________________
५१६ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज–अभिनन्दन ग्रन्थ
000000000000
००००००००००००
यजल
TAMIN
ALLL
वैराग्योदय
उन्हीं दिनों भगवान महावीर के पट्टधर शिष्य श्री सुधर्मा स्वामी का राजगृह पदार्पण हुआ।
सहस्रों व्यक्तियों की तरह श्री जम्बू भी दर्शनार्थ गया और उनके अमृतमय उपदेशों का सरस पान कर अपने आपको धन्य बनाया।
श्री सुधर्मा स्वामी के उपदेशों में आत्मा के अनन्तकालिक भवभ्रमण का बड़ा सजीव विवेचन था, जिसे श्रवण कर जम्बू का हृदय वैराग्य की तरंगों में लहराने लगा। ज्यों-ज्यों, जम्बू श्री सुधर्मा स्वामी के उपदेशों पर मनन करता गया त्यों-त्यों सांसारिकता को असारता और संयम की श्रेष्ठता का तत्त्व-रत्न उसे मिलता रहा।
उसे अनुभव हुआ कि जीवन का सर्वाधिक करणीय पुरुषार्थ तो केवल यह है कि आत्मा अपने अनन्त कालिक भव भ्रमण की संतति को काट सके ।
जम्बू जब पुनः अपने गृह की ओर बढ़ रहे थे उनके अन्तर में, दृढ़ निश्चय भी होता जा रहा था।
उन्होंने अपने भवन पर पहुँच कर अपने सम्यक् निर्णय और दृढ़ निश्चय का परिचय माता-पिता को स्पष्ट दे दिया।
श्री जम्बू का निश्चय संयम मार्ग पर बढ़ने का था । अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय-पुत्र के द्वारा संयम का निश्चय सुनकर माता तो मूच्छित ही हो गईं-पिता भी आहत से हो चिन्तित हो गये। उन्होंने पुत्र के इस वज्र संकल्प का कई तरह विरोध किया । उसे कई तरह से समझाया किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। वैराग्य पूर्वक विवाह
जम्बू कुमार के माता-पिता के लिये जम्बू का दृढ़ निश्चय लगभग असह्य था किन्तु श्री जम्बू का निश्चय, तत्त्वार्थ पर आधारित आत्मा के धरातल से उठा एक परम सत्य था । जीवन में परम सत्य को पा जाना ही बहुत बड़े भाग्य की बात है । जम्बू उसे पाकर खोना नहीं चाहते थे ।
माता-पिता को भी लगभग निश्चय हो गया कि अब जम्बू का निश्चय परिवर्तित होना सम्भव नहीं फिर भी उन्होंने एक अंतिम प्रयास और किया ।
उन्होंने कहा-हमने बड़ी आशाएँ लगा रखी थीं तुम पर, जम्बू ! तुम्हारे इस नवीन-निश्चय से हमारी लगभग सभी इच्छाओं पर पानी फिर गया ।
अब अन्त में हमारा एक छोटा-सा आग्रह है-यदि तुम संयम-पथ पर बढ़ना ही चाहते हो तो बढ़ो, किन्तु विवाह कर एक बार हमारे आंगन पर पुत्र-वधुओं के आभूषणालंकृत पद चाप की मधुर झंकार झंकृत हो जाने दो। फिर अपनी पत्नियों को मनाकर तुम संयमी बनो, हमारी कोई आपत्ति नहीं। यह सुनकर जम्बू ने कहा-मैंने आजीवन ब्रह्मचर्य का नियम लिया है, मुझसे अब विवाह करने को कोई कन्या क्यों तैयार होगी, मेरा निश्चय स्पष्ट है, किसी को अनजान भी नहीं रखना है फिर भी यदि कोई विवाह को तैयार हो जाए तो मुझे आपत्ति नहीं। मैं आपकी इस अंतिम अभिलाषा को खण्डित नहीं करना चाहता।
जम्बूकुमार का यह अनुकूल उत्तर पाकर माता-पिता बड़े प्रसन्न हुए। उन्हें विश्वास था कि आने वाली कन्याएँ इसे अपने आकर्षण में बांध लेंगी और पुत्र संयम के पथ पर बढ़ने से रुक जाएगा।
ऋषभदत्त सेठ ने अपने आठों सम्बन्धियों को अपनी सारी वास्तविकता से अवगत किया और विवाह का प्रस्ताव रखा। ऐसी स्थिति में कोई विवाह करे यह सम्भव नहीं था किन्तु आठों कन्याओं ने मिलकर, विवाह करने का निश्चय कर लिया था। उन्हें अपनी सुन्दरता का मान तो था ही साथ ही उन्होंने यह भी निश्चय किया कि एक व्यक्ति के प्रति पति-भाव का निश्चय कर अन्य का वरण करना अधर्म है।
उन्होंने निश्चय किया कि हमें त्याग कर जाना आसान नहीं हैं-हम अपनी राग-पाश में बांधकर उन्हें निश्चय से हटा देंगी।
कन्याओं के निश्चयानुसार उनके माता-पिता, विवाह को तैयार हो गये और उचित समय पर बड़े समारोह के साथ विवाह कार्य-संपन्न हुआ। कन्याओं को विदा करते समय माता-पिता उनकी विजय की मंगलकामना के साथ उनकी भावी सुरक्षा के लिये अतुल धन-वैभव भी साथ दिया ।
Lain Education Intemational
For Date Dersonal use one