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________________ १६६ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ ०००००००००००० ०००००००००००० MERO Paraa ५. किसी के आडम्बर के प्रभाव में आकर अपनी सम्प्रदाय की आम्नाय नहीं छोड़ना । ६. दीक्षा लेने के भाव हों तो अपनी ही सम्प्रदाय में दीक्षा लेना। इस तरह सम्प्रदाय के हित में आवश्यक निर्णय लेकर समस्त संघों की उस समय सहमति ले ली गई। आचार्य पदारोहण से समय निम्नांकित संत महासतीजी आज्ञा में थे पूज्य आचार्य श्री एकलिंगदास जी महाराज ठा०६ । श्री धनराजजी महाराज ठा० ४ (ये संत मालवा में थे) काठियावाड़ में ५ ठाणा मुनिराज़ थे, किन्तु उनका नामोल्लेख नहीं किया गया। __ महासती जी वि० महासती जी कंकूजी महाराज ठा०६ " , सरुपांजी महाराज ठा०५ ,, बरदूजी महाराज ठा०८ " कस्तूरांजी महाराज ठा० ५ , केसरजी महाराज ठा० ३ , गुलाबजी महाराज ठा०२ इस तरह १६ मुनिजी तथा ५२ महासतीजी महाराज कुल ६८ संत एवं महासती जी आचार्यश्री की नेश्राय में विचरण कर रहे थे। आचार्यपद के रिक्तस्थान की पूर्ति हो जाने से समस्त संघ में नवोत्साह का वातावरण फैल गया । आचार्य श्री के नेतृत्व में संघ चतुर्मुखी विकास करने लगा। विशृखलित साधु-साध्वी-समाज पुनः आज्ञाधीन बरतने लगा। पूज्य श्री बड़े सरल स्वभावी तथा निराडंबरी थे । बलिदान बन्द पूज्य श्री के पुण्य प्रताप से मेवाड़ में अनेकों उपकार सम्पन्न हुए। वि० सं० १९७४ में राजकरेड़ा चातुर्मास था। उस समय कालाजी के स्थान पर होने वाली हिंसा बन्द हुई प्रस्तुत कार्य में तत्कालीन राजाजी अमरसिंह का सहयोग बड़ा सराहनीय रहा । उन्होंने अपने अधिकार से अम्मर पट्टा कर दिया। अभयदान FIRY MASTI सं० १९७७ के वर्ष में नाथद्वारा चातुर्मास था। उस चातुर्मास में लगभग दो हजार बकरों को अभयदान मिला । यह कम उपकार नहीं था। १ । श्री गोपालजी ।। श्री रामजी ।। पट्टा नं० ३० साबत सिद्ध श्री राजा बहादुर श्री अमरसिंहजी बंचना हेतु कस्वा राजकरेड़ा समस्त महाजना का पंचा कसै अरंच राज और पंच मिलकर भैरूजी जाकर पाती मांगी के अठे बकरा व पाड़ा बलिदान होवे जीरे बजाए अमरिया कीधा जावेगा। बीईरी पाती बगसे-सो भैरूजी ने पाती दोदी के मन्जूर है। वास्ते मारी तरफ से आ बात मन्जूर होकर बजाए जीव बलिदान के अमरिया कीधा जावेगा । और दोयम राज और पंच मिलकर धरमशाला मैरूजी के बना वणी कीदी सो धरमशाला होने पर ई बात री परस्सती कायम कर दी जावेगा। ता के अमुमन लोगों को भी खयाल रेवेगा के अठे जीव हिंसा नहीं होते है । और जीव हिंसा न हो बाकि भोपा को भी हुकम देदीदो है । ईवास्ते थाने आ खातरी लिख देवाणी है। सं० १९७४ दुती भादवा सुदी १ । दः केसरीमल कोठारी रावला हुकम सू खातरी लिख दी है। PA ToRON COOOO AO8HIR HINABRARIANTaav -MAWAPERHI
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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