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पूज्य आचार्यश्री मानजी स्वामी | १४५
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कारी थे। वे पूज्य श्री के निकट अपने को अर्पित करना चाहते थे। संयम का आग्रह उनका इतना तीन सच्चा, और प्रभावशाली था कि अनेकों यत्नों के बाबजूद पारिवारिक-जनों को अनुमति देनी ही पड़ी।
सं० १८७२ की कार्तिक शुक्ला पंचमी को दीक्षा सम्पन्न हो गई। दीक्षास्थल का परिचय ढूंढ़ने पर भी नहीं मिल सका।
पूज्य श्री मानजी स्वामी एक विद्वान् गुरु के शिष्य थे। सुनने में आता है कि श्री नृसिंहाचार्य जी को अनेक सूत्र कण्ठस्थ थे।
गुरु के ज्ञानामृत का श्री मान मुनि ने भी भरपूर रसपान किया।
पूज्य आचार्य श्री नृसिंहदासजी महाराज के स्वर्गवास के बाद मेवाड़ के आचार्यत्व के धर्म तख्त पर श्री मानजी स्वामी को समासीन किया गया ।
श्री मानजी स्वामी बड़े तेजस्वी आचार्य थे। उन्होंने संघ की प्रतिष्ठा को चतुर्दिक व्याप्त कर दिया। उनके प्रवचन बड़े ओजस्वी और प्रभावक होते थे। उनका देह-वैभव भी बड़ा विशाल और तेजस्वी था।
जेवाणा वाले श्री अम्बालालजी जैन की माताजी, जिनका देहावसान अभी कुछ समय पूर्व ही हुआ, की उम्र नव्वे वर्ष से अधिक थी। उन बूढ़ी माताजी ने बताया कि मेरी गुरुधारणा पूज्य श्री मानजी स्वामी की वाणी से हुई थी। श्री मानजी स्वामी का शरीर पुष्ट और चमक-चमक करता था। इससे ज्ञात होता है कि उनका व्यक्तित्व वास्तव में प्रभावशाली था।
श्री मानजी स्वामी कवि भी थे। उनकी अधिक रचनाएँ तो उपलब्ध नहीं हैं, किन्तु जो उपलब्ध हैं, उनसे उनका कवित्व प्रकट होता है । उनके गुरु गुण स्तवन के प्रारम्भिक दोहों में से एक दोहा है
गुरु हीरा गुरु कंचणां, गुरु ज्ञान दातार ।
गुरु पोरस चित्रवेल सम, लीज्यो मन में धार । सीधी सादी राजस्थानी शैली में कुछ रचनाएँ उपलब्ध हैं। किंवदन्तियों-चमत्कारों में श्री मानजी स्वामी
पूज्य मानजी स्वामी, जिस एक बात के लिए सर्वाधिक विख्यात है, वह हैं उनका चमत्कारिक जीवन । मानजी स्वामी के साथ अनगिनत चमत्कारी घटनाएँ जुड़ी हुई हैं।
जिस तरह नाथ सम्प्रदाय में गोरखनाथ जी का जीवन चमत्कार का पर्याय बना हुआ है, इसी तरह पूज्य मानजी स्वामी मी जैन सम्प्रदाय में चमत्कार के एक पर्याय हैं ।
जैन मुनि चमत्कारों के सृजन को हेय मानकर चलता है। इतना ही नहीं चमत्कार को एक प्रमाद मानकर उसके सृजन पर प्रायश्चित्त की व्यवस्था भी देता है। ऐसी स्थिति में किसी जैन मुनि के साथ इतने चमत्कारों का जुड़ जाना सचमुच आश्चर्य की बात है ।
यों जैन मुनि चमत्कारों का सृजन नहीं करता, किन्तु उसके आस-पास भी कभी स्वतः ही चमत्कारों की सृष्टि हो जाया करती है। यह आश्चर्य की बात है । फिर भी जैन मुनि की उपस्थिति में चमत्कार हुए हैं आज से नहीं, हजारों वर्ष पहले भी, इसमें कोई सन्देह नहीं।
अप्रयोगित चमत्कार क्यों हुए, इसके उत्तर में भक्त देवताओं का आगमन और उनकी शक्ति ही इसका समाधान देती आई है । और, अभी भी केवल इसी विकल्प पर तर्कों को निष्क्रिय करना पड़ता है।
आत्मा और जड़ की अनन्त शक्ति है। इसके विविध सन्दर्भो में आश्चर्यजनक परिणमन भी एक समाधान है, किन्तु यह बहुत दूर का है । यह समाधान अपने आप में अभी तक और अन्वेषण का आह्वान करता है।
श्रीयुत मानजी स्वामी की सेवा में एक देवी और दो भैरव उपस्थित रहते थे। ऐसी बहुत पहले से चली आई धारणा है। अद्भुत निर्भयता
कहते हैं, एक बार मानजी स्वामी, जब नवदीक्षित ही थे, अपने गुरु के साथ सिरोही पधारे थे । एक लोका
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