________________
O डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल [प्रसिद्ध विद्वान एवं अनुसंधाता]
००००००००००००
००००००००००००
मेवाड़ की सांस्कृतिक तथा साहित्यिक समृद्धि के उन्नयन में जैनों के योग दान का एक गवेषणाप्रधान विवरण विश्रुत विद्वान डा० कासलीवाल ने प्रस्तुत किया है।
Co-o--0--0--0--0-0--0-0-----------------------5
जैन साहित्य और संस्कृति
__ की भूमि : मेवाड़
UPEPARELI ATEL
पुषण
SIC
Mittil रा
ए
ना
देश के इतिहास में राजस्थान का विशिष्ट स्थान है और राजस्थान में मेवाड़ का स्थान सर्वोपरि है। इस प्रदेश के रणबांकुरों ने अपनी धर्म, संस्कृति तथा पुरातत्त्व की रक्षा के लिए हँसते-हँसते प्राण दिये और अपनी वीरता एवं बलिदान के कारण उन्होंने मेवाड़ का नाम उज्ज्वल किया । यहाँ के तीर्थ एवं मन्दिर स्थापत्य एवं शिल्प कला के उत्कृष्ट केन्द्र हैं तथा साहित्य एवं कला की दृष्टि से उन्हें उल्लेखनीय स्थान प्राप्त है।
मेवाड़ के महाराणाओं ने सभी धर्मों का आदर किया एवं उनके विकास में कभी भी बाधा उत्पन्न नहीं की। जैन धर्म मेवाड़ का लोकप्रिय धर्म रहा और यहाँ के शासकों, उनके जैन एवं जैनेत्तर पत्नियों ने जैन धर्म एवं संस्कृति के प्रचार एवं प्रसार हेतु मन्दिरों के निर्माण, मूर्तियों की प्रतिष्ठा, अहिंसा-पालन की उद्घोषणा, जैनाचार्यों एवं संतों का स्वागत एवं उनके मुक्त विहार में योगदान जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य किये और कभी-कभी तो जैन धर्मावलम्बियों से भी अधिक अहिंसा के पालन में योग दिया। इस दृष्टि से महाराणा समरसिंह एवं उनकी माता जयताल्ला देवी की सेवाएं उल्लेखनीय हैं जिन्होंने सारे राज्य में पशु हिंसा का निषेध घोषित करके अहिंसा में अपना दृढ़ विश्वास प्रगट किया । चित्तौड़ के जैन कीर्ति स्तम्भ के विभिन्न लेख मेवाड़ में जैन धर्म की लोकप्रियता की शानदार यशोगाथा है। यहां का ऋषभदेव का जैन तीर्थ सारे राजस्थान में ही नहीं बल्कि गुजरात एवं उत्तर भारत का प्रमुख तीर्थ माना जाता है तथा जो जैन-जनेतर समाज की भक्ति एवं श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है।
मेवाड़ प्रदेश जैन साहित्य एवं जैन साहित्यकारों का भी केन्द्र रहा है। दिगम्बर परम्परा के महान् आचार्य धरसेन का इस प्रदेश से गहरा सम्बन्ध रहा तथा उन्होंने इस प्रदेश की मिट्टी को अपने विहार से पावन किया। इस तरह सातवीं शताब्दी में होने वाले आचार्य वीरसेन ने चित्तौड़ में एलाचार्य से शिक्षा प्राप्त करके 'धवला' एवं 'जय धवला' जैसी महान ग्रन्थों की टीकाएँ लिखने में समर्थ हुए। आठवीं शताब्दी में जैन दर्शन के प्रकांड विद्वान हरिभद्रसूरि हुए जिन्होंने मेवाड़ प्रदेश में ही नहीं, किन्तु समस्त भारत में जैन धर्म की कीर्ति पताका फहरायी। इस प्रदेश में ग्याहरवींबारहवीं शताब्दी में अपभ्रंश के महाकवि धनपाल एवं हरिषेण हुए जिन्होंने अपने काव्यों में इस प्रदेश की प्रशंसा की और अपने अपभ्रंश काव्यों के माध्यम से जन-जन में अहिंसा एवं सत्य धर्म का प्रचार किया ।
संस्कृत के प्रकांड विद्वान महापंडित आशाधर भी मेवाड़ प्रदेश के ही रहने वाले थे। इसी प्रदेश में भट्टारक सकलकीर्ति ने सर्वप्रथम भट्टारक पद्मनन्दि के पास नैणवां में विद्याध्ययन किया और फिर मेवाड़ एवं बागड़ प्रदेश में जन
१ वीर शासन के प्रभावक आचार्य २ इय मेवाड़ देस जण संकुले गिरि उजपुर धक्कड़ कुले ।
Herprilveteepersonalities
wwww.jainelibrary.oro