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३१२ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज-अभिनन्दन प्रन्य धर्मदेव और देवाधिदेव की मुक्ति
धर्म देव अणगार को कहते हैं । यदि वह समाधिमरण करे तो देवगति या मुक्ति को प्राप्त होता है किन्तु देवाधिदेव तो (तीर्थङ्कर) मुक्ति को ही प्राप्त करते हैं।'' आत्मा की क्रमिक मुक्ति
(१) जीव-अजीव का ज्ञान । (२) जीव की गतागत का ज्ञान । (३) पुण्य-पाप और बन्ध-मोक्ष का ज्ञान । (४) ज्ञान से दैविक और मानुषिक भोगों की विरक्ति । (५) विरक्ति से आभ्यन्तर और बाह्य संयोगों का परित्याग । (६) बाह्याभ्यन्तर संयोग परित्याग के बाद अनगारवृत्ति की स्वीकृति । (७) संवरात्मक अनुत्तर धर्म का आराधन । (८) मिथ्यात्व दशा में अजित कर्मरज का क्षरण । (8) केवलज्ञान और केवलदर्शन की प्राप्ति । (१०) योगों का निरोध और शैलेषी अवस्था की प्राप्ति ।
(११) कर्मरज मुक्त-मुक्त । ५ मुक्ति का एक और कम
प्रश्न-तथारूप (आगमोक्त ज्ञानदर्शनचारित्रयुक्त) श्रमण ब्राह्मण की पर्युपासना का क्या फल है ? उत्तर-सेवा का सुफल शास्त्र श्रवण है। प्रश्न-शास्त्र श्रवण का फल क्या है ? उत्तर-शास्त्र श्रवण का फल ज्ञान है। प्रश्न-ज्ञान का क्या फल है ? उत्तर-ज्ञान का फल विज्ञान है। प्रश्न-विज्ञान (सार-असार का विवेक) का क्या फल है ? उत्तर-विज्ञान का फल प्रत्याख्यान (हिंसा आदि पाप कर्मों से निवृत्त होने का संकल्प) है। प्रश्न-प्रत्याख्यान का क्या फल है ? उत्तर-प्रत्याख्यान का फल संयम है। प्रश्न-संयम का फल क्या है ? उत्तर--संयम का फल अनास्रव (संवर-पाप कर्मों के करने से रुकना) है। प्रश्न-अनास्रव का फल क्या है? उत्तर-अनास्रव का फल तप है। प्रश्न-तप का क्या फल है ? उत्तर-तप का फल व्यपदान (पूर्वबद्ध कर्मों का क्षय) है। प्रश्न-व्यपदान का क्या फल है? उत्तर-व्यपदान का फल अक्रिया,(मन, वचन, काया के योगों-व्यापारों का निरोध) है। प्रश्न-अक्रिया का फल क्या है ? उत्तर-अक्रिया का फल निर्वाण (कर्मरज से आत्मा की मुक्ति) है । प्रश्न निर्वाण का फल क्या है ?
उत्तर-निर्वाण का फल मुक्त होना है।६२ आरम्भ-परिग्रह के त्याग से ही मुक्ति
आरम्भ और परिग्रह का त्याग किए बिना यदि कोई केवल ब्रह्मचर्य, संयम और संवर की आराधना से मुक्त होना चाहे तो नहीं हो सकेगा तथा उसे आभिनिबोधिक ज्ञान यावत् केवलज्ञान भी नहीं होगा। 3
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