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कविराज श्री रिखबदास जी महाराज के
कुछ पद
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प्राणा
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आवे जिनराज तोरण पर आवे । समुद्रविजय सेवादेवी के नंदन सावल वर्ण सुहावे । तो०॥१॥ दस धनुष तन संषनो लंछण वरस तीनस्य मे आवे। तो०॥२॥ जोवन वेस में जोर बतावे अचरज सब जन पावे। तो०।।३।। राजमती उग्रसेन की धीया अधभुत रूप कहावे। तो०॥४॥ हरि हलधर मिल व्याह मनायो साजन हर्ष वधावे । तो०॥५॥ जबर जोर स्यु जादव कुल आवे अधीक आडंब करावे। तो०॥६।। बहु पस्युअन पिंजर माहे देषी सवारथी साथ पुछावे। तो०॥७॥ सेवगमुष सुणी कुरणा आणी श्रब जीवन कू छोडावे। तो०।८।। तोर्ण थी रथ पाछो वलीयो हरी हलधर समजावे। तो०।६।। एक न मानी संजम लीधो वरसीदान देवावे । तो०॥१०॥ तप करणी करी केवल पाम्या बहु उपगार करावे । तो०॥११॥ अंतस वांणी गुणकर सोभे पुरब पुन्य प्रभावे । तो०॥१२।। नेम जिनेसर पाछा फरीया सुण राजुल दुष पावे । तो०।१३।। सषीय संघाति राजमतीजी संजम लीयो चित चावे । तो०॥१४।। सषीया साथे गिरवर जाता घोर घटा वरसावे । तो०।१५।। चीर सुषावण गइ गुफा मे सील अषंड रहावे । तो०।१६।। मदमातो गज आंण्यो ठेकाणे वचनांकुस लगावे । तो०।१७।। पिउ पेली सती मुगत पोहंती जामण मरण मिटावे । तो०॥१८॥ वर्स सातस्यै संजम पाली सिवनगरी मे सिधावे । तो०॥१९॥ नेम जिनेश्वर राजुल केरी अवचल जोड कहावे । तो०॥२०॥ पेउ श्री नेमीस्वरजी केरा चर्णकमल चित लावे। तो०॥२१॥ रोग सोग उपद्रव मट जावे दिन-दिन दोलत प्यावे । तो०।२२।। सुगुर पसाए रिषब रिषेश्वर नित उठ सीस नमावे । तो०॥२३॥ बारे फागुण रतनपुरी मे, ए उपदेस सुणावे । तो०॥२४।।
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