुक्त विषम मार्ग में अनेक परिषह सहन करते हुए धर्म-प्रचार षट्-कर्म करता है वह निश्चित रूप से प्रशंसा का पात्र में संलग्न हैं। है । जिस मेवाड़ के गौरव की रक्षा हेतु यहाँ की राणी आपकी दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के पावन प्रसंग पर श्रद्धालु- पद्मिनी ने जलती हुई चिता में सहर्ष प्रवेश कर अपनी भक्तों के द्वारा श्रद्धा सुमन अर्पित करने हेतु अभिनन्दन- आहुति देदी उसी वीर भूमि में थामला ग्राम में सवत ग्रन्थ का प्रकाशन किया जा रहा है, उसी अभिप्राय से १६६२ में एक माता की कोख से ऐसे पुत्र का जन्म हुआ मैं भी प्रेरणा प्राप्त कर श्रद्धा सुमन समर्पित कर जो आज प्रत्येक श्रावक के अन्तःकरण में बिराजे हुए हैं । रहा हूँ। यह भव्यमूर्ति 'पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज साहब' के नाम से विख्यात है, जिन्होंने अल्प आयु में ही 1 श्री ईश्वर मुनि मेवाड़भूषण पूज्य श्री मोतीलाल जी महाराज साहब के कर-कमलों से दीक्षा अंगीकार कर गृहस्थाश्रम से विमुक्त जननी जन्मदाता को 'माता' की संज्ञा दी गई है। हुए । विश्व में पुत्रों को जन्म देने वाली असंख्य माताएँ हैं । __आप श्री ने गुरु के सानिध्य में रहकर जैन एवं जो पुत्र जन्म पर अपने आप में गौरव का अनुभव करती ज्योतिषशास्त्रों का गहन अध्ययन किया । गुरु की आज्ञानुसार हैं । तत्त्वज्ञों का कहना है कि केवल जन्म देने से ही उसके तप-संयम की आराधना करते हुए आप धर्म-प्रचार में सार्थकता की पूर्ति नहीं हो सकती। अपनी सार्थकता की संलग्न हो गये । आपका व्यक्तित्व सरल, सौम्य एवं पूर्ति हेतु, उसे पुत्र को जन्म देने के बाद उसका पालन मधुर है। जनसाधारण आपके सम्पर्क में आकर बहुत पोषण इस प्रकार से करना होगा ताकि उसमें सद्गुण प्रसन्न होते हैं। आप जनसाधारण की भाषा में ही अपने के बीज उत्पन्न हों। इस प्रकार का बालक बड़ा होने उपदेशात्मक प्रवचन फरमाते हैं। गहन से गहन तत्त्व के बाद अपने सुकार्यों द्वारा न केवल अपना ही यश । भी आप बड़े मार्मिक किन्तु सरल ढंग से समझाते हैं । अजर-अमर करेगा, किन्तु अपने माता-पिता की स्मृति आपका जीवन आडम्बर एवं छलकपट से रहित है। चिरस्थायी बनाए रख सकेगा। जो सन्तान अपनी माता आप अपनी अमृतवाणी से जनता में धर्म के बीज अंकुरित के दूध को लजाता है वह आत्मघातकी समझा गया करते हैं, इससे सहज ही में जनसाधारण आपकी ओर है । कहा भी है आकर्षित हो धर्म लाभ प्राप्त करते हैं। जननी जणे तो ऐसा जण, के दाता के शूर । मेवाड़ में आपकी सुख्याति के कारण भावुक जनता नहीं तो रहिजे बांझ ही, मती गमाजे नूर ॥ ने आपको ‘मेवाड़ी-पूज्य' की संज्ञा से विभूषित किया अर्थात हे ! जन्म देने वाली माता ! तुझे यदि है । जनमानस आपको अपना गुरु मानती है । यह सभी किसी सन्तान को उत्पन्न करना है तो ऐसी सुसंस्कारी आपकी अमृतवाणी का ही परिणाम है। आपकी अमृतसन्तानों को जन्म दे जो प्रथम दातार हृदय की हो वाणी का श्रवण कर जनता पर भव के लिए भी सामग्री अर्थात् समय आने पर गरीब, अनाथ एवं असहाय की संचय करती है, इसी कारण आप जनता में परोकारी आधारभूत बनकर दानी के नाम से प्रसिद्ध होवे; या हैं। किसी कवि ने कहा हैफिर ऐसे शूरवीर को जन्म देना जो संकट के समय “सरवर तरवर संतजन चौथा वरसे मेह । अन्यायी एवं अत्याचारियों का मुकाबला कर सके तथा पर उपकार के कारणे चारों धारा देह ।।" समय आने पर न्याय-धर्म की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आप भी इसी प्रकार से अविरल गति से विचरण आहुति भी समर्पित कर दे। यदि इस प्रकार के पुत्रों कर रहे हैं। संत जीवन का जो प्रकाश पुञ्ज आपने / COM ..',' G. 8:
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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