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________________ * 000000000000 oooooooooooo 4000000DEC आचार्य सम्राट श्री आनन्द ऋषि जी [ श्री व० स्था० श्रमण संघ के प्रभावक आचार्य ] सहस्र - रश्मि सूर्य जब धरा पर चमकता है तो रात भर मुर्झाये हुये कमल खिल उठते हैं, पक्षी चहकने लगते हैं । नील गगन में जब सुधा-स्रावी राशि अपनी शुभ्र ज्योत्स्ना बिखेरता है तो कमलिनी विहंस-विहंस जाती है । चकोर नाचने लगता है । इसी प्रकार संसार में जब कहीं भी, कभी भी, श्रमण संतों का त्यागी-तपस्वी आत्म ध्यानी मुनियों और ऋषियों का अध्युदय होता है, उनका गुणोत्कीर्तन होता है। जिन शासन के प्रभावक और सत्य के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले सत्य-अहिंसा के जीवित तपोधनों की महिमा- गरिमा बढ़ती है तो भव्य हृदयों में हर्ष का ज्वार उमड़ने लगता है, प्रमोद और धर्मानुराग की रस धारा बहने लगती है । मेवाड़ संघ के परम आदरास्पद शांतमूर्ति आत्मलीन श्री अम्बालाल जी महाराज हमारे श्रमण संघ की एक दिव्य विभूति है । उनके हृदय में सरलता सौजन्यता एवं साधुता की त्रिवेणी बह रही है। मेवाड़ में जिन शासन की प्रभावना करते हुये वे जन-जीवन की कलुषता को धो रहे हैं। मेवाड़ की भव्य धर्म प्राण जनता ने उनका अभिनन्दन करने का जो निश्चय किया है वह परम आल्हाद का विषय है। त्याग तप साधना की महिमा का यह विरल प्रसंग किसको आल्हादित नहीं करेगा ? जब-जब मैं साधु-संतों एवं आत्मार्थी मुनियों का अभिनन्दन होता देखता हूँ तो मेरा मन उनकी तपःपूर्ण साधना और आत्माभिमुख उदात्त वृत्तियों का कोटि-कोटि क्य फक आशीर्वचन एवं शुभ कामना अभिनन्दन करने लगता है। श्री अम्बालाल जी महाराज अपनी उदात्त साधना के बल पर दीर्घकाल तक जिन शासन की प्रभावना करते रहें, यही मंगलकामना ! मरुधर केसरी मुनि श्री मिश्रीमल जी महाराज [ श्रमण संघ के प्रवर्तक, आशुकवि, प्रभावशाली संत ] स्वामीजी रो स्वभाव गणो आछो ने रलियामणो है, इणरी में आछी तरह सु केई वार बानगी देखी हूँ । स्वामी जी में बड़ाँ रो आदर तो अणूतोहीज है । मेलमिलाप रो तो पूछो इज क्यू ? बोली में मीठापणो ऐरो है के जाने इमरत ईज गोलियोरो है। सादगी सराबोल भगताँ रे चित रा चोर, आचार-विचार रा सिरमोर और सेवा भगति रा झकजौर में तो खाणो पीणोइ भूल जावे । माला स्मरण सज्जाय तो प्राण सुं बतो जाणें । ज्ञान-ध्यान रो कोड़ तो इतरो है के कइयोड़ो ही पुरवे नहीं । बखाण में भगवान री बाणी रे सिवाय और बातां सुणावण रो तो सूंस हीज लियोडो है । बोलण में, चालण में, पलेवण में, पूजण में और साधुरी मरियादा में तो मारवाड़ रा धोरीयाँ राजिसा मजबूत है। कपड़ा काठा पेरे वे पीण सादगी रा-जोरें आज रा जमाना री किणी तरह की हवा लागीज कोइनी पीण वांरा बरताव सुं पुरा पुराणा साधु हीज लोग केवे । पुनवानी चोखी, सातावेदनी रो उदय आछो, बोली में लेणीयो । चेला भगती वाले—बीचरण में मोटा-मोटा डुंगर ने नाला, चारोइ संघ रा वाल्हा । मेवाड़ रे धरम रा रखवाला। मेवाड़ रा केसरी केवो- सिरोमणी केवो ने www.jainelibrary.org
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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