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________________ घोर तपस्वी पूज्यश्री रोड़जी स्वामी | १३३ ०००००००००००० ०००००००००००० AdS யா ...... विकट अभिग्रह अभिग्रह विकट तप की एक विधा है। भगवान महावीर ने तेरह बोल का अभिग्रह ग्रहण कर अभिग्रह को तप के ऊपर मुकुट की तरह उसे सुशोभित कर दिया । किसी तप के बाद पारणक के अवसर पर किसी विचित्र प्रकार की गुप्त शर्त निश्चित करना अभिग्रह कहलाता है । यह अभिग्रह की सामान्य परिभाषा है । भगवान महावीर ने तेरह बोल की गुप्त धारणा कर रखी थी जिसकी पूर्ति चन्दनबाला द्वारा हुई। यह विश्व की कई अद्भुत बातों में से एक है। महावीर की वह प्रतिज्ञा 'अभिग्रह कहलाई। श्री रोड़ जी स्वामी तपस्वी ही नहीं, विकट अभिग्रह के भी बड़े प्रेमी थे। अभिग्रह सरल भी होते हैं और कठिन भी। स्वामीजी ने कई अभिग्रह लिये होंगे अपने जीवन में, किन्तु उनके दो अभिग्रह बड़े विकट थे, जो न केवल इतिहास में अमर हुए, रोड़जी स्वामी को भी जिन्होंने अमर कर दिया। पहला अभिग्रह हाथी का था। उन्होंने निर्णय किया कि हाथी बहराए तो आहार लूगा । अन्यथा जीवन भर आहार लेने का त्याग । यह बड़ी विकट प्रतिज्ञा थी और थी एकदम गुप्त । यदि उजागर भी होती तो ऐसी प्रतिज्ञा का पूर्ण होना बिलकुल सम्भव नहीं था। दृश्य से अदृश्य अधिक सशक्त होता है। आध्यात्मिक शक्ति भी एक सत्य है जिसे स्वीकार करना ही पड़ता है । स्वामीजी प्रतिदिन आहार के लिये शहर उदयपुर में घूम आते, किन्तु आहार लेते नहीं। धर्मप्रेमी बड़ी चिन्ता में थे । अन्ततः उन्नीसवें दिन तपस्वीजी मध्य बाजार में होकर निकल रहे थे, तभी 'शिवतिलक' नामक दरबार का प्रधान गज उन्मत्त-सा बन बन्धन तुड़वाकर दौड़ता हुआ बाजार तक आ गया। हाथी की उन्मत्तता से चतुर्दिक भय और सन्नाटा छा गया। सभी व्यक्ति भयभीत होकर अपने भवनों में जा छुपे । किन्तु स्वामीजी बड़ी धीरता से अपने पथ पर अग्रसर थे । दूर खड़ी जनता सम्भवतः यह सोचकर कि अभी यह उन्मत्त गज स्वामीजी को रौंद डालेगा, बड़ी भय-विह्वल हो चिल्ला रही थी, किन्तु स्वामीजी एक इंच भी पीछे नहीं हटे। बच्चा-बच्चा चकित था कि हाथी स्वामीजी के निकट आ अपनी सूड फैलाकर तपस्वीजी को वन्दन कर रहा है । पास ही हलवाई की दुकान पर लड्डू की थाल में से हाथी ने अपनी सूड में एक लड्डू उठाया और स्वामीजी के सामने कर दिया। हलवाई की अनुमति मिलते ही स्वामीजी ने हाथी के द्वारा आहार लिया। यह अद्भुत बात थी। इस पर कई तर्कों की बौछार हो सकती हैं। किन्तु अध्यात्म के क्षेत्र में एक अति शक्ति काम करती है। उसकी तुलना हम किसी व्यवहार से नहीं बिठा सकते। एक ऐसा ही अभिग्रह स्वामीजी ने सांड का किया । यह अभिग्रह भी उदयपुर में लिया गया । इकत्तीसवें दिन यह अभिग्रह मण्डी की नाल में फला। आहार के निमित्त आये स्वामीजी के सामने आकर एक सांड ने एक व्यापारी के गुड़ के कट्टे से अपने सींग में गुड़ की एक डली टिकाकर स्वामीजी को बहराई । इन दोनों अभिग्रहों की प्रामाणिकता का आधार ढाल तो है ही, जनश्रुति में भी इन अभिग्रहों की चर्चा इतनी फैली हुई है, कि उसे झुठलाया नहीं जा सकता। विष भी अमृत बना स्वामीजी के समुज्ज्वल जीवन की पुण्य प्रभा से लगभग सारा प्रान्त जगमगा रहा था । अभिग्रहों की असंभवित TWIST TWITTER ....... RINISHA ATANI .. ..... D बजस एक एता MOIRAL १ अभिग्रह कीनों हाथी तणो जी आणी मन उच्छाय । फलियो दिन गुणतीसमे ज्यारो जस फैल्यो जग मांय ॥ सांड वेरावे तो वेरणो नहींतर लेणों नाय । फलियो दिन इकतीसमे ज्यां जैन मारग दीपाय जी ॥ नामा AMER RRY
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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