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२० | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ : परिशिष्ट
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कई व्यक्तियों को विश्वास नहीं हो पाया था कि सुजानमल दीक्षित हो गया, किन्तु जो हो चुका था वह तो ध्र व था । थोड़े ही समय में पारिवारिक उपद्रव भी समाप्त हो गये ।
दीक्षा संवत् २००६ माघशुक्ला पूर्णिमा प्रात: ६॥ बजे सम्पन्न हुई।
गुरु प्रदत्त नाम श्री सौभाग्य मुनि घोषित हुआ। बहुमुखी विकास के पथ पर
श्री सौभाग्य मुनि जी 'कुमुद' बचपन से ही विनम्र, तीक्ष्णबुद्धि और विद्यानुरागी थे ।
संयम से पूर्व केवल पाँचवीं कक्षा तक पढ़े थे किन्तु संयम प्राप्ति के बाद मुनि श्री ने अपनी सम्पूर्ण क्षमता का उपयोग अध्ययन की तरफ किया । फलत: जैन शास्त्रों के गम्भीर तत्वज्ञान के उपरान्त विभिन्न दर्शन शास्त्रों का गहराई तक अध्ययन किया । संस्कृत, हिन्दी, प्राकृत के विशिष्ट अध्येता श्री सौभाग्य मुनि जी 'कुमुद' बहुत अच्छे कवि भी हैं। आपकी कई संगीत एवं काव्य की पुस्तकें निकल चुकी हैं।
समय के साथ मुनि श्री की प्रतिभा का लगातार विकास होता गया। मुनि श्री प्रवचन मंच पर आये और बड़े ठाठ से जमे । आज मुनि जी श्रेष्ठतम वक्ताओं में से एक हैं।
मुनि श्री बहुत अच्छे रचनाकार हैं, साहित्य की दिशा में ही नहीं, समाज की दिशा में भी आपका कर्तृत्व आज मेवाड़ में दमक रहा है । धर्मज्योति परिषद् का गठन और विकास आपके श्रम का फल है, मेवाड़ में चलने वाली अनेक जैनशालाएँ, स्थापित, पुस्तकालय, गठित युवक मंडल, स्वाध्याय केन्द्र और न जाने क्या क्या इस उदीयमान मुनिरत्न की प्रेरणाओं के अमर परिणाम हैं।
प्रस्तुत अभिनन्दन समायोजन और ग्रन्थ निर्माण में भी, यदि कहीं प्राण तत्व ढूंढ़ेगे तो उसे श्री सौभाग्य मुनि कुमुद के रूप में पायेंगे।
मुनि श्री कुमुद जैन जगत की विभूति और मेवाड़ प्रदेश के आशाकेन्द्र हैं।
मेवाड़ प्रदेश की धार्मिक, सामाजिक तथा संस्थागत सक्रियता के सृष्टा मुनि श्री कुमुद जी चिरायु हों समाज का निर्देशन करते रहें, इसी शुभ आशा से साथ ।
ग्रन्थ-समर्पण कर्ता न्यायमूर्ति श्रीयुत चाँदमल जी लोढ़ा का भावपूर्ण वक्तव्य
मेवाड़ संघ शिरोमणि पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज साहब, उपस्थित गुरुजन, माथुर साहब, देपुरा साहब, नाहर साहब, सभा के अध्यक्ष, महोदय एवं धर्मप्रेमी सज्जनो!
आज के इस महान अवसर पर आपने मुझे आमंत्रित कर मुझे इस समारोह में सम्मिलित होने का अवसर प्रदान किया इसके लिए मैं आभारी हूँ।
आज आप और हम मिलकर एक सन्त का अभिनन्दन कर रहे हैं। त्याग, तप और संयम का अभिनन्दन करना यह हमारी संस्कृति का मौलिक तत्व है। दुनिया में विभिन्न प्रकार के नेता होते हैं । आप हमारे धर्मनेता हैं । धर्मनेता हमारे यहाँ सर्वाधिक पूज्य है।
आज विज्ञान ने बड़ी उन्नति कर ली है, व्यक्ति चाँद पर भ्रमण कर रहा है, कई व्यक्ति वहाँ जाकर आये हैं किन्तु विश्व में अमन और शान्ति जिसे कहते हैं, वह चन्द्रयात्रा से सम्भव नहीं है । हमें शान्ति इन महापुरुषों से मिलती है।
पच्चीस सौ वर्ष पूर्व भगवान महावीर ने शान्ति का मार्ग प्रकाशित किया था, विश्व के कोने-कोने में आज उस सिद्धान्त की चर्चा है । इसकी बजह क्या है कि एक की बात सारा विश्व सुनता है । जिस सन्देश में अध्यात्मिकता, करुणा होती है, उस सन्देश को सभी चाहते हैं।
विश्व-पीड़ा का समाधान अध्यात्मिकता है। हम बड़े-बड़े नेताओं, वैज्ञानिकों और धनाढ्यों के चरणों में नहीं झुकते हैं, किन्तु इन संतों के चरणों में झुकते
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