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जैन परम्परा : एक ऐतिहासिक यात्रा | ५१७
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विवाहित जम्बूकुमार ने आठों कमल-किसलय-सी सुकुमार पत्नियों के साथ जब गृह-प्रवेश किया तो धारिणी का रोम-रोम पुलकित हो उठा । मंगल आरतियाँ कर उनका स्वागत किया।
जम्बू-विवाह के प्रारम्भ से अंत तक, एक आज्ञाकारी की तरह सारे कार्यक्रम निभाते रहे उन्हें कहीं भी तो रस नहीं था। अनोखी सुहागरात
नव दम्पत्ति के लिये सुहागरात सम्मोहन और विमुग्धता लेकर आती है किन्तु, जम्बू की सुहागरात तो अनोखी थी।
रात्रि के प्रथम प्रहर में एक सजे हुए भवन में-जब जम्बू और उनकी आठों पत्नियां मिले तो, वहाँ नितान्त अनोखा वातावरण था।
कामनियाँ जहाँ मोहोद्रेक में छकी सलज्ज बंकिम चित्तवन से श्री जम्बू को आकर्षित करने में लगी थीं वहाँ श्री जम्बू वैराग्य आभा से देदीप्यमान, सौम्य दृष्टि से उन्हें देख रहे थे।
नीरवता को भंग करते हुए श्री जम्बू ने कामिनियों को विकार पूर्ण संसार की भीषणता बताते हुए, मुक्ति मार्ग की ओर बढ़ने का आग्रह किया।
पद्मश्री आदि ने अपने आकर्षण पूर्ण हाव-भाव के साथ अप्रत्यक्ष-मुक्ति के आग्रह को अनुपयोगी और भ्रमपूर्ण बताया।
जम्बू और आठों के मध्य तर्कपूर्ण प्रश्नोत्तर चल रहे थे । तभी'प्रभव' तस्कर का आगमन
जयपुर नरेश 'विन्ध्यराज' का पुत्र प्रभव राजा की अप्रसन्नता से राज्याधिकार से वंचित होने के कारण क्रुद्ध हो, राजमहलों से बाहर आ गया और बागी बन कर बड़े-बड़े डाके डालने लगा । 'प्रभव' के गिरोह में पांच-सौ डाकू सम्मिलित थे। ये डाका भी डाला करते। कभी-कभी बड़ी-बड़ी चोरियां भी कर लिया करते । राजगृह और उसके आस-पास ही नहीं, दूर-दूर तक भी प्रभाव के नाम का बड़ा आतंक था। प्रभव क्रूर और कलापूर्ण तो था ही साथ ही वह कई विद्याओं का स्वामी भी था।
उसने राजगृह और उसके आस-पास अपने कई सहयोगी भी बना रखे थे जो शहर और अन्य जगह की उसे बराबर खबर दिया करते थे।
प्रभव को जब यह ज्ञात हुआ कि ऋषभदत्त सेठ जो पहले से ही बड़ा धनाढ्य है, उसके वहाँ-अपने पुत्रविवाह में और बहुत-सा धन आ पहुँचा है। अभी उस धन को वह सुनियोजित नहीं कर पाया होगा अत: उसने उसी दिन उसके वहाँ चोरी करने का निश्चय कर लिया और अपने पाँच-सौ चोरों के साथ वह उस भवन में पहुंच गया।
उसने अपनी स्वापिनी और तालोद्घाटिनी विद्याओं का प्रयोग कर सभी को सुला दिया और ताले भी हटा दिये किन्तु अचानक वहाँ कुछ और ही स्थिति बन गई। एक प्रभव को छोड़ सभी के पाँव जहाँ के तहाँ चिपक गये ।
उसे बड़ा आश्चर्य हुआ साथ ही उसे इस घटना से बड़ी बेचैनी भी हुई। वह हैरान इधर-उधर ढूंढ़ने लगा उस व्यक्ति को जिसके प्रबल प्रभाव का चमत्कार उसे संकट में डाल रहा था।
'प्रभव' ढूंढ़ता हुआ अचानक उस सुसज्जित भव्य-भवन में पहुंच गया जहाँ, अप्सरातुल्य आठों कामलतासी कामिनियों के मध्य इन्द्र कल्प, वीतराग भाव मण्डित जम्बू शोभायमान हो रहा था और आठों कामिनियों को वैराग्यप्रद संदेश देता हुआ उन्हें संसार की असारता से परिचित करा रहा था।
प्रभव यह सब देखकर ठिठक गया । वह कुछ देर खड़ा रहा तथा उस दुर्लभ दृश्य को देखता रहा जो उसके लिये नितान्त अकल्पनीय तथा अनुपम था। -
राग और विराग का ऐसा सुस्पष्ट द्वन्द्व उसे कभी भी कहीं भी देखने को नहीं मिला था । जम्बू की ओजपूर्ण सत्योक्तियों से वह बड़ा प्रभावित हो रहा था किन्तु कोमलांगिनी कामनियों की तिरोहित होती हुई भावोमियों के प्रति भी वह कम संवेदनशील नहीं था। उसे बार-बार उनके प्रति सहानुभूति जग रही थी। उसे अनुभव हो रहा था कि जम्बू का मार्ग सत्य हो सकता है किन्तु नवविवाहिता इन सुन्दरियों के साथ जो कुछ हो रहा है वह भी कम अन्यायपूर्ण नहीं है।