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पूज्य श्री नृसिंहदास जी महाराज की कुछ
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तवन लषते ॥
वीर जिणेस सासण नायक सुण प्रभु अरज हमारी। जंबु दीपै भरत षेत्र मै कुंडणपुर सुषकारी। वी० ॥१॥ राय सिधारथ ने घर रांणी तिसला मात तुमारी। प्राणतलोक थकी चवीन आय लीयो अवतारी । वी० ॥२॥ चवदे सूपना देषनै जागी राजा पास पधारी। राजाजी सांभलनै कहीयो कुमर होसे अतिभारी । वी० ॥३॥ राजा सुपन पाठक तेडीने कीधो सपन विच्यारी। इम घर सु तिर्थकर होसे दान दीयो बहु भारी। वी० ॥४॥ जनम्यां पाछै जोवन वै मै परण्या छो एक नारी। तीस वरस घर माय रही नइ लीधो संजम भारी । वी० ॥५॥ बीस वरस छदमस्त रहीने कठण कर्म परजारी। घनघाती चउ कर्म षपावी केवल कमला धारी। वी० ॥६॥ च्यार हजार च्यार से मुनीवर एकण दिन व्रतधारी। गोतम सरिषा गण धर ग्यारै लबध तणां भंडारी । वी० ॥७॥ चवद हजार मुनीसर हूवा अरजका छतीस हजारी। तीस बरस केवलपद पाली ताऱ्या बहु नर-नारी । वी० ॥८॥ पावापुरी प्रभूजी पधाऱ्या हरष हुवा नर-नारी। हस्तपालरा करी बीनती चौमासो रह्या धारी । वी० ॥६॥ काती बुध अमावस के दिन पहता मुगति मंजारी। कर जोडी रष नरसींघ बोले अब प्रभूजी मोए तारी। वी० ॥१०॥ समत अठार पच्यासे मगसर दसमी मंगलवारी। कसन पष गंगापुर माहै तवन कह्यो हेतकारी । वी० ॥११॥
॥ इति श्री संपुर्णः ॥
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