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५१० | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज–अभिनन्दन ग्रन्थ
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सिंह किन्तु क्लान्तावस्था में दिखाई दिया, इसका तात्पर्य यह है कि जैनधर्म का प्रकाश मन्द होगा। मिथ्यात्व बढ़ेगा।
कमल को कीचड़ में लिप्त देखा इसका अर्थ है कि श्रेष्ठ कुलोत्पन्न व्यक्ति भी हीनाचरण से ग्रस्त हो जाएगा। प्रायः कुसंग करेगा।
सातवें स्वप्न में बीज देखा, राजन् ! गृहस्थ मूर्ख किसान की तरह उपजाऊ, सुपात्र मुनि को छोड़ ऊसर, पाखण्डियों की अधिक सेवा करेंगे ।
आठवें स्वप्न कुभ का निर्णय देते हुए प्रभु ने कहा-खाली घड़ा मोटा तो दिखता है किन्तु उसमें सार तत्त्व की कमी होती है ऐसे ही निःसार, पाखंडी शिथिलाचारी साधु ही अधिक होंगे।
प्रभु के द्वारा अपने स्वप्नों का निर्णय सुन कर राजा पुण्यपाल को आश्चर्य तो हुआ ही साथ ही, परिवर्तनशील संसार के स्वभाव को पहचान कर उसे विरक्ति हो गई। और उन्होंने प्रभु के चरणों में संयम स्वीकार कर लिया। प्रभु अपनी आयु बढ़ावें
प्रभु का निर्वाण निकट ही था। शकेन्द्र से यह बात छिपी हुई नहीं थी।
उन्होंने सेवा में उपस्थित हो आग्रह किया--प्रभु ! आपकी जन्म-राशि पर भस्म ग्रह संक्रान्त होने वाला है। वह दो हजार वर्ष रहेगा अत: आप अपने निर्वाण को कुछ आगे बढ़ा दें। जिससे यह अशुभ योग टल जायेगा। प्रभु ने कहा-यह नहीं हो सकता।
आने वाली परिस्थितियां जिन शासन के लिए विकट हैं । उनका विकट निवारण संभव नहीं। इन्द्रभूति को अन्तिम आज्ञा
इस चातुर्मास के अन्तिम मास कार्तिक में, अपना निर्वाण निकट जान कर कार्तिकी अमावस्या के एक दिन पूर्व ही प्रभु ने बेले का तप कर उपदेश प्रारम्भ किया।
यह प्रवचन सोलह प्रहर तक चला।
प्रभु ने गौतम स्वामी का अपने प्रति असीम अनुराग देखकर सोचा-यदि यह मेरे निर्वाण के समय उपस्थित रहा तो शोक द्रवित हो असीम रुदन करेगा अतः प्रभु ने उन्हें एक देवशर्मा नामक ब्राह्मण को प्रतिबोधित करने का आदेश देकर उसके स्थान पर भेज दिया। श्री गौतम स्वामी तो केवल 'आणाए धम्मो' के पालक थे। वे देवशर्मा को प्रति बोधित करने गये । परिनिर्वाण
कार्तिक कृष्णा अमावस्या की अर्धरात्रि का समय था मुहूर्तानुसार, चन्द्र संवत्सर प्रीतिवर्धनमास, नन्दीवर्धन पक्ष, उपशम दिन, देवानन्दारात्रि अर्थ नामक लव था। सर्वार्थ सिद्ध मुहर्त में स्वाति नक्षत्र का शुभयोग था।
प्रभु ने अपना अन्तिम अवसर देख, उत्कृष्ट शुक्ल ध्यान किया। शैलेशी दशा को प्राप्त करते हुए शेष अघाती कर्मों का क्षय कर योग निरुद्ध होते ही पंचाक्षारोच्चारण जितने अल्प समय में ही सिद्ध हो गये। गौतम स्वामी को कैवल्य
प्रभु के निर्वाण होने की सूचना क्षणभर में चारों ओर फैल गई। देवनिर्वाणोत्सव करने लगे, धर्मानुरागी नरनारी प्रभू के वियोग में शोकाकूल रुदन करने लगे, ज्ञानीजन, वीतराग भाव में रमण करने लगे । त्रैलोक्य दीप के बुझ जाने के कारण सारा वातावरण तमसावृत-सा हो गया।
श्री गौतम स्वामी तुरन्त निर्वाण-स्थल पर पहुँच कर शोकाकुल हो गये। कहते हैं, उस समय इन्द्र ने श्री गौतम स्वामी को भक्तिभाव पूर्वक बड़े मधुर शब्दों में धैर्य दिया और ज्योंही श्री गौतम धैर्यस्थ हुए उनका वीतराग भाव जाग्रत हो गया। वे शोक का परित्याग कर आत्म-चितन में लग गये। उसी क्षण उन्हें कैवल्य की प्राप्ति हो गई।
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