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१३२ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज - अभिनन्दन ग्रन्थ
न गच्छेज्जैनमन्दिरे" जैसी उक्तियाँ चारों तरफ फैली हुई थीं। श्री रोड़जी स्वामी एक बार कैलासपुरी पधारे। स्वामीजी को वहाँ तीव्र साम्प्रदायिकता का सामना करना पड़ा ।
तपस्वीजी के एकलिंगजी में प्रवेश करते ही एक तूफान सा उठ खड़ा हुआ। मानो तीर्थं अपवित्र हो गया हो । साम्प्रदायिक तत्त्वों ने छोकरों को बहकाया । एक टोली स्वामीजी के पीछे लग गई। बच्चे तो फिर बच्चे ही ठहरे । ठट्ठा-खिल्ली घूल उछालने से भी आगे बढ़कर बच्चों ने पत्थर वर्षा शुरू कर दी । तपस्वीजी पत्थरों से पिटवाए जा रहे थे और साम्प्रदायिक तत्त्व मुस्कुरा रहे थे । उपसर्ग सीमातीत था । किन्तु तपस्वीजी अपनी धुन में आनन्दमग्न थे । उन्होंने उनके विरुद्ध न कोई शिकायत की न शिकवा |
पूरे पश्चिम को आध्यात्मिकता का सन्देश देने वाले ईसा की भी कभी ऐसी स्थिति हुई थी । पत्थरों की वर्षा के बीच मुस्कुराते ईसा के चरित्र ने पश्चिम को एक नई दिशा प्रदान की थी।
पूर्व ने ऐसे कई चरित्र विश्व को दिये, जो पत्थरों की मार के बीच खिले रहे। श्री रोड़जी स्वामी भी तब ऐसे ही चरित्र के मूर्त आदर्श बने खड़े थे ।
आतंक समारोपित होता है तो उसका अन्त है ही । करुणा, दया, शान्ति, सामञ्जस्य ध्रुव हैं। मानवता ध्रुव तत्त्व भावों के सहारे ही टिकी है ।
उपसर्ग का अन्त भी आया । अपराधियों की भर्त्सना भी हुई, इतना ही नहीं, उन्हें दण्डित भी किया गया । किन्तु करुणा के पुण्य-पुंज श्री स्वामीजी ने उन्हें मुक्त कराने को अनशन कर दिया । अपराधी अर्थात् आतंक के प्रतिनिधि मुक्त होते ही स्वामीजी के मुक्त चरणों में नतमस्तक हो गये ।
पहली बार शैव संस्कृति के प्रधान पीठ में श्रमण संस्कृति की आध्यात्मिकता की विजय हुई।
यह भी सहना पड़ा
मेवाड़ के कई क्षेत्रों में उस समय जैन धर्म पल्लवित नहीं हो पाया था। श्रद्धा-भेद का जो प्रवाह चला, वह भी कहीं-कहीं अति कटु बनकर उपस्थित हो रहा था ।
स्वामीजी नाथद्वारा पधारे। तपस्वीजी के त्याग तप की उत्कृष्ट साधना का प्रभाव तो चतुर्दिक् था ही। कई कारणों से कई दिनों तक स्वामीजी का नाथ द्वारा में प्रवेश नहीं हो सका, ऐसी अनुश्र ुति है ।
नगर बाहर किसी छत्री में कई दिनों तक ध्यानस्थ खड़े रह गये । कहते हैं, उस समय सिंघवीजी की माता को रोड़जी स्वामी का ज्ञात होते ही वह बड़ी चिन्तित हुई। उसने सिंघवीजी को स्थिति से अवगत कराया। सिंघवीजी ने ठिकाने को सहमत कर सत्ता के सहयोग से स्वामीजी का नगर में प्रवेश कराया तो साम्प्रदायिक तत्त्व बौखला उठे । ढाल से ज्ञात होता है कि एक शोभा नामक बनिये ने तपस्वीजी से झगड़ा ही नहीं किया, उसने उन पर भयंकर कलंक भी घर दिया। कहते हैं, तपस्वीजी ने निर्णय तक अनशन ठान लिया । अन्ततोगत्वा सत्व सामने आया । झूठ का भण्डाफोड़ हो गया। स्वामीजी की समुज्ज्वल यशपताका चतुर्दिक फहराने लगी ।
१ तपस्या करे स्वामी रोड़जी जी एकलिंगजी में जाय ।
जोगी तो आया तिण अवसरे वां तो छोरा ने लिया बुलाय ॥ भाटा मार्या तिण अवसरे जी रोड़जी ने तिण वार । ये बातां राज में सुणी लिया जोगी ने बुलाय ॥ जोग्याँ ने दरबार बुलायने जी रोक्या छे तिण वार । स्वामी रोड़जी इम कहे यां ने छोड़ो तो ले सू आहार ॥
२. नाथद्वारे स्वामी पधारियाजी प्रति बोध्या कितना इक ग्राम श्रावक श्राविका अति घणा वे तो लुर लुर लागे पाँवजी ।। सोभा वाण्यो आयने जी बोल्यो वचन करूर । कूड़ो आल चढ़ावियो वां तो क्षमा करी भरपूर |
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