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________________ जैनागमों में मुक्ति : मार्ग और स्वरूप | ३१६ 000000000000 ०००००००००००० (ख) सान्तर मुक्त-जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छः मास बाद मुक्त होते हैं। (११) संख्या-एक समय में जघन्य एक और उत्कृष्ट एक सौ आठ मुक्त होते हैं । (१२) अल्पबहुत्व-(क) क्षेत्र मुक्त-संहरण मुक्त सबसे अल्प होते हैं । (ख) उनसे जन्म-मुक्त संख्येय गुण हैं। लोक-मुक्त-(क) सबसे अल्प उर्वलोक से मुक्त होते हैं । (ख) अधोलोक से मुक्त होने वाले उनसे संख्येय गुण हैं । (ग) तिर्यग्लोक से मुक्त होने वाले उनसे संख्येय गुण हैं । (घ) समुद्र से मुक्त होने वाले सबसे अल्प हैं। द्वीप से मुक्त होने वाले संख्येय गुण हैं । विस्तृत विवरण जानने के लिए लोक प्रकाश आदि ग्रन्थ देखने चाहिए। प्रस्तुत निबन्ध में मुक्ति मार्ग से सम्बन्धित अनेक विषय संकलित किए गए हैं। किन्तु अवशिष्ट भी अनेक रह गए हैं। यदि मुक्ति विषयक सारी सामग्री संकलित करने का प्रयत्न किया जाता तो समय एवं श्रम साध्य होता और विशालकाय निबन्ध बन जाता। जो इस ग्रन्थ के लिए अनुपयुक्त होता । यदि कहीं अल्पश्रुत होने के कारण अनुचित या विपरीत लिखा गया हो तो, "मिथ्या मे दुष्कृतम् ।" बहुश्रुत संशोधनीय स्थलों की सूचना देकर अनुग्रहीत करें । यही अभ्यर्थना है। NEPAL ATTRITE MEANIN MARATI MULILA १ उत्त० अ० २६, गा० ४५, ४६, ७४ । १६ उत्त० अ०६, गाथा ५८ । २ उत्त० अ० २६, गा०४७-७४ । २० उत्त० अ० २३, गाथा ८३ । ३ उत्त० अ०७, गा०१ से ३ । २१ उत्त० अ० ३६, गाथा ५७-६१ । ४ मोचनं मुक्तिः । कृत्स्नकर्मक्षयो मोक्षः । अथवा मुच्यते २२ प्रज्ञापना पद २, सू० २११।। सकल कर्मभिर्यस्यामिति मुक्तिः । २३ ठाणांग अ० १, सू० १० और सू० ४६ । ५ उत्त० अ०६, गाथा १० । २४ भग० श० १६, उ०६, सूत्र १८ से ३१ । उत्त० अ० २८,गा०३० । २५ पूर्वप्रयोगादसंगत्त्वाद्वन्धछेदात्तथागति परिणामाच्च ७ जाईजरा मच्चुभयाभिभूया, तद्गतिः । तत्त्वार्थ० अ० १० सूत्र ६ । बहि विहारामिनिविट्ठ चित्ता । २६ प्रज्ञापना पद २, सूत्र २११ । संसार चक्कस्स विमोक्खणट्ठा । २७ प्रज्ञापना पद २। दठूण ते कामगुणे विरत्ता ॥ २८ सूत्रकृताङ्ग अ०११ टीका । -उत्त० अ० १४, गा०४ । २६ तत्त्वार्थसूत्र अ० १, सू०१ । ८ उत्त० अ० १० गाथा ३५ । ३० भग० श०८, उ०१०। है उत्त० अ०१४ । ३१ सूत्रकृताङ्ग श्रु०१, अ०३, उ०४ १० उत्त० अ०१७, गाथा ३८ । ३२ सूत्रकृताङ्ग २.० २, अ०७। ११ उत्त० अ०१६,६७ । ३३ सूत्रकृताङ्ग श्रु०१, अ०६। १२ उत्त० अ०२८, गाथा ३ । ३४ आचा०१, अ०२, उ०६। १३ उत्त० अ० ३६, गाथा ६७ । ३५ आचा० १, अ० ५, उ०६ । १४ उत्त० अ०१६,गाथा ८३ । ३६ आचा०१, अ०३, उ०१ । १५ उत्त० अ० २३, गाथा ८१ । ३७ आचा०१, अ०६, उ०३। १६ उत्त० अ० २९, सूत्र ४४ । ३८ सूत्र० श्रु०१, अ०१५, गा०१४ । १७ उत्त० अ० २३, गाथा ८१ । ३६ सूत्र० श्रु०१, अ०८, गा०१०। १८ उत्त० अ० २३, गाथा ८३ । ४० सूत्र० श्रु. १, अ० १३, गा० १५-१६ । ... 1 TEST Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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