________________
आचार्य श्री एकलिंगदासजी महाराज | १६७
तपस्वी भी
आचार्य श्री तप में भी बहुत आगे थे । आचार्य पदारूढ़ होने के बाद पाँच वर्ष एकान्तर तप किया । पचोले अठाई सात, नव और ग्यारह के कई थोक किये । स्वर्गवास
००००००००००००
००००००००००००
पूज्य आचार्य श्री का आचार्यकाल मेवाड़ सम्प्रदाय के लिए एक अच्छा युग था । सम्प्रदाय साधु-साध्वियों से अधिक सम्पन्न हुआ। साथ ही श्रावक-समुदाय में उत्साह और धर्माराधना का नया वातावरण व्याप्त हुआ।
आचार्य श्री का सं० १९८७ का चातुर्मास ऊंठाला (वल्लभनगर) था । यहीं पूज्य श्री का स्वास्थ्य व्याधिग्रस्त हो गया और श्रावण कृष्णा २ को प्रातः ६ बजे वे समाधिपूर्वक स्वर्ग सिधार गये ।
पूज्य श्री का स्वर्गवास मेवाड़ संघ के लिए एक आघात था। संघ वियोग से विह्वल अवश्य था, किन्तु इस बात का सभी को सन्तोष था कि पूज्य श्री ने अपने पीछे कई अच्छे मुनिराजों को तैयार किया है, जो मेवाड़ संघ का नेतृत्व करने में सक्षम हैं।
पूज्य श्री ने मेवाड़ को नया वातावरण दिया, व्यवस्था और प्रेरणा दी। सचमुच पूज्य श्री एकलिंगदासजी महाराज का अभ्युदय मेवाड़ के लिए वरदान सिद्ध हआ।
___अन्त में श्री मेवाड़ी मुनिजी का यह पद्य, जो पूज्य श्री के लिए बिलकुल उपयुक्त ही है, उद्धृत करता हुआ प्रस्तुत निबन्ध को समाप्त करता हूँ
महावीर के सत शासन में शूर वीर गंभीर गुनी । तप संयम कर तेज-पुज गणनायक महिमावन्त मुनी।। धर्म देव योगीन्द्र भद्र तत्त्वागम गुण निष्णात हुए। मेवाड़ भूमि मवि भाग्य एकलिंगदास प्रख्यात हुए ।
CONDS जब
PANTRA
PARAN
Co..
AUTHE
........2
PORNO HTTP
HAURNIMAN
गुरु का गौरव शिष्यों के द्वारा ही व्यक्त होता है। जैसे वृक्ष की शोभा उसके मधुर फल है, सरोवर की शोभा शीतल-मधुर जल है, सागर की शोभा उज्ज्वल मुक्ता-फल (मोती) है, उसी प्रकार गुरु की शोभा और महिमा बढ़ाने वाला शिष्य-दल (शिष्य परिवार) होता है।
—'अम्बागुरु-सुवचन'
-
--
--
--
-
-0--0-0-0-0-0
-
AIM
.
..
4-ar
---"
.SXAt-/www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Private & Personal Use Only