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________________ 000000000000 000000000000 4000000FDD ३४ | पज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज - अभिनन्दन ग्रन्थ श्री मदन मुनि 'पथिक' श्री मदन मुनि अपने गार्हस्थ्य-जीवन में, लक्ष्मीलालजी हींगड़ कहलाते थे। सरदार गढ़ इनका जन्मस्थल है । वि० सं० १९८६ जन्म समय है । श्री गमेरमलजी हींगड़ इनके पूज्य पिता हैं श्री सुन्दरबाई माताजी थीं। उनका दीक्षा लेने से पूर्व ही देहावसान हो चुका था । WONINGENE वि० संवत् २००६ के वर्ष का परम विदुषी महासतीजी श्री रूपवती जी मधुर वक्तृ विदुषी महासतीजी श्री प्रेमवती महाराज आदि का चातुर्मास सरदारगढ़ था । श्री लक्ष्मीलालजी हींग को उसी चातुर्मास में उक्त महासतीजी का धर्म सम्पर्क मिला और तभी मे संयम की तरफ उन्मुख हो गये । वर्ष भर दीक्षा के लिये अनुमति नहीं मिली, अन्ततोगत्वा अनेकों कठिनाइयों के बाद पारिवारिक स्वीकृति मिली और संवत् २०१० कार्तिक कृष्णा नवमी को मोलेला में दीक्षा सम्पन्न हो गई । दीक्षा पूज्यश्री मोतीलालजी महाराज के सान्निध्य में सम्पन्न हुई । प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज को गुरु रूप में धारण किया । स्वभाव से सरल श्री मदन मुनि सेवा का विशेष गुण रखते हैं । संयम लेने के साथ ज्ञानाराधना का आलम्बन भी लिया और अध्ययन की तरफ अग्रसर हुए, फलतः " जैन सिद्धान्त शास्त्री" तक परीक्षाएं पास कीं । साहित्य सृजन की भी विशेष रुचि इनमें लगातार कार्य करती है । फलतः "जीवन कण" "प्रेरणा के प्रदीप" आदि दो-तीन इनके निबन्ध संग्रह निकल चुके हैं और भी निबन्धों के सृजन का प्रवाह चल रहा है। अभी-अभी ज्ञात हुआ है कि श्री मदन मुनिजी ने अञ्जना पर एक "नाटक" भी लिखा है जो शीघ्र ही प्रकाश में आएगा । नाटक जैसी विवादास्पद और जटिल साहित्यिक विधा पर चलने वाली कलम साहित्य प्रेम का जीवित परिचय है । आशा है, मेरे लघु गुरु भ्राता मदन मुनि जी साहित्य के और नवीन 'कुसुम' खिलाते रहेंगे । दर्शन मुनि दर्शन मुनि का जन्म स्थान नंगावली (मेवाड़) है । देवकिशनजी नाहर और चांदबाई इनके माता-पिता हैं । जैन धर्म के संस्कार ठेठ बचपन से पाये हैं। जन्म संवत् १९८८ चैत्र शुक्ला चतुर्थी शनिवार का कहा जाता है । इन्हें ४१ वर्ष की वय में स्वतः ही संसार से उपरति हो गई और सभी कुछ छोड़कर गुरुदेव श्री की सेवा में पहुँच गये । अविवाहित होने से इन्हें विरक्त होने में ज्यादा कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा। सांसारस्थ भ्राता आदि को स्वीकृति देने के लिए इन्हें मनाना पड़ा अन्त में संवत् २०२६ माघ शुक्ला तृतीया को 'छोटा भाणूंजा' नामक गाँव में इनकी दीक्षा पूज्य गुरुदेव श्री के हाथों सम्पन्न हुई । दर्शन मुनि धुन के पक्के और सेवाभावी सन्त हैं । तपश्चर्या की भी अच्छी लगन है । परमश्रद्धय श्री मांगीलाल जी महाराज के शिष्यादि का परिचय पं० प्रवर श्री हस्तिमल जी महाराज पंडित प्रवर श्री हस्तिमल जी महाराज का जन्म स्थान पलाना कलाँ है । संवत् १६७६ की चैत्र शुक्ला त्रयोदशी (महावीर जयन्ति ) इनका जन्म दिन है। श्री नानालाल जी दुग्गड़ एवं जड़ावबाई इनके माता-पिता थे । परम श्रद्धेय श्री मांगीलाल जी महाराज साहब के सद्सम्पर्क से इनमें वैराग्यभाव का अभ्युदय हुआ । जब ये संयम लेने को उत्सुक हुए तो बाधाओं के पहाड़ खड़े हो गये । सम्बन्धित सांसारिक जनों ने कई कष्ट दिये किन्तु ये लगातार सुदृढ़ बने रहे । अन्ततोगत्वा दृढ़ निश्चय की ही विजय रही और संवत् १६६६ माघ कृष्णा प्रतिपदा के दिन पलाना में दीक्षा सम्पन्न हो गई । RK R For Pr
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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