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२१४ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज - अभिनन्दन ग्रन्थ
अभी तक नहीं देखा गया है, यद्यपि भारतीय गुप्तयुगीन कला में देवगढ़ की प्रस्तर शिला इस संदर्भ की अद्भुत अभिव्यक्ति करती है।
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मध्ययुग में नृसिंह- वराह - विष्णु की नानाविध प्रतिमाएँ मेवाड़ में ही नहीं अपितु समूचे राजस्थान व मध्यप्रदेश में बनायी गयी थीं । खजुराहो के लक्ष्मण मंदिर के अन्दर तो इसी भाव की प्राचीन प्रतिमा आज भी पूजान्तर्गत है । इस आशय की मूर्तियाँ ८-६ वीं शती में काश्मीर- चम्बा कुल्लू व कांगड़ा में बहुत लोकप्रिय हो चुकी थीं । ऐसा प्रतीत होता है कि कालान्तर में यह अभिप्राय विशेष राजस्थान में बहुत लोकप्रिय हो गया। अपराजित पृच्छा, देवतामूर्तिप्रकरण व रूपमण्डन आदि ग्रंथों में विष्णु की इस वर्ग की बहुत सी मूर्तियों का उल्लेख हुआ है जिनकी हाथों की संख्या ४, ८, १०, १२, १४, १६, १८, २० तक है । मेवाड़ में इस वर्ग की मूर्तियाँ १६ वीं शती तक बनती रहीं, जैसा कि राजसमंद-कांकरोली की पाल पर बनी नौ चौकी के एक मण्डप की छत द्वारा स्पष्ट हो जाता है। कैलाशपुरी
के एकलिंगजी के मंदिर के पास निर्मित मीरा-मंदिर के बाहरी ताकों में भी ऐसी प्रतिमाएँ जड़ी है-इनमें मध्यवर्ती भाग विष्णुवासुदेव का है व बाजू के मुखसिंह व वराह के । नागदा के पास मंदिर के बाहर बांयी ओर ऐसी गरुडारूढ़ मूर्ति जड़ी है और एक आयड़ संग्रहालय की शोभा बढ़ा रही है। भीलवाड़ा जिले में 'बिजोलिया' के १२वीं शती के प्राचीन मंदिर भी ऐसे संदर्भ प्रस्तुत करते हैं, परन्तु अतिविलक्षण स्वरूप में। एक प्रतिमा तो बैकुण्ठ विष्णु की है और दूसरी उनकी शक्ति की, जहाँ मध्यवर्ती भाग अश्व का है और बाजू के मुख सिंह व वराह के । बैकुण्ठ की शक्ति तो अलौकिक है । इसी वर्ग की एक विष्णु मूर्ति चित्तौड़ दुर्ग पर पुरातत्त्व विभाग के कार्यालय में सुरक्षित है। ऐसा प्रतीत होता है कि इन मेवाड़ी कला कृतियों में विष्णु के 'हयग्रीव' स्वरूप को प्रधानता दी गयी है। खजुराहो की बैकुण्ठ प्रतिमा स्थानिक संग्रहालय में भी सुरक्षित है जहाँ पीछे की ओर चौथा मुख उकेरा गया है और अश्व का है। खजुराहो के लक्ष्मण मंदिर के गर्भगृह की ताकों में क्रमशः वराह-नृसिंह व हयग्रीव की प्रतिमाएँ इसी मात्र की द्योतक प्रतीत होती हैं। श्रीनगर संग्रहालय की एक अपूर्व मूर्ति में सिंह मुख के स्थान पर अश्वाकृति बनी है। ये सब प्रतिमाएँ मेवाड़ी कला का अन्य क्षेत्रों से आदान-प्रदान सिद्ध करती हैं ।
मेवाड़ क्षेत्र में कुरावड़ के पास 'जगत' ग्राम का 'अम्बिका मन्दिर' तो राजस्थान का 'खजुराहो' है--यह १०वीं शती में विद्यमान था जैसा कि स्तम्भ पर के संवत् १०१७ के शिलालेख द्वारा स्पष्ट हो चुका है । कलाकौशल की दृष्टि से भी यह बहुत भव्य है। यह ग्राम के बाहर स्थानिक माध्यमिक पाठशाला के सामने विद्यमान है। पूर्व की ओर से प्रवेश करते ही प्रवेश मण्डप आता है जिसके द्वारस्तम्भों पर मातृका प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं। इनमें 'बराहों' के एक हाथ में 'मत्स्य' विद्यमान है जो तांत्रिक विचारधारा का सूचक है। प्राचीन भारतीय साहित्य में 'वाराही रोहितमत्स्यकपालधरा' उल्लेख द्वारा मत्स्य की पुष्टि होती है। इस प्रवेश- मण्डप की छत पर समुद्र मंथन अभिप्राय खुदा है और बाहरी दीवारों पर प्रेमालाप - मुद्रा में नर-नारी । यहीं कुछ व्यक्ति कंधों पर 'कावड़' (बहंगी) रखकर बोझ उठाते हुए प्रदर्शित हैं। आगे आंगन है और फिर सुविशाल अम्बिका भवन मंदिर के बाहरी मागों पर महिषमदनी दुर्गा की नानाविध भव्य मूर्तियां विद्यमान हैं। निज गर्भगृह के पीछे की प्रधान ताक में भी देवी महिष (राक्षस का वध करती दिखाई देती है उसके पास कशु (Parrot) की विद्यमानता द्वारा 'शुकप्रिया अम्बिका' भाव की पुष्टि होती है । सभा मण्डप के बाहर की एक अन्य मूर्ति में देवी पुरुष रूप में प्रस्तुत । राक्षस से युद्ध कर रही है जो प्रायः बहुत ही कम स्थानों पर उपलब्ध है। महा बलिपुरम् व उड़ीसा की कला में महिष राक्षस को पुरुष रूप में अवश्य बताया गया है परन्तु वहाँ उसका मुख महिष का है और सींग भी जगत की इस मूर्ति में राक्षस पूर्णरूपेण पुरुष विग्रह में प्रस्तुत हैवहाँ सींगों का भी सर्वथा अभाव है । इसी क्रम में जगत की अन्य ताकेँ सरस्वती, गौधासना गौरी, चामुण्डा व द्विबाहु दिक्पालों की प्रतिमाओं के साथ-साथ सुरसुन्दरी प्रतिमाएँ नानाविध मुद्राओं में प्रस्तुत करती हैं। कहीं अलस कन्या है तो कहीं शिशु को हाथों पर उठाए रमणी, अन्यत्र वह सद्यस्नाता व रूठी हुई रमणी के रूप में विद्यमान है। उनकी भावभंगिमा व वेशभूषा तो खजुराहो की कला की तुलना में किसी भी प्रकार कम आकर्षक नहीं है। इस मंदिर के प्रवेश व सभा मण्डप के ऊपर बाहर की ओर भी कुछ देवी प्रतिमाएँ जड़ी हैं जो दुर्ग के अन्य स्वरूपों की अभिव्यक्ति करती हैं । उत्तरी भारत में इस वर्ग के अन्य दुर्गा भवन की सतत प्रतीक्षा बनी रहेगी। जगत के अम्बिका मंदिर के गर्भगृह के बाहर Mait ओर अधिष्ठान की ताक में नारायणी दुर्गा प्रतिमा विद्यमान है। इस प्रेतासना देवी के हाथों में विष्णु के सभी
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