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३१८ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज — अभिनन्दन प्रन्य
(ग) द्रव्य लिंग की अपेक्षा स्वलिंग ( जैन लिंग), परलिंग और गृहस्थलिंग इन तीनों लिंगों से मुक्ति हो सकती है ।
(५) तीर्थ – (क) कोई तीर्थंकर रूप से और कोई अतीर्थंकर रूप से मुक्त होते हैं ।
(ख) तीर्थंकर के अभाव में यदि तीर्थंकर का शासन चल रहा हो या शासन विच्छिन्न हो गया हो - दोनों
समयों में आत्मा मुक्त हो सकती है।
(६) चारित्र - (क) वर्तमान काल की अपेक्षा यथाख्यात चारित्र युक्त आत्मा मुक्त होती है । (ख) अतीत की अपेक्षा तीन, चार या पांचों चारित्र युक्त आत्मा मुक्त हो सकती है । यथा-तीन चारित्र - १ सामायिक चारित्र, २ सूक्ष्मसम्पराय चारित्र, और ३ यथाख्यात चारित्र । तीन चारित्र - १ छेदोपस्थापनीय, २ सूक्ष्मसम्पराय और ३ यथाख्यात चारित्र ।
चार चारित्र - १ सामायिक चारित्र, २ परिहारविशुद्धि चारित्र, ३ सूक्ष्मसम्पराय चारित्र, और ४ यथाख्यात चारित्र ।
पांच चारित्र – १ सामायिक चारित्र, २ छेदोपस्थापनीय चारित्र, ३ परिहारविशुद्धि चारित्र, ४ सूक्ष्म सम्पराय चारित्र, और ५ यथाख्यात चारित्र ।
(७) प्रत्येक बुद्ध बोधित — (क) प्रत्येक बुद्ध बोधित आत्मा मुक्त होती है ।
(ख) बुद्ध बोधित आत्मा भी मुक्त होती है ।
(ग) स्वयं बुद्ध मुक्त होते हैं ।
(८) ज्ञान — (क) वर्तमान काल की अपेक्षा एक केवलज्ञानी मुक्त होता है ।
(ख) अतीत काल की अपेक्षा- दो-मति और श्रुत ज्ञानी, तीन मति श्रुत और अवधिज्ञानी, अथवा मतिश्रत और मनपर्यवज्ञानी, चार—मति, श्रुत, अवधि और मनपर्यवज्ञानी मुक्त होते हैं।
(e) मुक्तात्मा की अवगाहना
मुक्तात्मा के आत्म- प्रदेश देहावसान के समय जितनी ऊंचाई वाले देह में व्याप्त होते हैं उतनी ऊँचाई में से तृतीय भाग न्यून करने पर जितनी ऊँचाई शेष रहती है, मुक्तिक्षेत्र में उतनी ही ऊँचाई में मुक्तात्मा के आत्म-प्रदेश व्याप्त रहते हैं ।
मुक्तिक्षेत्र में मुक्तात्मा के आत्म-प्रदेश तीन प्रकार की ऊँचाइयों में विभक्त हैं ।
१. उत्कृष्ट, २. मध्यम, और ३ जघन्य |
(१) उत्कृष्ट ऊँचाई -- मुक्तात्मा के देह की ऊँचाई ५०० धनुष की होती है तो मुक्ति क्षेत्र में उसके
आत्म- प्रदेश ३३३ धनुष और ३२ अंगुल की ऊँचाई में व्याप्त रहते हैं ।
(२) मध्यम ऊंचाई - मुक्तात्मा के देह की ऊँचाई सात हाथ की होती है तो मुक्ति क्षेत्र में उसके आत्मप्रदेश चार हाथ और सोलह अंगुल की ऊंचाई में व्याप्त रहते हैं ।
(३) जघन्य ऊँचाई – मुक्तात्मा के देह की ऊँचाई यदि दो हाथ की होती है तो मुक्ति क्षेत्र में उसके आत्मप्रदेश एक हाथ और आठ अंगुल की ऊँचाई में व्याप्त रहते हैं ।
उत्कृष्ट और जघन्य ऊँचाई वाले मुक्तात्माओं के आत्मप्रदेशों की मुक्ति क्षेत्र में जितनी ऊँचाई होती है, उतनी ही ऊँचाइयों का कथन किया जाता तो पर्याप्त था । उत्कृष्ट और जघन्य के मध्य में समस्त मध्यम ऊँचाइयों का कथन स्वत: हो जाता है, फिर भी यहाँ एक मध्यम ऊँचाई का कथन है। इसका अभिप्राय यह है कि जघन्य सात हाथ की ऊँचाई वाले तीर्थंकर ही मुक्त होते हैं। उनकी यह ऊँचाई तृतीय भाग न्यून होने पर चार हाथ सोलह अंगुल शेष रहती है । मुक्ति क्षेत्र में आत्मप्रदेशों की यह मध्यम ऊँचाई तीर्थंकरों की अपेक्षा से ही कही गई है ।
सामान्य केवलज्ञानियों की अपेक्षा से तो मुक्तिक्षेत्र में मुक्तात्माओं के आत्मप्रदेशों की मध्यम अवगाहना ( ऊँचाइयाँ) अनेक प्रकार की हैं ।
(१०) अन्तर-- ( क ) निरन्तर मुक्त - जघन्य दो समय और उत्कृष्ट आठ समय पर्यन्त मुक्त होते हैं ।
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