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________________ जन परम्परा : एक ऐतिहासिक यात्रा | ५०६ ०००००००००००० 000000000000 CODDO म SAAP ITUN मम पहुँच कर उससे क्षमायाचना की और सत्य को सहर्ष स्वीकार किया। श्रीमद् गौतम स्वामी का यह सारल्य जीवन निर्माण के लिए एक प्रेरक सूत्र है। विलक्षण रत्न चर्चा साकेत निवासी जिनदेव एक श्रावक रत्न था । वह व्यापारार्थ 'कोटिवर्ष' नामक नगर में पहुंचा जहाँ एक "चिलात" (किरात) म्लेच्छ राजा का राज्य था। जिनदेव ने उन्हें कुछ रत्न भेंट किये, अदृष्ट पूर्व होने के कारण वह उन्हें पाकर बड़ा प्रसन्न हुआ। उसकी इच्छा और कई रत्न देखने की हुई । जिनदेव ने कहा-हमारे देश में कई अनोखे रत्न होते हैं आप चलें तो बताएँ। किरात भी देखने की उत्सुकता लिये जिनदेव के साथ साकेत आ गया। उन दिनों भगवान महावीर वहाँ पधारे हुए थे। हजारों नरनारी उनके दर्शनार्थ उमड़े जा रहे थे । चिलात ने पूछा, ये कहाँ जा रहे हैं ? जिनदेव ने कहा, एक बड़ा रत्न व्यापारी आया है सभी वहाँ रत्न लेने जा रहे हैं । किरात को भी उत्सुकता हुई। वह भी जिनदेव के साथ वहां पहुंचा। किन्तु वहाँ कोई रत्न दिखाई नहीं दिया। धर्मोपदेश के बाद भगवान महावीर से रत्नों के विषय में बड़ी सुन्दर चर्चा हुई। किरात के प्रश्नों के उत्तर में प्रभु ने कहा-द्रव्य और भाव यों दो तरह के रत्न होते हैं । द्रव्य रत्न, भौतिक तथा क्लेशवर्धक और उपाधि-जन्य होते हैं। किन्तु भाव रत्न, प्रशस्त और आनन्द के सर्जक आत्म-कल्याण के विधायक होते हैं. वे ज्ञान रत्न, दर्शन रत्न और चारित्र रत्न यों तीन तरह के होते हैं। प्रभु ने इनके स्वरूप को स्पष्ट करते हुए सांसारिक विकारों की हेयता सिद्ध कर दी। प्रभु के तत्त्वोपदेश से किरात को स्वरूप ज्ञान हुआ और वह प्रभु के पास दीक्षित हो अनुपम संयम रत्न का अधिकारी बन गया। एक निषेध राजगृह में महाशतक भगवान का श्रेष्ठ श्रावक था किन्तु उसकी पत्नि रेवती बड़ी तुच्छ व क्षुद्र स्वभाव की और कर्कशा स्त्री थी। वह महाशतक के धर्माराधन से अप्रसन्न थी। एक बार महाशतक पौषध में था। रेवती उसके सामने आकर बड़ा अश्लील बोलने लगी, अपने बालों को बिखेर कर और चिल्लाकर महाशतक को ध्यान भ्रष्ट करने लगी। ऐसा उसने दो तीन बार किया तो महाशतक आतंकित हो उठा और उसने उसके नरक-गमन का निश्चय प्रकाशित कर दिया। प्रभु महावीर तब राजगृह ही थे । उन्हें अपने ज्ञान से यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने गौतम स्वामी को महाशतक के निकट भेजा । श्री गौतम स्वामी ने महाशतक को समझाया कि ऐसा सद्भुत निश्चय भी श्रावक को पौषध में प्रकट करना नहीं कल्पता । महाशतक ने आत्मशुद्धि की। पुण्यपाल के आठ स्वप्न पावा के राजा पुण्यपाल को एक रात्रि में दश स्वप्न दिखाई दिये । उस समय प्रभु का चातुर्मास पावा में ही था । यह प्रभु का अन्तिम चातुर्मास था। हाथी, बन्दर, क्षीर तरु, कौआ, सिंह, पद्म, बीज और कुंभ ये कुल आठ स्वप्न राजा को आये, ये सभी अशुद्धावस्था पूर्ण थे । इन स्वप्नों से राजा का मन चिन्तित और आतंकित-सा हो गया। उसने प्रभु के समक्ष अपने स्वप्नों की बात रखी । स्पष्टीकरण करते हुए प्रभु ने कहा, राजन् ! ये अशुद्ध स्वप्न अशुद्ध भावी युग के सूचक हैं। अब श्रेष्ठत्व कम होकर आर्यावर्त में हीनत्व का प्रभाव बढ़ेगा। हाथी, स्वप्न की सूचना यह है कि श्रमणोपासक क्षणिक सामान्य ऋद्धि पाकर भी अहं में हाथी की तरह फूल जाएंगे। कपि दर्शन का परिणाम यह होगा कि कई संघपति आचार्य चंचल प्रकृति के और क्षुद्र होंगे। क्षीर तरु का तात्पर्य यह है कि यशादि लाभार्थ दान देने वाले व्यक्तियों को कुसाधु बड़ा महत्त्व देंगे। काक स्वप्न का अर्थ यह है कि साधु संस्था में अनुशासनहीनता की अभिवृद्धि होगी। का, सि, इस समय आप का मामाल पाव ISi ८. - 5 ZE - /- -
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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