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५५४ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ
ढाल-हेवर गेवर पुर तुरगम । ए देशी। सकल मुनीन्द्र में पुजजी सोवे जिम तारा बिच चंद रे। श्री श्री पुज नरसिंघदासजी छोड्या संसार ना फंद ।
देखो सजन वंदो ए पुजजी माराज ॥१॥ नव पाले नव चित मांहे धारे आठ नो करे परिहार । तेरा जी काठ्या कं दूर निवारे दसविध जती धर्म सार । दे॥२॥ च्यार कू टाले च्यार कू आदरे चार को बतावे जी ज्ञान। च्यार • ध्यान जस कू तज्या जी सज्झाय पंच नूं ध्यान । दे०।३।। आप वखाण देवे जुगत सू जी भविक जन रहे लेलीन । उपदेशज लागे तुरत सूं सजन जन रहे जी भीन । दे०॥४॥ गुरु देवन का देव कही जे गुरु सम अवर न कोय । एहवा गुरु मिले जेहने तेहना कारज सिद्ध होय । दे०॥५॥ पूज्य श्री श्री रोड़ीदासजी रा चेला सर्व जीवानां प्रतिपाल । मेवाड़ खेतर में पुजजी विचरे मोटा छो जी दीनदयाल । दे०॥६॥ रायपुर सूं आप नीसऱ्या दिख्या लवि लीदी आय । त्रिया आद कुटुम्ब प्रवारज बहु हद कीनी मांय । दे०॥७।। दिक्षा लेने विचरत मुनिवर सिंघ जिम करो जी आवाज । पाखंड मत मिथ्यात निवारण समकित नो देइ साज । दे०।८।। जिभ्या एक गुण अनेक छे विनति करूं कर जोड़। एक अरज मुझ अवधारो पूरो म्हारा मनवांछित कोड़ । दे०।६।। आप प्रसादे कमी न रहे कांई सुणज्यो जी दीनदयाल । पुजजी म्हारी आही अरज छे राखज्यो म्हारी प्रतिपाल । दे०।।१०।। अष्टादस निव्यासे फागुण बसन्त ज मास । मानमल कहे सुणो भविकजन गुण गावो मन उल्लास । दे०११॥
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इति संपूर्ण संमत १९१८ पर का पौष सुद ५ चम,
लिखते गाम थामला मद्धे ।।
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