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पूज्य श्री सिंहदासजी महाराज रचित श्री रोड़जी स्वामी का गुण | ५४६
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सोवो वाण्यो आयने जी बोल्या वचन करूर । कूड़ो आल चढ़ावियो वां तो क्षमा करी भरपूर । बेले बेले स्वामी पारणा जी, मासखमण दोय बार । तेला तो चोला सहेज है, वे तो तपस्या रा भंडार । अभिग्रह कीनो हाथी तणों जी, आणी मन उछाय । फलियो दिन गुणत्तीस में ज्यारो जस फेल्यो जुग मांयसांड वेरावे तो लेवणो जी नहीं तर लेणों नाय । फलियो दिन इगतीस में ज्यां जैन मार्ग दोपाय जीसियाले एक पछेवड़ी जी, ध्यान धरे महाराय । थोड़ो सी अधिक पड़े तो, वाही देवे रालज्येष्ठ तपे रवि आकरो जी धूप पड़े असराल । स्वामी लेवे अतापना जी, वे तो कर-कर लम्बी बांय जीकोई खोटो आहार वेराबियो जी, नाख्यो नही मुनि राय । विष अमृत देई प्रगम्यो वांकी दया माता कीदी सायआमेट स्वामी पधारिया जी, आज्ञा माँगी हाट मांय । परीसो तो दीधो अति घणो, पारणो कीनों लावे जाय जी। बालू रेत में काउसग्ग करे जी, मानवी आयो तिण वार । सला मेली माथा उपरे पापी चढ़ उभो तिण वार जी। मानवी ने रावले बुलावियो जी, रोक्यो छे तिण वार । स्वामी तो रोड़ जी इम कहे, इण ने छोड़ो जब लेस्यूँ आहार ॥ स्वामी जी मन में विचारियो जी, पूर्वला भवना पाप। म्हारा मने सहना पड़सी, किण पे नहीं करना कोई कोप जी ।। काल कितना इक विचरिया जी, एकल बिहारी आप। परीषा तो खम्या अति घणां ज्यांरा टल्या सर्व संताप ।। पंच महाव्रत पालता जी, खम्या करी भरपूर । बावीस परिषह जीतिया जी दोष टाल्या बियालिस पूर । सुरनर सेवा करे जी उभा करे अरदास । भव्य जीवा ने तारने पाम्या, स्वर्ग गति वास जी॥ शहर रायपुर मांयने जी गुण गाया नरसिंघदास । सुगुरु प्रसाद से या तो, जोड़ करी तंतसारसंवत् अठारे सैतालीस मायने जी, जोड़या तपसी गुण सार । आषाढ़ वद अमावस्या मै तो लागा स्वामी जी रे चरणार जी।
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