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________________ पूज्य प्रवर्तक श्री के नित्य स्मरणीय पद | ५४१ सुर नर इन्द्र सेवा करे प्रभू वरसे अमृत वेण । अमिय झरे प्रभू मुख थकी थांने देखिया ठरे दोई नैन ॥४॥ तीर्थनाथ त्रिभुवनधणी तीरथ थाप्या चार । समो सरण भेला रहे प्रभू जठे सींह ने बकरी एक ठाम ॥५॥ देव घणा ही देखिया प्रभू गरज सरी न काय । तु मारे सांचो सायबा मे तो आस धरी दिल मांय ।।६।। रिख चोथमलजी की वीनती प्रभू सुनियो दुतिया चंद । अविचल पदवी आपजो म्हांने अचला जीनानंद ॥७॥ ०००००००००००० ०००००००००००० AR FONTRIP JAIPIEL K ... HAIRITER Ummy स्तवन : १३ प्रभूजी रो कइय न मांगें म्हाका राज। म्हारी राखीजे प्रभुजी लाज ॥टेर।। हाथी घोडा म्हेल नहीं माँग नइ माँग कछ राज। पुत्र कलत्र धन दोलत न माँगू माँगू धर्म की जहाज ॥१॥ समकित मांही क्षायक माँगें ध्यान में सुकल ध्यान । यथाख्यात चारित्र माँगू ज्ञान में केवल ज्ञान ॥२॥ जिनवर गणधर रो पद जो मांगू माँगू सुख की रास । मुनि राम कहे अक्षय पद मांगूं माँगू सिवपुर खास ॥३॥ 4RFEWS स्तवन : १४ ढंढण रिष दर्शन री बलिहारी आपरी सूरत मोहनगारी ।।टेर।। निर्जरा करणी दोनों थारी परम श्री नेम उचारी। यादव नो कुल उंचो जो लाया अद्भुत करणी थारी ॥१॥ छ महीना लग अन्न-जल न लीदो लीदो अभिग्रह धारी। म्हारी लब्धी को आहर पानी लेसु जाव जीव लग धारी ॥२॥ श्रीपती गाथापती प्रतिलाभ्यो आहार ने पानी। आहार पानी ले प्रभु पासे आया नई वछ लबध तुम्हारी ॥३॥ मोदक परठण काजे चाल्या दिया कर्म विदारी। मुनि राम जपे जिन शासन में मुनिवर बड़े उपकारी ॥४॥
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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