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________________ १४०-पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ ०००००००००००० ०००००००००००० UITMLILY श्री नरसिंहदास जी के सत्य विनिश्चय के अचाञ्चल्य को पाठक उक्त व्याख्या के परिप्रेक्ष्य में समझने का प्रयास करेंगे तो उन्हें उक्त दृढ़ निश्चय पर आश्चर्य नहीं होगा। ज्ञानाराधना मुनिश्री नरसिंहदास जी ज्ञान के सच्चे पिपासु थे । संयमी होते ही उन्होंने अपना पूरा ध्यान अध्ययन में लगा दिया । तत्त्व विनिश्चय के लिए शास्त्रों का अध्ययन ही उपयोगी होता है। अत: मुनिश्री उसी अध्ययन में जुट गये । परम्परागत अनुश्रुति है कि उन्हें सात सूत्र तो कण्ठस्थ थे। . शास्त्रों के इतने सुदृढ़ अभ्यासी का अध्ययन कितना विस्तृत होगा, पाठक स्वयं अनुमान लगाएँ । तपस्वी भी मुनिश्री बड़े तपस्वी थे। पूज्य श्री रोड़जी स्वामी के विषय में तो तप के विषय में बड़ी विश्रुति है। किन्तु श्री नरसिंहदास महाराज इतने अच्छे तपस्वी थे, इसकी कोई जानकारी नहीं थी। मानजी स्वामी कृत ढालों का अध्ययन करने से ज्ञात हुआ कि घोर तपस्वी श्री रोडजी स्वामी के शिष्य रत्न भी तप की दृष्टि से उनका अनुकरण करने वाले सच्चे अर्थों में अनुगामी (शिष्य) थे।। ढाल के अनुसार मुनिश्री ने मास खमण, तेइस, इकवीस, पन्द्रह के तप तो किये ही, एक कर्मचूर तप भी किया ।' फुटकर तपस्या भी प्रायः चलती रहती थी। मुनिश्री नरसिंहदास जी महाराज का यह तपस्वी रूप अब तक लगभग अप्रकट ही था। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट हो गया कि हमारे चरित्रनायक शास्त्रज्ञ ही नहीं, अच्छे तपस्वी भी थे। आचार्य-पदारोहण मुनिश्री ने यौवनवय में संयम लेकर भी जितना और जो कुछ किया वह अनुपम था । एक शिल्पकार की तरह उन्होंने अपने जीवन को पूज्य श्री रोड़ जी स्वामी के नेतृत्व में तराशा। विनय, विवेक, सेवा और ज्ञानाराधना की एकाग्रोपासना ने उन्हें मुनि ही नहीं, एक उच्चकोटि का सन्त-रत्न बना दिया ।२ पूज्यश्री रोड़जी स्वामी के एकाकी रह जाने और संघ में श्रद्धा विक्षेप के आये प्रवाह आदि अनेक कारणों से मेवाड़ के धर्म-संघों में जो एक अनुत्साह जैसा वातावरण छा रहा था, ऐसी स्थिति में मुनिश्री नरसिंहदासजी मेवाड़ धर्म-संघ के लिए एक प्रबल आशा की किरण सिद्ध हुए। मुनिश्री के अभ्युदय ने बड़ी तेजी से धर्म-शासन को नवजीवन प्रदान कर दिया। मुनिश्री जिस ज्ञानदीप्ति और चारित्रिक ओज से सम्पन्न बनते जा रहे थे, उसे देख मेवाड़ का जन-जन उनके प्रति न्यौछावर था। जब पूज्यश्री रोड़जी स्वामी उदयपुर में नव वर्ष स्थानापन्न रहने के बाद साढ़े चार दिनों का संथारा सिद्ध कर स्वर्गवासी हुए तो चतुर्विध संघ ने स्वर्गीय स्वामी जी के सफल शिष्य-रत्न तथा चतुर्विध संघ के एकमात्र सम्बल मुनि श्री नरसिंहदास जी महाराज को मेवाड़ सम्प्रदाय के यशस्वी पट्ट पर विराजमान कर दिया । HTTA H PARSA JHARIWAN १ मास खमण धुर जाणिये भवियण तेइस इकबीस जाण । कर्मचूर तप आदर्यो भवियण पनरा तक तप आण । और तपस्या कीदी घणी रे भवियण कहतां नावे पार ।। २ भणे गुणे पंडित थयारे विने विवेक रसाण । + + लखण पढ़न उपदेश नो रे और न बीजो काम । + + + सेवा भक्ति कीधी घणी रे गुरु गुरुमायां री जोय ।। Rep क OUUN memaducationnaismenonel
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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