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४० | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज--अभिनन्दन ग्रन्थ
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इसी कारण आपको गुरुदेव एवं साथी मुनिमण्डल-महासती-वृन्द श्रावक और श्राविकाएँ शास्त्रज्ञाता एवं पंडित जी महाराज के नाम से सम्बोधित करने लगे।
___ महाराज श्री को शास्त्रीय ज्ञान इतना प्रिय है कि अन्य कथानकों की अपेक्षा शास्त्रीय प्रमाण ही अपने व्याख्यान में देते रहते हैं। मैंने सैकड़ों व्यक्तियों के मुंह से सुना है कि शास्त्रीय व्याख्यान या तो महामना पूज्य श्री भन्नालाल जी महाराज के मुंह से सुना है या फिर आप श्री जी के मुंह से । शास्त्र-स्नेही जनता आपका व्याख्यान अतीव उमंग एवं एकाग्रता से रसपान करके अपने को धन्य समझती है । अनेक सन्त-सती-वृन्द आपसे शास्त्र-वाचना अधुनापि किया करते हैं । स्वयं मैंने भी आप धी से १००/१२५ थोकड़े का ज्ञान प्राप्त किया है। चर्चाकार
आप श्री का शास्त्रीय ज्ञान केवल ऊपर-ऊपर का ही नहीं है, जैसाकि बहुधा देखने में आता है; आपका ज्ञान . तो शास्त्रों के रहस्यों तक पहुँचा हुआ है और इसी रहस्य के आधार बल पर मेवाड़ में स्थानकवासी समाज पर आक्षेप करने वालों को आप सचोट प्रत्युत्तर प्रदान करते हैं।
कई स्थानों का तो मुझे भी अनुभव है कि कई उद्दाम विचारक एवं आक्षेपी लोग आपसे चर्चा करने को आते और आपश्री से समाधान सुनकर निरुत्तर होकर लौटते हुए देखे गये।
कभी-कभी तो आप अपने चालू व्याख्यान में आक्षेपियों को चर्चा के लिए सिंह-गर्जना से आह्वान भी करते हैं । सेवाशील
शास्त्रज्ञान के साथ ही साथ आपके सुन्दर जीवन में सेवा-भावना तो साकार ही हो गई है। इस सेवा के क्षेत्र में भले फिर गुरुदेव हों, या अन्य कोई भी सन्त-सती । प्रत्येक की सेवा आप प्रफुल्लित चित्त से करते हैं। मेरा निजी अनुभव तो यहाँ तक है कि सेवा के लिए हाथ का कौर भी मुंह में नहीं लेकर वहीं छोड़कर सेवा को प्रथम आदर देते हुए आपको देखा है।
आपश्री को सेवारत देखकर कभी-कभी मेवाड़ आचार्य श्री जी भी फरमा देते थे कि अम्बा तो मानो एक अम्मा ही है।
मेवाड़ मन्त्री (आचार्य श्री) जी महाराज जब देलवाड़ा में ५ वर्ष स्थानापन्न विराजे तो आप श्री को निरन्तर अपनी सेवा में बनाये रखा । कभी-कभी कोई मुनि आचार्य श्री से विनोद में निवेदन करते कि प्रभो ! अन्य मुनियों की तरह पंडित जी महाराज को भी विचरने की आज्ञा प्रदान क्यों नहीं करते ? तो मेवाड़ गणनायक श्री का उत्तर होता"पंडित सी सेवा अन्य मुनि नहीं कर पाओगे।" श्रद्धयत्व
सेवा गुण के साथ-साथ नम्रता-सरलता-कर्त्तव्यदक्षता के सद्गुण भी आपके जीवन में बढ़ते ही जा रहे हैं । प्रमाद से आप सदैव दूर रहते हैं । दिन में बिना कारण आप शयन नहीं करते । रात्रि के प्रथम और अन्तिम प्रहर में भी आप चिन्तन-मनन-भजन-स्मरण अबाध रूप से करते हैं । इस प्रकार आपकी आत्मसाधना केवल प्रशंसनीय नहीं, अपितु आदरणीय-आचरणीय भी है। इस आत्मसाधना से आप श्री का प्रभाव भी अन्य पर पड़े बिना नहीं रहता । कई ग्रामों के, कुटुम्बियों के आपसी वैमनस्य आपके प्रभाव से समाप्त हो गये हैं और होते रहते हैं । प्रवर्तक
इस गुण-पुज आत्मा को श्रमण संघ के आचार्य सम्राट ने पहले तो मेवाड़ मन्त्री का पद और बाद में मेवाड़ प्रवर्तक का पद देकर सम्मानित किया है। इस प्रकार आप प्रवर्तक-मण्डल के सम्मानित सदस्य हैं।
भूतपूर्व मेवाड़ सम्प्रदाय के नाते तो आपको मेवाड़-संघ-शिरोमणि, मेवाड़-मुकुट, मेवाड़ के मूर्धन्य सन्त, मेवाड़ रत्न, मेवाड़ गच्छमणि, मेवाड़ मार्तण्ड आदि मेवाड़ से सम्बन्धित सब कुछ पदवियाँ समर्पित हैं।
आपकी इस दीक्षा स्वर्णजयन्ती की मंगलमय वेला में आपकी दीर्घायु के साथ-साथ आप श्री का यश-सौरभ दिन दूना रात चौगुना चारों ओर विस्तृत हो, इसी मंगलमय कामना के साथ सविनय कोटि-कोटि वन्दन स्वीकृत हो !
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