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५४६ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ
एक वार तिण काल जी, सर्प घडा मै घाल जी घा० ढाँकी घर मै मुकीयो ए। अवसर वास भवन माहै सेज्या बैठो छै प्रांहें छै० श्रीमती नइ इम कीयो ए॥७॥ जा घर माहै अमुलनी घडा माहै छै फुलनी फुल० माला मुकी छै भली ए। आंणो ते माला सई तत्काल तीहां गई ती० नवकार जपंतां मन रली ए ॥८॥ उघाडीनै ढांकणो घडा माहे तिहां घणो ति० मंत्र प्रभावै ए धरी ए। तुठी सासण नी देवी सर्प फीट नै तत् षेवी सुगंध फुल माला करी ए ॥६॥ फलां नी माला कर थापी आणी भरतार नै आपी नै० ते देषी चमक्यो सही ए। ए करस्यु तिहां जाइन ते घडो जोवै आइनै आ० देष तो माहै नही ए॥१०॥ एह घडो परमल भरी महकै छै महमकरी म० एमै जांण्यो एहवो ए। एहने देव सानिध करै हुँ अभागीयां सरै यां० जेहनै पाहु उ चितव्यो ए॥११॥ पाछै सजन नै मली तेह आगल आयो चली आ० ए वरतंत माता ने कीयो ए। माताजी तब उछली नगर लोक आया मली आ० आंण घडो उघाडीयो ए ॥१२॥ माता नै कहै संभलो एह घडा माहै न्हालो मा० देषां माहै छै कांइ ए। देषे तो माहै साप माता पांमै संताप सं० बेटा नै बोले माइ ए ॥१३॥ नारी नै कहै नाथ तुम देष सघलो साथ स० देषंतां माला काढे ए। सगंध सघल वसतरी नर नारी हर्षत धरी ह० गुणवती ना गुण वाढे ए॥१४॥
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