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________________ 000000000000 - 00008 oooooooooooo OCOOOO F १२ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज - अभिनन्दन ग्रन्थ देलवाड़ा, आकोला, बदनौर, कौशीथल, राजकरेड़ा, अजमेर, मोही, वल्लभनगर, खेरीदा, राजकरेड़ा, गोविन्दगढ़, जड़ौल, राशमी, आकोला, भादसौड़ा और कपासन पूज्यश्री के साथ चातुर्मास होते रहे । सादड़ी सम्मेलन में सामाजिक अनेकता समाज को वर्षों से खोखला बना रही थी । साम्प्रदायिक कलह वातावरण को विषाक्त बना रहे थे । ऐसे समय में संघ में ऐक्य का नारा बुलन्द हुआ । वर्षों के श्रम के उपरान्त सादड़ी सम्मेलन निश्चित हुआ । दूर-दूर से सन्त मुनिराज प्रतिनिधिगण पधारे थे इस सम्मेलन में मेवाड़ सम्प्रदाय का जो प्रतिनिधि मण्डल सम्मेलन में पहुंचा, उसका नेतृत्व श्री अम्बालालजी महाराज कर रहे थे। सम्मेलन में सामाजिक समस्याओं पर गहराई तक विचारविमर्श हुआ। ऐक्य के मार्ग में अनेकों बाधाएँ थीं। किन्तु प्रबुद्ध मुनिराजों ने एक-एक कर समस्त बाधाओं पर विजय पाई और श्रमण संघ स्थापित कर संघ ऐक्य की पताका लहरा दी। विशाल संघ की ऐक्य संरचना में श्री अम्बालालजी महाराज का आदि से अन्त तक भरपूर सहयोग रहा। जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा सम्प्रदाय के अधीन व्यतीत करने के बावजूद भी गुरुदेव श्री एकता के सच्चे उपासक है। इसका प्रमाण इनका अब तक भी श्रमण संघ में सम्मिलित रहना है । सादड़ी सम्मेलन के अवसर पर संघ में सम्मिलित कई सम्प्रदायें आज फिर से अपने घेरे में पहुँच चुकी हैं, किन्तु गुरुदेव आज भी दृढ़ता के साथ संघ में हैं और सम्पूर्ण एकता की बात किया करते हैं । साम्प्रदायिक साथियों ने अलग होने का आग्रह भी किया होगा, किन्तु ये तिलमात्र नहीं हिले । ये कहा करते हैं कि साधु कहकर भी नहीं बदल सकता तो हमने तो हस्ताक्षर किये हैं, उनसे कैसे हटें ? संघ में कुछ समस्याएँ हो सकती हैं। उनका समाधान संघ में रहकर करने का यत्न करें, यह उचित है। उस वर्ष का चातुर्मास खमणौर किया और उसके बाद मोलेला । पूज्यश्री स्थानापन्न मोलेला चातुर्मास तक पूज्यश्री का विचरण चला। तदनन्तर पूज्यश्री पाँच वर्ष देलवाड़ा स्थानापन्न विराजे । श्री अम्बालालजी महाराज उपर्युक्त सारे चातुर्मास और मध्य व चरणकाल में तो साथ थे ही, देलवाड़ा भी पूज्यश्री की सेवा में पांचों वर्ष सेवा की अडिग आस्था लिये टिके रहे । श्रावक संघ तो यह जान ही चुके थे कि अम्बालालजी महाराज का अलग से विचरण न हुआ, न होगा, फिर भी यदि कोई संघ अपने क्षेत्र के लिये गुरुदेव हेतु विशेष प्रार्थना भी करता तो उसे निराशा ही मिलती, क्योंकि गुरु और शिष्य में से न कोई भेजना ही चाहते थे, न जाना ही । संवत् २०१५ श्रावण शुक्ला चतुर्दशी को पूज्यश्री मोतीलालजी महाराज का स्वर्गवास हो गया । श्री अम्बालालजी महाराज के लिये यह वज्रपात-सी घटना थी। ऐसे कठिन समय में श्री अम्बालालजी महाराज ने न केवल अपने को ही सम्भाला अपितु गुरु-वियोग से पीड़ित मेवाड़ की हजारों जनता को आत्मिक सम्बल प्रदान किया। देलवाड़ा से प्रस्थान लगातार पाँच वर्ष देलवाड़ा में गुरु सेवा का अमृत पान कर अपने गुरुदेव श्री भारमलजी महाराज सहित श्री अम्बालालजी महाराज और अन्य शिष्य गण कुल ठाणा ने प्रस्थान किया तो देलवाड़ा के भक्तिमान आबाल वृद्ध नरनारियों की आँखें छलछला आईं। उस वर्ष कोशीथल वर्षावास हुआ और उसके बाद देवगढ़ । मुसलमानों की प्रतिज्ञा सेवा ही जिनके जीवन का मन्त्र हो, उन्हें तो केवल सेवा चाहिए। पूज्यश्री के स्वर्गवास के बाद गुरुदेव श्री भारमलजी महाराज का नेतृत्व पा गये । मुनिश्री उन्हीं की सेवा में तल्लीन हो गये । "कबहुँ - कबहुँ इन जग मँह, अनहोनी घटि जायें।" - कभी-कभी अप्रत्याशित घटनाएं घट जाया करती है। बदनौर में आगामी चातुर्मास के लिये कई आग्रह चल रहे थे । वयोवृद्ध गुरुदेव श्री भारमलजी महाराज ने राजकरेड़ा को FO KFKX For Private & Personal Le
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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