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मोक्ष (निर्वारण) के सम्बन्ध में जैनदर्शन का चिन्तन सर्वोत्कृष्ट माना गया है। उसने अत्यंत गहराई व विविध दृष्टियों से उस पर ऊहापोह किया है, मनन किया है, विश्लेषण किया है । आगमों के पृष्ठ पर इतस्ततः विकीर्ण
उस व्यापक चिन्तन-करणों को एक धारा के रूप में निबद्ध किया है - प्रसिद्ध आगम अनुसंधाता मुनिश्री कन्हैयालाल जी 'कमल' ने /
मुनि कन्हैयालाल 'कमल' [आगम अनुयोग प्रवर्तक ]
जैनागमों में मुक्ति : मार्ग और स्वरूप
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जैनागम, त्रिपिटक, वेदों एवं उपनिषदों में मुक्ति के मार्गों (साधनों) का विशद दार्शनिक विवेचन विद्यमान है, किन्तु प्रस्तुत प्रबन्ध की परिधि में केवल जैनागमों में प्रतिपादित तथा उद्धृत मुक्तिमार्गों का संकलन किया गया है। यह संकलन मुक्तिमार्गानुयायी स्वाध्यायशील साधकों के लिए परम प्रसादरस परिपूर्ण पाथेय बने और इसकी अहर्निश अनुप्रेक्षा करके वे परम साध्य को प्राप्त करें ।
मुक्ति श्रेष्ठ धर्म है
इस विश्व में धर्म शब्द से कितने व कैसे-कैसे कर्मकाण्ड अभिहित एवं विहित हैं और कितने मत-पथ धर्म के नाम से पुकारे जाते हैं । उनकी इयत्ता का अनुमान लगा सकना भी असम्भव-सा प्रतीत हो रहा है ।
इस विषम समस्या का समाधान प्रस्तुत करते हुए जिनागमों में कहा गया है
"निव्वाण सेट्ठा जह सव्वधम्मा"
संसार के समस्त धर्मों में निर्वाण अर्थात् मुक्ति ही सबसे श्रेष्ठ धर्म है ।
जिस धर्म की आराधना से आत्मा कर्मबन्धन से सर्वथा मुक्त हो जाए वही धर्म सब धर्मों में श्रेष्ठ है । मुक्तिवादी महावीर
भगवान महावीर के युग में कितने वाद प्रचलित थे- यह तो उस युग के दर्शनों का ऐतिहासिक अध्ययन करके ही जाना जा सकता है। किन्तु यह निश्चित है कि उस युग में अनेकानेक वाद प्रचलित थे और इन वादों में मुक्तिवाद भी एक प्रमुख वाद था ।
समकालीन मुक्तिवादियों में भगवान महावीर प्रमुख मुक्तिवादी थे । और अपने अनुयायी विनयी अन्तेवासियों को भी कर्मबन्धनों से मुक्त होने की उन्होंने प्रबल प्रेरणा दी तथा मुक्ति का मार्ग-दर्शन किया ।
मुक्ति किसलिये ?
प्राणिमात्र सुखैषी है किन्तु मानव उन सबमें सब से अधिक सुखैषी है । सुख के लिए वह सब कुछ कर लेना
चाहता है ।
उग्र तपश्चरण, कष्टसाध्य अनुष्ठान और प्रचण्ड परीषह सहना सुखैषी के लिए सामान्य कार्य हैं। पर सुख तो भुक्ति (भोग्य पदार्थों के उपभोग) से भी प्राप्त होता है ।
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