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आचार्यप्रवर श्री नृसिहदास जी महाराज | १३६
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दीक्षा
रायपुर में धार्मिक वातावरण की प्रधानता थी। पूज्यश्री रोड़जी स्वामी का पदार्पण भी प्रायः होता रहता था। श्री नृसिंहदास जी भी सात्त्विक प्रकृति के युवक थे। बड़े धर्मप्रेमी थे। आन्तरिक लगन होने से बचपन में भी अच्छा धार्मिक ज्ञान प्राप्त कर लिया था।
सांसारिकता के नाते व्यापारिक कार्यों में भी लगे। बुद्धिमान होने के कारण कुछ ही समय में व्यापार अच्छा चमक गया।
एक बार किसी व्यापारिक कार्य हेतु श्री नृसिंहदास जी का भीलवाड़ा जाना हुआ। वहाँ से आते समय मार्ग में लावा (सरदारगढ़) आता है। वहाँ पूज्य श्री रोड़ जी स्वामी का चातुर्मास था। धर्मप्रेमी नृसिंहदास जी महाराज वहाँ पहुँचे ।। दर्शन-लाभ लेकर उन्हें अतीव प्रसन्नता हुई। वे शीघ्र रायपुर आना चाहते थे। किन्तु श्री रोड़जी स्वामी के अद्भुत त्याग-तप तथा मधुर उपदेशों से वे इतने प्रभावित हुए कि वहीं टिक गये । प्रतिक्रमण, पोषध, सामायिक आदि धर्म-क्रियाएँ करने लगे।
स्वामीजी के उपदेशों का इतना जबरदस्त असर हुआ कि उन्होंने संयम लेने का निश्चय कर लिया। वे वहीं ठहरकर ज्ञानाभ्यास करने लगे।
उन्होंने रायपुर जाने की जरूरत तक नहीं समझी। कुछ ही दिनों में नृसिंहदास जी की आन्तरिक भावना का प्रचार दूर-दूर तक हो गया।
रायपुर में सूचना पहुंचते ही बड़ा आश्चर्य छा गया ।
पत्नी ने सुनते ही लावा प्रस्थान कर दिया। वह लगातार रायपुर चलने का आग्रह करती रही। श्री नृसिंहदास जी उसे बराबर संसार की असारता समझाते रहे और अपने दृढ़ निश्चय का परिचय देते रहे ।
ढाल से ज्ञात होता है कि नारी ने वहाँ भंयकर क्लेश भी किया।२ किन्तु मुमुक्षु महोदय के प्रबल निश्चय के सामने उसका क्लेश व्यर्थ ही रहा ।
___अन्ततोगत्वा वैरागीजी के दृढ़ निश्चय की ही विजय हुई। नारी को स्वीकृति देनी ही पड़ी। सत्य-आग्रह की विजय होती ही है।
सभी अवरोध हट जाने पर अर्थात् सम्बन्धित जनों की अनुमति मिलने पर संवत् १८५२ मार्ग शीर्ष कृष्ण नवमी के दिन सच्चे मुमुक्षु नृसिंहदास जी की दीक्षा सम्पन्न हो गई। चातुर्मास उठते ही नवमी को दीक्षा हुई। अत: अनुमान यह लगता है कि यह कार्यक्रम लावा में ही सम्पन्न हुआ होगा।
___ वैराग्य कोई भावुकता का प्रवाह नहीं होता। वैराग्य आध्यात्मिक धरातल पर उठा एक प्रकाश होता है, जिसमें मुमुक्षु अपने पारमार्थिक ध्येय का स्पष्ट सन्दर्शन पाता है ।
सभी प्रकार के आग्रहों से मुक्त, स्पष्ट निर्णीत सत्य से फिर यदि कोई विचलित करना चाहे तो उसे सफलता मिलना कठिन ही नहीं लगभग असम्भव है।
१ पूज्य श्री रोड़ीदासजी ललणो।
सकल गुणां री खान ।
.."भेट्या पुजजी ना पाय । २ पाछे आवी अस्त्री क्लेश कीधो आण ।
श्रावक श्राविका समझाये तब वचन कियो प्रमाण । ३ अष्टादश बावने रे भविकजन मिगसर मास बखाण ।
सुगण नर सांभलो रे भवियण पूज्य तणां गुण भारी । कृष्ण पक्ष धुर नम कही रे भवियण संजमलीधो जाण । आज्ञा पाले निरमली रे भवियण करे वचन प्रमाण ।।
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