SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Jain ५. उत्तम कुल ७. स्वस्थ शरीर ६. दीर्घायु ११. सम्यक्त्व १३. क्षायिक भाव १५. मोक्ष होता है । जैनागमों में मुक्ति : मार्ग और स्वरूप | ३०३ उक्त कारणों में तेरहवाँ क्षायिक भाव है, उसके भेद हैं - १. केवलज्ञान २. केवल २. दानलब्धि ४. सामपि ५. मोगलब्धि ६ उपभोग ७. बीर्य लब्धि, ८. क्षायिक सम्यक्त्व और ६. यथाख्यात चारित्र । घातिकर्म चतुष्टय के सर्वथा क्षय होने पर जो आत्म-परिणाम होते हैं वे क्षायिक भाव कहे जाते हैं। ये क्षायिक भाव सादि अपर्यवसित हैं। एक बार प्राप्त होने पर ये कभी नष्ट नहीं होते हैं । मुक्ति सूचक स्वप्न ( १ ) स्वप्न में अश्व, गज यावत् वृषभ आदि की पंक्ति देखे तथा मैं अश्व आदि पर आरूढ़ हूँ - ऐसा स्वयं अनुभव करता हुआ जागृत हो तो स्वप्नद्रष्टा उसी भव से सिद्ध, बुद्ध - यावत् - सर्व दुःखों से मुक्त होता है । (२) स्वप्न में समुद्र को एक रज्जू से आवेष्टित करे और 'मैंने ही इसे आवेष्टित किया है'-- ऐसा स्वयं अनुभव करता हुआ जागृत हो तो स्वप्नद्रष्टा उसी भव से मुक्त होता है । ( ३ ) स्वप्न में इस लोक को एक बड़े रज्जू से आवेष्टित करे और 'मैंने ही इसे आवेष्ठित किया है - ऐसा स्वयं अनुभव करता हुआ जागृत हो तो स्वप्नद्रष्टा उसी भव से मुक्त होता है। ( ४ ) स्वप्न में पाँच रंग के उलझे हुए सूत को स्वयं सुलझाए तो स्वप्नद्रष्टा उसी भव से मुक्त होता है । (५) स्वप्न में लोह, ताम्र, कथीर और शीशा नामक धातुओं की राशियों को देखे तथा स्वयं उन पर चढ़े तो स्वप्नद्रष्टा दो भव से मुक्त होता है । (६) स्वप्न में हिरण्य, सुवर्ण, रत्न एवं वज्र ( हीरे ) की राशियों को देखे और स्वयं उन पर चढ़े तो स्वप्नद्रष्टा उसी भव से मुक्त होता है । ( ७ ) स्वप्न में घास यावत् कचरे के बहुत बड़े ढेर को देखे और स्वयं उसे बिखेरे तो स्वप्नद्रष्टा उसी भव से मुक्त होता है । ६. उत्तम जाति ८. आत्मबल सम्पन्न १०. विज्ञान १२. शील- सम्प्राप्ति १४. केवलज्ञान (८) स्वप्न में शर वीरण वंशीमूल या वल्लीमूल स्तम्भ को देखे और स्वयं उसे उखाड़े तो स्वप्नद्रष्टा उसी भव से मुक्त होता है । (६) स्वप्न में क्षीर, दधि घृत और मधु के घट को देखे तथा स्वयं उठाए तो स्वप्नद्रष्टा उसी भव से मुक्त 1 , मुक्तात्मा के मौलिक गुण (१०) स्वप्न में सुरा, सौवीर तेल या बसा मरे घट को देखकर तथा स्वयं उसे फोड़कर जागृत हो तो स्वप्नद्रष्टा दो भव से मुक्त होता है । (११) स्वप्न में असंख्य उन्मत्त लहरों से व्याप्त पद्म सरोवर को देखकर स्वयं उसमें प्रवेश करे तो स्वप्नद्रष्टा उसी भव से मुक्त होता है । (१२) स्वप्न में महान् सागर को भुजाओं से तैरकर पार करे तो स्वप्नद्रष्टा उसी भव से मुक्त होता है । (१३) स्वप्न में रत्नजटित विशाल भवन में प्रवेश करे तो स्वप्नद्रष्टा उसी भव से मुक्त होता है । (१४) स्वप्न में रत्नजटित विशाल विमान पर चढ़े तो स्वप्नद्रष्टा उसी भव से मुक्त होता है । ये चौदह स्वप्न पुरुष या स्त्री देखे और उसी क्षण जागृत हों तो उसी मव से मुक्त होते हैं । पाँचवा और दसवाँ स्वप्न देखने वाले दो भव से मुक्त होते हैं । २४ अष्ट गुण - ( अष्ट कर्मों के क्षय से ये अष्ट गुण प्रगट होते हैं ।) tha * 000000000000 000000000000 XOLODDUDEL www.jamelibrary.org
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy